‘खुशी’ का सहयोग
नेत्र रोग विभागाध्यक्ष डॉ. शशि जैन का कहना है कि आई बैंक खोल देने मात्र से नेत्रदान की परिकल्पना को साकार नहीं किया जा सकता था। जरूरत थी कि लोग मरणोपरांत नेत्रदान कराएं। ऐसे में खुशी फाउंडेशन के कमलेश और उनकी टीम आगे आई। कोई मृत्यु होती थी तो फाउंडेशन के सदस्य पहुंचते थे परिजनों को प्रेरित करते थे। उनके सराहनीय सहयोग से ही नेत्रदान का सिलसिला आगे बढ़ रहा है।
इन्होंने किए नेत्रदान
डॉ. एससी सक्सेना, अमित जैन, क्षमा बाई जैन, भगनानी देवी, मीरा देवी आहुजा, कीमत राम छुगानी, गंगा प्रसाद तिवारी, सुखनंनद जैन, प्रताप राय राजानी, लक्ष्मी नारायण श्रीवास्तव, महेश कुमार जिवनानी, गुनुआ देवी गौतम, पारस राम मलकानी, धर्मदास हर्षवानी, जेठी बाई बाधवानी, कमला देवी साधवानी, कमला देवी बजाज, प्रतिमा श्रीवास्तव, आसनदास बाधवानी, महेश थावानी, रुकमनी धमेचा, राम प्रताप अग्रवाल, रुकी बाई, साधोरामल राजपाल, लक्ष्मण दास सचदेव, सरस्वती देवी सानेता, रानी देवी बधेचा,राधा रानी ताम्रकार आदि ने मरणोपरांत नेत्रदान किया है।
आंकड़ों पर एक नजर
-2500 लगभग दृष्टिबाधित लोग हैं जिले में जिन्हें नेत्र ज्योति की जरूरत है।
-70 से ज्यादा जरूरतमंद जीएमएच के नेत्र रोग विभाग में रजिस्टर्ड हैं।
-3,710 नेत्रदान हुए प्रदेश में। जो लक्ष्य एक हजार से 3 गुना ज्यादा है।
-2016-17 में लक्ष्य 50 हजार से 30त्न ज्यादा यानी 65,135 नेत्रदान हुए देश में।
-15 लाख लोग देश में कॉर्निया से जुड़ी दृष्टिहीनता के शिकार हैं।
-48 हजार कॉर्निया प्रत्यारोपण 2016-17 में हुए, जबकि सालाना जरूरत एक लाख है।
-175 नेत्रदान रोज देश में हो रहे हैं।