ईसा पूर्व छठवीं शताब्दी में त्योंथर और सितलहा में कोल राजाओं का विस्तार हुआ था, जिन्होंने यहां कोलगढ़ी का निर्माण करवाया था। यहां अंतिम कोल राजा नागल कोल थे, जिन्होंने 10 से 12 वर्ष तक शासन किया था। इस गढ़ी में आकर्षक शैल चित्र मौजूद हैं। चित्र में एक मानव के सिर पर मुकुट लगा है जो संभवत: समकालीन राजा है। तलवार लिए हुए सैनिक भी उनके पास खड़े हैं। इस गढ़ी को बाढ़ के संभावित खतरे से सुरक्षित रखते हुए बनवाया गया था। यह एक बड़े टीले पर स्थित है जो त्योंथर के सामान्य धरातल से 10 मीटर ऊपर है। कितनी भी ज्यादा बाढ़ त्योंथर में आ जाए, लेकिन इस गढ़ी को नुकसान नहीं पहुंचता है। सालों से गौरवशाली इतिहास समेटे यह कोलगढ़ी अपना अस्तित्व बचाने को संघर्ष कर रही है। इसके महत्व को देखते हुए प्रशासन इसे सुरक्षित करने का प्रयास कर रहा है। तत्कालीन एसडीएम संजीव पाण्डेय ने इसे संरक्षित करने के लिए पुरातत्व विभाग को पत्र लिखा था। वर्तमान एसडीएम पीके पाण्डेय ने पुन: पत्र भेजा है।
बेनवंशी राजा ने कर लिया था कब्जा
इतिहासकारों के मुताबिक, यहां आदिवासी राजा के बाद बेनवंशी राजा ने इस पर कब्जा कर लिया था। गंगा तट झूंसी से त्योंथर आए बेनवंशी राजा ने त्योंथर को अपनी राजधानी बनाया। कोलगढ़ी में आदिवासी राजा का अधिकार था। झूंसी से बेदखल होकर आए बेनवंशी राजा को राज्य स्थापना एवं सुरक्षा की दृष्टि से किले की आवश्यकता थी। वे आदिवासियों को युद्ध में सीधे पराजित करने की स्थिति में नहीं थे। उन्होंने छल का सहारा लिया और आदिवासी राजा की कन्या से विवाह का प्रस्ताव रखा। वेनवंशी राजा की सेना बाराती बनकर किले में प्रवेश कर गई और बारात के रास-रंग में मदहोश आदिवासी राजा को मारकर किले पर कब्जा कर लिया।
कोलगढ़ी में 100 से अधिक शैल चित्र हैं। इनमें कोल राजाओं का इतिहास प्रदर्शित है। उनकी शासन व्यवस्था से जुड़े कई महत्वपूर्ण तथ्य इन शैल चित्रों में हैं जिसका कई बार अध्ययन करने का प्रयास भी किया जा चुका है। इसकी संरचना खास है। गुम्बज को देखते हुए लोग अपनी दांतों तले ऊंगलियां दबा लेते हैं। इसका निर्माण पत्थर और खजुरी ईंट से कराया गया था। पेस्ट बनाने के लिए कत्था, गुढ़, उड़द की दाल, बेल, सुरखी व चूना सहित अन्य सामान का इस्तेमाल किया गया था। इस पेस्ट से बने भवन की लाइफ 300 साल तक मानी जाती है।
इतिहासकार असद खान ने बताया कि त्योंथर क्षेत्र में कोल राजाओं का शासन था, जिन्होंने यहां गढ़ी बनवाई थी। इसमें मौजूद शैल चित्रों में इतिहास के अनछुए पहलू छिपे हैं। इसको बनाने में पत्थर व खजुरी ईंट का इस्तेमाल किया गया था और एक विशेष प्रकार का पेस्ट तैयार किया गया था।