कई जांचों में इसका कोई नुकसान नहीं देखा गया है। यही वजह है कि हर कोई इस आम को खाने के लिए ललाइत रहता है। इसकी मांग केवल विंध्य तक सीमित नहीं है। बल्कि देश के अलग-अलग हिस्सों से भारी मात्रा में इसकी डिमांड है। कुछ तो ऐसे भी सुंदरजा आम को चाहने वाले है जो सात समंदर पार देशों में रह रहे है वे भी एक बड़ी लागत लगा कर सुंदरजा आम मगाते है।
Mango is not harmful for diabetic patient” src=”https://new-img.patrika.com/upload/2019/06/25/4_9_4754086-m.jpg”>Patrika IMAGE CREDIT: Patrika सुदरंजा का इतिहास
गोविंदगढ़ के रहवासी रमेश बढ़ोलिया बताते है कि 1920 में लखनऊ से आए कृषि वैज्ञानिक वैनी माधव वर्मा ने यहां के प्रसिद्ध आम लगड़ा एवं बम्बइंया आम को मिलकर यह नई प्रजाति बनाई थी। इसका सबसे पहले पेड़ गोविंदगढ़ के तालाब की मेड़ में लगाया गया है। इस आम में फल आने के बाद इसकी सुदंरता एवं खुशबू को देखते हुए इसका नाम सुंदरजा पड़ गया। इसके बाद गोविंदगढ़ के आस पास कई बगीचों में इसके पेड़ लगाए गए है। वर्तमान में गोविंदगढ़ तालाब व आसपास क्षेत्रों में लगभग 250 से अधिक बगीचे तैयार हुए है। इसके साथ ही गोविंदगढ़ क्षेत्र में लगड़ा, फजली, राजदरबार, अमृलपाली, चौसा जैसे कई आम अपनी मिठास के लिए प्रसिद्ध है। रीवा अमरकंट मार्ग व सीधी से गुजरने वाले लोगों को सुदंरजा आम देख कर रुक जाते है।
गोविंदगढ़ के रहवासी रमेश बढ़ोलिया बताते है कि 1920 में लखनऊ से आए कृषि वैज्ञानिक वैनी माधव वर्मा ने यहां के प्रसिद्ध आम लगड़ा एवं बम्बइंया आम को मिलकर यह नई प्रजाति बनाई थी। इसका सबसे पहले पेड़ गोविंदगढ़ के तालाब की मेड़ में लगाया गया है। इस आम में फल आने के बाद इसकी सुदंरता एवं खुशबू को देखते हुए इसका नाम सुंदरजा पड़ गया। इसके बाद गोविंदगढ़ के आस पास कई बगीचों में इसके पेड़ लगाए गए है। वर्तमान में गोविंदगढ़ तालाब व आसपास क्षेत्रों में लगभग 250 से अधिक बगीचे तैयार हुए है। इसके साथ ही गोविंदगढ़ क्षेत्र में लगड़ा, फजली, राजदरबार, अमृलपाली, चौसा जैसे कई आम अपनी मिठास के लिए प्रसिद्ध है। रीवा अमरकंट मार्ग व सीधी से गुजरने वाले लोगों को सुदंरजा आम देख कर रुक जाते है।
सुदरंजा की विशेषतांए
बताया जा रहा है सुदरंजा आम की सबसे बड़ी विशेषता है कि यह पकने के बाद दस से पंद्रह दिनों तक खराब नहीं होता है। इसके अतिरिक्त इसकी खुशबू बड़ी पहचान है इस आम की विशेष तरह की खुशबू लोगों को काफी आकर्षित करती है। वहीं आम में कम रेशे होने व कम मीठा होने के कारण सुदंरजा की विशेषता है। यह एक आम की साइज भी लोगों को अपनी ओर खींचती है यह अधिकतम एक किलो 300 ग्राम तक होता है।
बताया जा रहा है सुदरंजा आम की सबसे बड़ी विशेषता है कि यह पकने के बाद दस से पंद्रह दिनों तक खराब नहीं होता है। इसके अतिरिक्त इसकी खुशबू बड़ी पहचान है इस आम की विशेष तरह की खुशबू लोगों को काफी आकर्षित करती है। वहीं आम में कम रेशे होने व कम मीठा होने के कारण सुदंरजा की विशेषता है। यह एक आम की साइज भी लोगों को अपनी ओर खींचती है यह अधिकतम एक किलो 300 ग्राम तक होता है।
भोपाल एवं इंदौर में शासन द्वारा आम की प्रजातियों को लगाई की प्रियदर्शनी में सुदंरजा की प्रथम रहा है। यही से इस आम की पहचान और बड़ी है। अब इस आम को अन्य स्थानों में लगाने की प्रयास लगातार किए जा रहे है। लेकिन गोविंदगढ़ की जलवायु के बाहर जाकर इसकी स्वाद व रंग में परिवर्तन देखा गया है। यही कारण है कि यह अब गोंदिवंगढ़ का खास आम बन गया है।
