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करगिल युद्ध : कालीचरण और हेमंत ने सीने पर झेली थीं गोलियां, आज भी हैं दिलों में जिंदा

करगिल में दुश्मनों को नेस्तनाबूद करने वाली भारतीय सेना में शहर में दो जवानों ने भी शौर्य दिखाते हुए अपने प्राण राष्ट्ररक्षा पर न्यौछावर कर दिए थे।

सागरJul 26, 2018 / 05:04 pm

गुलशन पटेल

Anniversary of Kargil war

सागर. करगिल में दुश्मनों को नेस्तनाबूद करने वाली भारतीय सेना में शहर में दो जवानों ने भी शौर्य दिखाते हुए अपने प्राण राष्ट्ररक्षा पर न्यौछावर कर दिए थे। करगिल पर विजय की वर्षगांठ 26 जुलाई को पूरा शहर इन अमर शहीदों को आज भी याद करता है। लोग सिविल लाइन में स्थित शहीद कालीचरण तिवारी की प्रतिमा और सदर में शहीद हेमंत कटारिया की प्रतिमा पर श्रद्धासुमन अर्पित करने पहुंचते हैं।
किया था पाकिस्तानी सेना का मुकाबला
22 साल में ही देश के लिए शहीद होने वाले जवान कालीचरण तिवारी ने मोर्चे पर डटे रहकर 12 गोलियां सीने पर झेली थीं। जम्मू के 12 आरआर में तैनाती के दौरान कालीचरण पाकिस्तानी सेना की घुसपैठ का मुकाबला कर रहे थे। 28 सितम्बर 1976 को जन्म कालीचरण ने जब शहादत प्राप्त की उनकी उम्र केवल 22 साल ही थी लेकिन दिलो-दिमाग में मातृभूमि के लिए न्यौछावर होने का जज्बा भरा हुआ था। भाई दुर्गाचरण ने बताया कि कालीचरण बचपन से ही फौजी बनने का सपना देखते थे। परिवार में 5 भाई और 2 बहन हैं। अब तक वे बड़े भाई के गुजर जाने के बाद सदमे से उबर नहीं पाए हैं। लेकिन उन्होंने भाई की शहादत को केवल करगिल विजय दिवस पर याद करने और साल भर भूल जाने पर दु:ख जताया। उनका कहना है प्रशासन भी कोई पहल नहीं करता है।
दिलों में जिंदा है सदर के सपूत हेमंत
शहर ने करगिल युद्ध में देश की रक्षा के लिए कालीचरण तिवारी के अलावा एक और भी सपूत दिया था। सदर के हेमंत कटारिया ने भी करगिल की चोटियों पर ऑपरेशन रक्षक के तहत 21 जुलाई 2000 को अपने प्राणों की आहुति दे दी थी। उनकी याद में सदर क्षेत्र में प्रतिमा भी लगाई गई है और इस वीर को लोग अब भी अपने दिलों में जिंदा रखे हैं। 15वीं पुण्यतिथि पर गुरुवार को सदर में लोग हेमंत कटारिया की प्रतिमा पर पुष्पांजलि अर्पित करने पहुंचेंगे। शहीद हेमंत कटारिया ने 21 जुलाई 2000 को ऑपरेशन रक्षक के दौरान आतंकवादियों के साथ मुठभेड़ के दौरान वीरता से लड़ते हुए अपने प्राणों की आहुति दे दी थी।

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