scriptपन्ना की महारानी ने रीवा चिकित्सालय में 1998 में किया था नेत्रदान, 17 साल बाद चल पड़ा सिलसिला | The queen of panna eye donate in Rewa 1998 chain after 17 years | Patrika News

पन्ना की महारानी ने रीवा चिकित्सालय में 1998 में किया था नेत्रदान, 17 साल बाद चल पड़ा सिलसिला

locationरीवाPublished: Oct 13, 2017 02:33:39 pm

Submitted by:

Dilip Patel

विभागाध्यक्ष डॉ. शशि जैन का एक प्रयास और अंधेरी जिंदगी को मिलने लगी रोशनी, दो साल में हुए 28 नेत्रदान, जागरुकता बढ़ी

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rewa eye donate

रीवा। नेत्रदान को लेकर जिले में जागरुकता बढ़ी है। जिसका असर अब दिखने लगा है। बीते दो साल से हर महीने एक नेत्रदान हो रहा है और दो लोगों की अंधेरी जिंदगी में रोशनी की किरण फूट रही है।
सिर्फ एक प्रयास ने 17 साल के विराम के बाद रोशनी की नई राह दिखाई है।
बात 1998 से शुरू होती है। पन्ना की महारानी ने श्यामशाह चिकित्सा महाविद्यालय के गांधी स्मारक चिकित्सालय में नेत्रदान किया था। इसके बाद से सत्रह साल तक एक भी नेत्रदान नहीं हुआ। मामला आई बैंक के रजिस्ट्रेशन को लेकर फंस गया था। इस अवधि में कई विभागाध्यक्ष रहे लेकिन नेत्रदान की परंपरा को शुरू नहीं कर सके।
2014 में डॉ. पीसी द्विवेदी नेत्र रोग विभागाध्यक्ष का पद डॉ. शशि जैन ने संभाला। उनकी पहली प्राथमिकता आई बैंक की शुरुआत रही। तत्कालीन क लेक्टर राहुल जैन से कई बार मुलाकात कर उन्हें इस कार्य में सहयोग के लिए राजी किया। कलेक्टर की अगुवाई में स्थानीय कमेटी गठित की गई। माइक्रोबायोलॉजी और फोरेंसिक विभाग के विभागाध्यक्षों के साथ कई बार बैठकें हुई। आखिर में डॉ. जैन की कोशिशें रंग लाई और मार्च 2015 में आई बैंक रजिस्टर्ड हो गया। इसी साल अगस्त में सत्रह साल के लंबे इंतजार के बाद नेत्रदान हुआ। यह सिलसिला शुरू हुआ तो फिर थमा नहीं…लगातार जारी है। अभी तक कुल 28 नेत्रदान हो चुके हैं। 52 जरूरतमंदों को नेत्र प्रत्यारोपण कर नेत्र ज्योति प्रदान की गई है। अच्छी बात ये है कि हर महीने नेत्रदान होता है।

‘खुशी’ का सहयोग
नेत्र रोग विभागाध्यक्ष डॉ. शशि जैन का कहना है कि आई बैंक खोल देने मात्र से नेत्रदान की परिकल्पना को साकार नहीं किया जा सकता था। जरूरत थी कि लोग मरणोपरांत नेत्रदान कराएं। ऐसे में खुशी फाउंडेशन के कमलेश और उनकी टीम आगे आई। कोई मृत्यु होती थी तो फाउंडेशन के सदस्य पहुंचते थे परिजनों को प्रेरित करते थे। उनके सराहनीय सहयोग से ही नेत्रदान का सिलसिला आगे बढ़ रहा है।

इन्होंने किए नेत्रदान
डॉ. एससी सक्सेना, अमित जैन, क्षमा बाई जैन, भगनानी देवी, मीरा देवी आहुजा, कीमत राम छुगानी, गंगा प्रसाद तिवारी, सुखनंनद जैन, प्रताप राय राजानी, लक्ष्मी नारायण श्रीवास्तव, महेश कुमार जिवनानी, गुनुआ देवी गौतम, पारस राम मलकानी, धर्मदास हर्षवानी, जेठी बाई बाधवानी, कमला देवी साधवानी, कमला देवी बजाज, प्रतिमा श्रीवास्तव, आसनदास बाधवानी, महेश थावानी, रुकमनी धमेचा, राम प्रताप अग्रवाल, रुकी बाई, साधोरामल राजपाल, लक्ष्मण दास सचदेव, सरस्वती देवी सानेता, रानी देवी बधेचा,राधा रानी ताम्रकार आदि ने मरणोपरांत नेत्रदान किया है।

आंकड़ों पर एक नजर
-2500 लगभग दृष्टिबाधित लोग हैं जिले में जिन्हें नेत्र ज्योति की जरूरत है।
-70 से ज्यादा जरूरतमंद जीएमएच के नेत्र रोग विभाग में रजिस्टर्ड हैं।
-3,710 नेत्रदान हुए प्रदेश में। जो लक्ष्य एक हजार से 3 गुना ज्यादा है।
-2016-17 में लक्ष्य 50 हजार से 30त्न ज्यादा यानी 65,135 नेत्रदान हुए देश में।
-15 लाख लोग देश में कॉर्निया से जुड़ी दृष्टिहीनता के शिकार हैं।
-48 हजार कॉर्निया प्रत्यारोपण 2016-17 में हुए, जबकि सालाना जरूरत एक लाख है।
-175 नेत्रदान रोज देश में हो रहे हैं।
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