इससे निजात दिलाने के लिए जोधपुर के एक उद्यमी ने एमबीएम इंजीनियरिंग कॉलेज में खनन विभाग के इंजीनियर तथा तकनीकी विशेषज्ञ के साथ मिलकर ड्रिलिंग डस्ट से बचाव यंत्र का इजाद किया है। दावा है कि इसके उपयोग से खान मजदूरों को डस्ट की घातकता से राहत मिलेगी।
कम्प्रेसर ट्रॉली पर हो सकेगी स्थापित जिले में सैण्ड स्टोन की 14 हजार से अधिक खानें हैं। इनमें लाखों श्रमिक काम करते हैं। वर्तमान में कम्प्रेस्ड एयर चलित जैक हैमर से ड्रिलिंग की जाती है। इससे धूल व डस्ट उत्पन्न होती है। इस डस्ट से निजात पाने के लिए एमबीएम इंजीनियरिंग कॉलेज में खनन विभाग के प्रोफेसर एसके परिहार व तकनीकी विशेषज्ञ राजीव शर्मा ने न्यू लक्ष्मी इंजीनियरिंग व ट्रॉली वक्र्स के जीवाराम जांगिड़ के साथ मिलकर डस्ट को एकत्रित करने का उपकरण तैयार किया है।
इसे उसी कम्प्रेसर ट्रॉली पर स्थापित किया जा सकता है, जिस पर जैक व हैमर लगा हुआ होता है। उसी कम्प्रेसर से उपकरण को भी पावर मिलती रहती है। यानी उपकरण के लिए पृथक से ट्रैक्टर की जरूरत नहीं होगी। यह उपकरण ड्रिलिंग से उत्पन्न डस्ट खींच फिल्टर पद्धति से हवा से अलग करके एकत्रित करता है। फिर परिशोधित हवा को वातावरण में छोड़ दिया जाता है।
खान में कहीं भी लगा सकेंगे डस्ट से बचाव यंत्र को कम्प्रेसर ट्रॉली पर स्थापित करने से खान में कहीं पर भी उपयोग लिया जा सकेगा। सक्शन पाइप की मदद से पन्द्रह मीटर से अधिक दूरी से भी डस्ट खींची जा सकती है। यह उपकरण कम्प्रेसर के साथ स्वत: चालू व बंद हो जाता है।
सिलिकोसिस से अब तक ढाई सौ श्रमिकों की मौत सैण्ड स्टोन से निकलने वाली डस्ट श्रमिकों के स्वास्थ्य पर बहुत बुरा असर डालती है। लम्बे समय तक यह कार्य करने पर श्रमिक सिलिकोसिस से ग्रस्त हो जाते हैं। उनकी आयु घट जाती है और समय से पहले ही मृत्यु तक हो रही है। खान मजदूर सुरक्षा अभियान के प्रबंध न्यासी डॉ. राणा सेनगुप्ता ने बताया कि राजस्थान में 5344 श्रमिक सिलिकोसिस से ग्रस्त हैं। 248 श्रमिकों की जान जा चुकी है।
परिणाम संतोषजनक जोधपुर व बालेसर के खनन क्षेत्र में गत दिनों माइनिंग तथा पॉल्यूशन डिपार्टमेंट के अधिकारियों व श्रमिकों के बीच यंत्र का डेमोन्स्ट्रेशन किया गया था। सभी ने संतोषजनक व उपयोगी बताया था।
-प्रोफेसर एसके परिहार, खनन विभाग, एमबीएम इंजीनियरिंग कॉलेज