वह बच्चों को जगह-जगह गाड़ी रोककर उतारता था और फिर गाड़ी में बैठाकर चल देता था। न तो बच्चों के समझ में कुछ आ रहा था और न ही चालक उनको कुछ बता रहा था। डरे सहमे बच्चे गाड़ी के अंदर ही बैठे रहे और मौके का इंतजार कर रहे थे। चालक रिंकू रावत बच्चों को लेकर चोरहटा आाया और बीटीएल फैक्ट्री के पास से दो किमी दूर अंदर गाड़ी लेकर आ गया। आगे एक नहर थी जिस पर ड्राइवर ने गाड़ी रोक दी और उसने बच्चों को पीछे आने के लिए बोल दिया। बच्चों के हांथ लगा यह मौका उन्होंने हांथ से नहीं जाने दिया और सारे बच्चे चालक के विपरित दिशा में भाग दिए। बच्चों को भागते देख ड्राइवर ने उनका पीछा करने का प्रयास किया लेकिन पकड़े जाने के डर से उसने कदम रोक लिये और फरार हो गया। बच्चों ने वहां से गुजर रहे लोगों से मोबाइल लेकर परिजनों को सूचना दी। इस दौरान एक बाइक सवार ने उनकी मदद की और कुछ बाइकों की व्यवस्था की। आधा दर्जन मोटर साइकिलों में सभी बच्चों को थाने लाया गया। थाने सुरक्षित पहुंचने पर बच्चों ने राहत की सांस ली।
छोटे-छोटे बच्चों के लिए गाड़ी में ढाई घंटे किसी यातना से कम नहीं थे। बच्चों को लेकर ड्राइवर शहर में घुमाता रहा। बच्चों ने उससे पूंछने का प्रयास किया कि आप कहां लेकर जा रहे हो तो गुस्से में ड्राइवर उनको लाल आंखें दिखाता था जिससे बच्चे सहम जाते थे। अनहोनी की आशंका से सभी बच्चे डरे हुए थे। उन्होंने कुछ जगह शोर मचाने का प्रयास भी किया लेकिन गाड़ी का ग्लास बंद होने की वजह से बच्चों की आवाज बाहर नहीं निकली।