वातावरण की मार सुंदरजा हो रहा प्रभावित
गोविदगढ़ के स्थानीय लोग बताते है यहां का प्रसिद्ध सुंदरजा आम वातावरण परिवर्तन के कारण आम की साइज और बनावट में बड़ा परिवर्तन देखने को मिल रहा है। कुछ वर्षों से लोग यह बस देखकर लोग हैरान है। बताया जा रहा है कि गोविंदगढ़ तालाब से आसपास ईट भट्टों से उठने वाले धुंए के कारण यह अफलन की स्थिति बन रही है। वहीं इसकी साइज में भी परिवर्तन है साथ ही गोविंदगढ़ जलाशय के संकट खड़ा होने पर इस प्रजाति पर भी संकट खड़ा हो गया है।
गोविदगढ़ के स्थानीय लोग बताते है यहां का प्रसिद्ध सुंदरजा आम वातावरण परिवर्तन के कारण आम की साइज और बनावट में बड़ा परिवर्तन देखने को मिल रहा है। कुछ वर्षों से लोग यह बस देखकर लोग हैरान है। बताया जा रहा है कि गोविंदगढ़ तालाब से आसपास ईट भट्टों से उठने वाले धुंए के कारण यह अफलन की स्थिति बन रही है। वहीं इसकी साइज में भी परिवर्तन है साथ ही गोविंदगढ़ जलाशय के संकट खड़ा होने पर इस प्रजाति पर भी संकट खड़ा हो गया है।
सुंदरजा आम रीवा राजघराने की पहली पसंद रहा है। स्थानीय लोग बताते है कि आम को लेकर महाराजा गुलाब सिंह ने गोविंदगढ़ तालाब के आसपास कई बार विभिन्न आम की प्रजातियों के पेड़ लगवाएं। लेकिन सुन्दरजा आम पहली पसंद रहा है। यही कारण है कि गुलाब सिंह के किला और इसके आसपास कई बड़े बगीचे लगवाए गए थे। जो इनमें गोविदबाग प्रमुख हैं। राजघराने से अन्य राजाओं को यहां भेंट में सुन्दरजा आम भेजा जाता रहा है। इसके बाद मार्तंड सिंह ने भी इस आम को लेकर आसपास ग्रामीण क्षेत्र सुन्दरजा के पेड़ लगवाएं
प्रतिवर्ष होता है 40 से 50 हजार कैरेट उत्पादन
गोविंदगढ़ के बगीचों से सुंदरजा आम का प्रतिवर्ष लगभग 40 से 50 हजार कैरेट उत्पादन होता है। जिसमें से ज्यादातर आम भारत के लखनऊ सहित अन्य बड़े शहरों के साथ ही विदेशों को भेजा जाता है। बागवानों एवं स्थानीय लोगों की मानें तो जब आम पकने लगता है तो प्रतिदिन 100 से डेढ़ सौ कैरेट तक उत्पादन होता है। एक किलो आम की कीमत लगभग 150 रुपए है। जिससे प्रतिवर्ष लाखों रुपए का आम विदेशों में भेजा जाता है।
गोविंदगढ़ के बगीचों से सुंदरजा आम का प्रतिवर्ष लगभग 40 से 50 हजार कैरेट उत्पादन होता है। जिसमें से ज्यादातर आम भारत के लखनऊ सहित अन्य बड़े शहरों के साथ ही विदेशों को भेजा जाता है। बागवानों एवं स्थानीय लोगों की मानें तो जब आम पकने लगता है तो प्रतिदिन 100 से डेढ़ सौ कैरेट तक उत्पादन होता है। एक किलो आम की कीमत लगभग 150 रुपए है। जिससे प्रतिवर्ष लाखों रुपए का आम विदेशों में भेजा जाता है।
दिखने में सुंदर तो स्वाद से लबालब मिठास से भरा हुआ सुंदरजा आम इन दिनों गोविंदगढ़ की बगिया में जहां पकने के बाद अपनी महक फैला रहा है वहीं इस आम की मांग भी लगातार बढ़ती जा रही है। खास बात यह है कि यह आम दिल्ली-मुंबई के साथ ही वहां विदेश भेज दिया जाता है। स्थानीय स्तर पर सुंदरजा आम की कीमत वर्तमान समय में सवा सौ रुपए किलो के हिसाब से बिक्री हो रहा है। गोविंदगढ़ के आसपास के जानकारों ने बताया कि विदेशों में रहने वाले इस आम को मंगाते है। इनमें इंग्लैंड मलेशिया जैसे देश शामिल है।