ऐसा है विंध्य की जनता का सियासी सबक
सात साल बाद हुए गांव और नगर सरकार चुनाव के परिणाम विंध्य में अप्रत्याशित रहे हैं। महापौरी जीतकर आम आदमी पार्टी ने सिंगरौली के रास्ते सूबे में प्रवेश किया तो कांग्रेस 25 साल बाद रीवा में भाजपा का तिलिस्म तोड़ पाई। सतना में भी बड़ी मुश्किल से भाजपा की इज्जत बची। विंध्य के ये नतीजे आगे की सियासत की कुछ और ही तस्वीर दिखा रहे हैं। रीवा संभाग में तीन नगर निगम और दो नगर पालिका सहित 26 निकाय हैं।
ज्यादातर भाजपा के कब्जे में थे। इस बार दो नगर निगम में महापौर सीट भाजपा से छिन गई। रीवा में कांग्रेस ने तो सिंगरौली में ‘आप’ ने कब्जा जमाया है। संभाग की दो नगर पालिका में से सीधी कांग्रेस के हाथ चली गई, जबकि मैहर का गढ़ भाजपा ने जीत लिया। 17 नगर परिषद में से 14 पर भाजपा, तीन पर कांग्रेस का वर्चस्व है।
रीवा में राजेन्द्र शुक्ला जैसे कुशल संगठक के होते हुए भी पार्टी एक नहीं हो पाई और उसे नगर निगम में हार मिली। वर्षों से कांग्रेस के कब्जे में रही मैहर नगर पालिका के लोगों ने भाजपा को बढ़त देकर विधायक नारायण त्रिपाठी को एक तरह से आगाह किया है। सीधी-चुरहट में भाजपा की हार कांग्रेस की वापसी के संकेत हैं तो चुरहट विधायक शरदेंदु तिवारी को अलर्ट करने वाले हैं।
विंध्य के इकलौते मंत्री रामखेलावन पटेल का घर अमरपाटन नगर परिषद भी भाजपा हार गई। भाजपा विधायक नागेंद्र सिंह के ‘दुर्ग’ नागौद नगर परिषद पर भी कांग्रेस ने कब्जा कर लिया। ये नतीजे कांग्रेस के लिए संजीवनी साबित हो रहे हैं तो सत्ताधारी नेताओं के लिए सीख।
25 वर्ष से भाजपा के कब्जे में रहे रीवा निगम में कांग्रेस को मिली जीत भी कई मायने में अहम है। 2018 के विधानसभा चुनाव में यहां कांग्रेस का सूपड़ा साफ हो गया था, लेकिन इस चुनाव में जिस तरीके से कांग्रेस के सभी बड़े नेता एकजुट दिखे उसका ही परिणाम है कि 25 साल बाद भाजपा का विजय रथ रुक गया। रीवा की इस जीत से विंध्य के कांग्रेसियों में उत्साह है। पिछला विधानसभा चुनाव हारने के बाद से उपेक्षित महसूस कर रहे अजय सिंह, पूर्व विस उपाध्यक्ष राजेंद्र सिंह, पूर्व विधायक यादवेंद्र सिंह ने कांग्रेस को बढ़त दिलाकर सियासी ताकत का अहसास कराया है।
विंध्य में कांग्रेस के पतन का प्रमुख कारण खेमेबाजी रही है। यह अब भाजपा में भी सामने आ रही है। रीवा-सतना में संगठन और विधायक का तालमेल नहीं दिखा तो यही हाल सीधी और सिंगरौली में भी रहा। भाजपा नेताओं ने पंचायत चुनाव में जिस तरह से ताकत झोंकी थी और जनता ने उनके परिवार और समर्थकों को नकार दिया, उससे संदेश जाता है कि जनता ने मर्जी से विधायक चुना था।
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