इससे शहर की प्रमुख सड़कों को साफ कराया जाएगा। स्वच्छता सर्वेक्षण के मानकों में स्वीपिंग मशीनों से सफाई कराने को लेकर भी अंक निर्धारित किए गए हैं। हालांकि इन मशीनों से शहर की सफाई को लेकर कोई विशेष अंतर नजर नहीं आता।
पूर्व में चार मशीनें किराए पर लगाई गई थी और बड़ी मात्रा में राशि हर महीने 42 लाख की खर्च की जा रही थी। एक या दो मशीनें ही सड़क पर चलती नजर आती थी अन्य में खराबी बताकर खड़ा रखा जाता था। इस मामले की शिकायत के बाद जांच भी बैठाई गई लेकिन निगम के अधिकारियों ने संबंधित कंपनी पर दरियादिली दिखाई और पूरी राशि का भुगतान कर दिया। मशीनों को किराए पर लेने से शहर की स्वच्छता रैंकिंग पर कोई खास असर नहीं पड़ा। जिस साल के लिए इतनी बड़ी राशि खर्च की गई थी उस दौरान नगर निगम को स्वच्छता में टाप १०० से बाहर का स्थान मिला था। इतना ही नहीं कचरा मुक्त शहर के लिए हुए अलग सर्वे में तो निगम को कोई ग्रेड ही नहीं मिली थी।
जानकारी मिली है कि इस वर्ष नौ लाख रुपए प्रति महीने के किराए पर दिल्ली की एजेंसी को ठेका दिया गया है। स्वच्छता सर्वेक्षण में पूरे साल की स्वच्छता तैयारियों का मूल्यांकन होना है लेकिन नगर निगम ने मुख्य सर्वे को ध्यान में रखते हुए स्वीपिंग मशीन मंगाई है। इससे जाहिर होता है कि केवल रैंङ्क्षकग के लिए तैयारियां की जा रही हैं, शहर की सफाई व्यवस्था पर ध्यान नहीं है।
निगम के इस निर्णय का एक ओर स्वागत किया जा रहा है कि इस बार फिजूलखर्ची रोकी गई है। साथ ही सवाल भी उठाए गए हैं कि जब कई महीने से श्रमिकों द्वारा सड़कें साफ की जा रही हैं तो अब अतिरिक्त राशि खर्च करने की जरूरत समझ से परे है।
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