रीवा. जिले के कई हिस्से में हजारों वर्ष पुरानी सभ्यता के अवशेष धरती के नीचे दबे होने का दावा पुरातत्व विभाग का रहा है। जिसमें क्योटी, दुलहरा, शाहपुर एवं कपुरी आदि गांवों में पुरातत्व अवशेष धरती के नीचे दबे होने की जानकारी दी गई है। पिछले दिनों कराई गई खुदाई में कुछ ऐसे अवशेष मिले हैं, जिससे पुरातत्ववेत्ताओं के दावे को बल मिलता है। खुदाई के दौरान कई नक्काशीदार चट्टानें, मूर्तियां और आकृतियां मिली हैं।
जिले मुख्यालय से 43 किमी दूर प्राकृतिक एवं ऐतिहासिक महत्व के स्थान क्योटी में दो प्रपात, ऐतिहासिक किला, टीला एवं मंदिरों की श्रृंखला है। वहीं क्योटी, दुलहरा, शाहपुर तथा कपुरी ग्रामों के बीच के भू-भाग में धरती के अंदर हजारों वर्ष पुरानी सभ्यता के अवशेष दबे पड़े होने की जानकारी दी गई है। पुरातत्व विभाग द्वारा 47 लाख रुपए खर्चकर किले का जीर्णोद्धार कराया गया था। किले के सामने नगर संरचना के अवशेष विस्तृत टीलों के रूप में दिखाई देते हैं।
दुलहरा गांव के किसान शिवचरण पाण्डेय ने जेसीबी मशीन से भीटें की खुदाई कराई तो बड़ी मात्रा में नक्काशीदार छोटे, बड़े व मझोले आकार के पत्थरों के अलावा बड़ी संख्या मे खंडित मूर्तियां भी निकली हैं। इसके पहले भी इसी क्षेत्र से मूर्तियां मिली थीं। जिनमें से एक गणेशजी की खंडित प्रतिमा आज भी दुलहरा स्कूल में रखी हुई है। बहरहाल किसान द्वारा खुदाई का काम रोक दिया गया है। जबकि घरों तथा मंदिरों में लगाई जाने वाली नक्काशीदार चट्टानें तथा खंडित मूर्तियां आज भी यहां बिखरी हैं।
हजारों वर्ष पहले यहां बसा रहा होगा नगर
पूर्विया के बगल से जीरा नद बहता है जो कभी सदानीरा हुआ करता था। पुराने जमाने में नगर, पानी की सुविधा को ध्यान में रखते हुए नदी और नाले के किनारे बसाए जाते थे। हो सकता है कि इस स्थान पर हजारों वर्ष पहले कोई किला अथवा नगर रहा हो जो कालांतर में कतिपय कारणों से ध्वस्त होकर जमीदोज हो गया हो। आज भी लगभग एक किमी लम्बाई के क्षेत्र में फैले प्रस्तर खंड किसी किले या गढ़ी के खंडहर प्रतीत होते हैं। खुदाई के दौरान बड़ी संख्या में मूर्तियों तथा नक्काशीदार चट्टानों का निकलना संकेत करता है कि यहां पुरानी सम्यता दफन है। यह पुरातत्व विभाग के लिए शोध का विषय है।
पूर्विया के बगल से जीरा नद बहता है जो कभी सदानीरा हुआ करता था। पुराने जमाने में नगर, पानी की सुविधा को ध्यान में रखते हुए नदी और नाले के किनारे बसाए जाते थे। हो सकता है कि इस स्थान पर हजारों वर्ष पहले कोई किला अथवा नगर रहा हो जो कालांतर में कतिपय कारणों से ध्वस्त होकर जमीदोज हो गया हो। आज भी लगभग एक किमी लम्बाई के क्षेत्र में फैले प्रस्तर खंड किसी किले या गढ़ी के खंडहर प्रतीत होते हैं। खुदाई के दौरान बड़ी संख्या में मूर्तियों तथा नक्काशीदार चट्टानों का निकलना संकेत करता है कि यहां पुरानी सम्यता दफन है। यह पुरातत्व विभाग के लिए शोध का विषय है।
एक रात में तालाब नहीं बन सका क्षेत्र के बुजुर्गों की मानें तो क्योटी प्रपात के दक्षिणी-पश्चिमी भाग में स्थित टीला में बाजार था। टीले के दक्षिण में ऐतिहासिक आल्हा तालाब स्थित है। इस तालाब का निर्माण महोबा के चंदेल सरदार आल्हा के द्वारा रातोंरात कराया गया था। दुलहरा निवासी 75 वर्षीय उमाकान्त पाण्डेय के अनुसार आल्हा तालाब के पश्चिमी भाग पर आल्हा के छोटे भाई ऊदल द्वारा भी तालाब का निर्माण शुरू किया गया था, किन्तु एक रात में तालाब नहीं बन सका। आज वह स्थान पूर्विया के नाम से जाना जाता है। जिस पर दुलहरा और शाहपुर के लोगों का कब्जा है। लेकिन भीटा आज भी शासकीय है, जिसपर अतिक्रमणकारियों की नजर पड़ चुकी है।
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किसान की खुदाई में कुछ पुरानी चीजें मिली हैं तो तहसीलदार मौके पर जाकर वस्तुस्थिति की जानकारी लेंगे। उनकी रिपोर्ट पर पुरातत्व विभाग को लिखा जाएगा और पुरात्व विभाग द्वारा सर्वेक्षण कराकर इसका परीक्षण करवाया जायेगा कि वास्तव में क्या है।
– एपी द्विवेदी, एसडीएम सिरमौर
किसान की खुदाई में कुछ पुरानी चीजें मिली हैं तो तहसीलदार मौके पर जाकर वस्तुस्थिति की जानकारी लेंगे। उनकी रिपोर्ट पर पुरातत्व विभाग को लिखा जाएगा और पुरात्व विभाग द्वारा सर्वेक्षण कराकर इसका परीक्षण करवाया जायेगा कि वास्तव में क्या है।
– एपी द्विवेदी, एसडीएम सिरमौर