संदर्भ एवं शोध केन्द्र का करेगा काम
कोल जनजाति संग्रहालय शोध एवं संदर्भ केन्द्र के रूप में काम करेगा। विदेश आने वाले पर्यटकों को एक ही स्थान पर कोल जनजाति से जुड़ी वह हर जानकारी मिल सकेगी, जो इनकी जीवन शैली का हिस्सा हैं। इसमें यह भी बताने का प्रयास किया जाएगा कि विकास के साथ किस तरह से सांस्कृतिक बदलाव भी हो रहा है। शोधार्थियों के लिए यह काफी सहायक होगा। अभी गांव-गांव जाकर इनके बारे में जानकारी जुटाने में मशक्कत करनी होती है।
कोल जनजाति संग्रहालय शोध एवं संदर्भ केन्द्र के रूप में काम करेगा। विदेश आने वाले पर्यटकों को एक ही स्थान पर कोल जनजाति से जुड़ी वह हर जानकारी मिल सकेगी, जो इनकी जीवन शैली का हिस्सा हैं। इसमें यह भी बताने का प्रयास किया जाएगा कि विकास के साथ किस तरह से सांस्कृतिक बदलाव भी हो रहा है। शोधार्थियों के लिए यह काफी सहायक होगा। अभी गांव-गांव जाकर इनके बारे में जानकारी जुटाने में मशक्कत करनी होती है।
पांच एकड़ भूमि की हो रही तलाश
संग्रहालय के लिए कम से कम पांच एकड़ भूमि की जरूरत होगी। यह उपलब्धता शासन द्वारा कराई जाएगी। रीवा और सीधी दोनों जगह अभी अध्ययन किया जा रहा है। सीधी में करीब १३ और रीवा में ७ हजार परिवार कोल जाति के हैं। इनकी जनसंख्या लाखों में है। रीवा के त्योंथर में कोल जाति के राजा शासक रहे हैं, कहा जाता है कि ईशा पूर्व से इनका शासन रहा है। यहां पर अभी उनकी गढ़ी मौजूद है। हालांकि वह खंडहर के रूप में तब्दील हो चुकी है। संग्रहालय के लिए उसके आसपास भी विकल्प तलाशा जा रहा है। हालांकि सीधी में जनसंख्या अधिक होने के चलते वहां पर संभावना अधिक बताई जा रही है।
संग्रहालय के लिए कम से कम पांच एकड़ भूमि की जरूरत होगी। यह उपलब्धता शासन द्वारा कराई जाएगी। रीवा और सीधी दोनों जगह अभी अध्ययन किया जा रहा है। सीधी में करीब १३ और रीवा में ७ हजार परिवार कोल जाति के हैं। इनकी जनसंख्या लाखों में है। रीवा के त्योंथर में कोल जाति के राजा शासक रहे हैं, कहा जाता है कि ईशा पूर्व से इनका शासन रहा है। यहां पर अभी उनकी गढ़ी मौजूद है। हालांकि वह खंडहर के रूप में तब्दील हो चुकी है। संग्रहालय के लिए उसके आसपास भी विकल्प तलाशा जा रहा है। हालांकि सीधी में जनसंख्या अधिक होने के चलते वहां पर संभावना अधिक बताई जा रही है।
इन जनजातियों के लिए भी संग्रहालय स्थापित होंगे
प्रदेश के अलग-अलग हिस्सों में जहां अधिक संख्या में जनजातियां निवास करती हैं, वहां पर उनके संग्रहालय स्थापित किए जाएंगे। बताया गया है कि माण्डवगढ़ में भील, भिलाला, बारेला, पटलिया और रांठ जनजाति पर संग्रहालय बनाने की तैयारी है। वहीं छिन्दवाड़ा में भारिया और मवासी, डिडौरी में गोंड़ और बैगा, बैतूल में गोंड़, कोरकू और श्योपुर कला में सहरिया जनजाति के जनजीवन, कला, साहित्य, संस्कृति पर एकाग्र जनजातीय संग्रहालय की स्थापना की जा रही है।
प्रदेश के अलग-अलग हिस्सों में जहां अधिक संख्या में जनजातियां निवास करती हैं, वहां पर उनके संग्रहालय स्थापित किए जाएंगे। बताया गया है कि माण्डवगढ़ में भील, भिलाला, बारेला, पटलिया और रांठ जनजाति पर संग्रहालय बनाने की तैयारी है। वहीं छिन्दवाड़ा में भारिया और मवासी, डिडौरी में गोंड़ और बैगा, बैतूल में गोंड़, कोरकू और श्योपुर कला में सहरिया जनजाति के जनजीवन, कला, साहित्य, संस्कृति पर एकाग्र जनजातीय संग्रहालय की स्थापना की जा रही है।
बनाई जा रही लघु फिल्में
डॉ. महेशचंद्र शांडिल्य, शोध अधिकारी आदिवासी लोककला अकादमी भोपाल ने बताया कि जनजातियों के जनजीवन पर लघु फिल्में बनाई जा रही हैं, साथ ही उनकी परंपरा और जीवनशैली पर अध्ययन किया जा रहा है। कोल जनजातियों पर फोकस करते हुए रीवा एवं सीधी में अध्ययन शुरू किया है। यहां पर संग्रहालय स्थापित किया जाना है। स्थल का चयन अभी नहीं हुआ है।
डॉ. महेशचंद्र शांडिल्य, शोध अधिकारी आदिवासी लोककला अकादमी भोपाल ने बताया कि जनजातियों के जनजीवन पर लघु फिल्में बनाई जा रही हैं, साथ ही उनकी परंपरा और जीवनशैली पर अध्ययन किया जा रहा है। कोल जनजातियों पर फोकस करते हुए रीवा एवं सीधी में अध्ययन शुरू किया है। यहां पर संग्रहालय स्थापित किया जाना है। स्थल का चयन अभी नहीं हुआ है।