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Madhya pradesh: 24 लाख बच्चे बौने, कुपोषण से वजन भी कम

locationसागरPublished: Apr 09, 2022 06:42:32 am

Submitted by:

Rajendra Gaharwar

– मां की कोख से ही मिल रही दुर्बलता
सतना। कुपोषण का दंश बच्चों को कोख में मार रहा है, जो बच रहे हैं वह ऐसे गंभीर संकट के साथ दुनिया में आ रहे हैं कि भविष्य ही अनिश्चित दिखाई दे रहा है। कुपोषण की इस काली छाया की वजह से प्रदेश के पांच साल तक की उम्र के 35.7 प्रतिशत बच्चे बौने हो गए हैं। मध्यप्रदेश के महिला बाल विकास के आंकड़ों के अनुसार पूरक पोषण आहार के लिए 5 साल तक की उम्र के 65 लाख बच्चे पंजीकृत हैं।

कुपोषण का दंश

मां की गोद में कुपोषित बच्चा

अगर इन आंकड़ों से हिसाब लगाएं तो 24 लाख से अधिक बच्चों का कद और वजन उम्र के लिहाज से कम है। जिस तरह का उनका शारीरिक विकास और जीवन चक्र है, उससे एक पूरी पीढ़ी के बौने रह जाने का खतरा है। मां का कुपोषण ही इसके लिए जिम्मेदार है। सरकारी सर्वे बताते हैं कि 15 से 49 साल की उम्र की 50 प्रतिशत से अधिक महिलाएं एनीमिया की शिकार हैं। यही वजह है कि जब वे गर्भधारण करती हैं तो इसी एनीमिया का असर बच्चों पर पड़ता है।
ऐसे समझें खतरा
सतना की शहरी बस्ती की पूनम चौहान को आठ माह का गर्भ था, अस्पताल लाया गया तो ब्लड सैंपल लेने में चार घंटे लग गए। वजह नसों में खून ही नहीं था। इलाज के दौरान कुछ घंटे बाद ही उनकी मौत हो गई और कोख में बच्चे की चीख भी घुट गई। जांच में पता चला कि महज 3 ग्राम हीमोग्लोबिन था। वहीं, रीवा के गांधी स्मारक चिकित्सालय में गंभीर एनीमिया की शिकार मां ने शिशु को जन्म तो दिया पर उसका वजन और लंबाई औसत से आधे से भी कम है।
सतना में बच्चों की आधी आबादी बौनी
लोकसभा में महिला बाल विकास मंत्रालय ने नेशनल फैमिली हेल्थ सर्वे के हवाले से जो रिपोर्ट पेश की है उसके अनुसार बच्चों के शारीरिक विकास के मामले में मध्यप्रदेश के सात जिलों की सबसे खराब स्थिति है। सतना जिले के पांच साल तक की उम्र के 49 फीसदी बच्चे बौने पाए गए हैं। दूसरे स्थान पर शहडोल 44 प्रतिशत और तीसरे में सागर है, जहां के 42 प्रतिशत बच्चों का कद और वजन उम्र के हिसाब से कम पाया है। इनके साथ आगर मालवा, बालाघाट, हरदा और रीवा बच्चों के ठिगनेपन के मामले में प्रदेश के 35.7 प्रतिशत के आंकड़े से आगे हैं।

1000 दिन अहम, लापरवाही पड़ रही भारी
भ्रूण के कोख में आने से लेकर शिशु के अपने पैरों पर चलने तक के 1000 दिन अहम माने जाते हैं। यहीं से उसके जीवन चक्र के साथ शारीरिक विकास की यात्रा शुरू होती है। शिशु रोग विशेषज्ञ डॉ ज्योति सिंह बताती हैं कि जिस तरह हादसे के लिए गोल्डन टाइम की कल्पना की जाती है, उसी तरह शिशु के लिए भी यह 1000 दिन गोल्डन टाइम होते है। कोख में पलने से लेकर उसके पैदा होने तक बेहतर देखभाल ही बच्चे के भविष्य की राह आसान करती है।

मां की सेहत से बनेगी बात
रीवा मेडिकल कॉलेज की प्रोफेसर और शिशु रोग विशेषज्ञ डॉ ज्योति सिंह कहती हैं कि बच्चों को स्वस्थ बनाना है तो मां की सेहत पर खास ध्यान देना होगा। उन्होंने बताया कि बच्चों के अंडरवेट होने और कद काठी कम होने का सीधा संबंंध उनके जन्म की समस्या से जुड़ा हुआ है। महिलाओं में एनीमिया यानी रक्त की कमी का स्तर बढ़ता जा रहा है। जिसका असर बच्चों के शारीरिक विकास पर पड़ रहा है।
चार साल में 6 फीसदी की कमी
लोकसभा में सरकार के द्वारा दिए गए जवाब की माने तो बच्चों की कद काठी कम होने और कुपोषण के स्तर में चार साल में 6 फीसदी की कमी आई है। सरकार ने बताया कि मध्यप्रदेश में 2015-16 के सर्वे में 42 फीसदी बच्चे ठिगने पाए गए थे, जो 2019-21 में घटकर 35.7 प्रतिशत पर आ गए हैं। ऐसा ही तीन अन्य संकेतकों में भी सुधार हुआ है।
बच्चों के शारीरिक विकास संकेतक में पिछड़े बड़े राज्य
राज्य ठिगनापन दुबलापन अल्पवजन
बिहार 42.9 22.9 41
उत्तरप्रदेश 39.7 17.3 32.1
झारखंड 39.6 22.4 39.4
गुजरात 39.4 21.6 38.7
मध्यप्रदेश 35.7 19 33
(नोट- 0 से 5 साल की उम्र के बच्चों के संकेतक के आंकड़े प्रतिशत में )
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