7 दिसंबर 2025,

रविवार

Patrika LogoSwitch to English
home_icon

मेरी खबर

icon

प्लस

video_icon

शॉर्ट्स

epaper_icon

ई-पेपर

बच्चों को बाल अपराध से बचाने काम कर रही आवाज संस्था, परिवार से बिछड़े नाबालिगों को पहुंचाया है सुरक्षित घर

जागरूकता कार्यक्रम भी किए जाते हैं आयोजित, विभागों के साथ भी किए जाते हैं कार्यक्रम

2 min read
Google source verification
Awaaz organization is working to save children from juvenile delinquency, has taken minors separated from their families to safe homes.

फाइल फोटो

बीना. सागर सहित प्रदेश के सात जिलों में काम कर रही आवाज संस्था नि:शुल्क रूप से शिविर आयोजित कर लोगों के लिए जागरूक कर रही है। साथ ही नाबालिग बच्चे जो ट्रेनों व स्टेशन पर अकेले मिलते हैं उन्हें भी सुरक्षित परिवार के लोगों तक पहुंचाने का जिम्मा उठा रहे हैं। यह संस्था लगातार 11 साल से काम कर रही है, जिसका मुख्य उद्देश्य बाल व महिला अपराध की रोकथाम करना है।
वर्ष 2013 में आवाज नाम से संस्था ने काम शुरू किया और 11 सालों में लोगों की सबसे बड़ी मददगार साबित हो रही है। हर दिन नई गतिविधियों के साथ-साथ लोगों को जागरूक करने के लिए यह संस्था काम कर रही है। यह संस्था सागर सहित प्रदेश के अन्य छह और जिला छतरपुर, मंडला, कटनी, बैतूल, बालाघाट व भोपाल में भी काम कर रही है। जहां पर संस्था के सदस्य लगातार काम कर रहे हैं। जानकारी के अनुसार संस्था ने करीब अभी तक करीब 70 नाबालिग बच्चों को आरपीएफ व जीआरपी की मदद से सुरक्षित घर पहुंचाया है। इसके अलावा अभी तक 479 जागरूकता कार्यक्रम हो चुके हैं, जिसमें नुक्कड़ नाटक, कार्यशाला, बाल सभाएं, ग्राम सभाएं, समिति बैठक, शौर्य दल बैठक, समुदाय बैठक, किशोरी बैठक, युवा बैठक शामिल है। कार्यक्रमों में मुख्य विषय केवल बच्चों व महिलाओं पर होने वाले अपराधों की रोकथाम के लिए लोगों को जागरूक करना रहा। संस्था की जिला समन्वयक मालती पटेल ने बताया कि संस्था प्रमुख का मुख्य उद्देश्य यही रहा है कि कैसे भी करके बच्चों व महिलाओं के साथ होने वाले अपराधों को रोका जा सके, इसके लिए संस्था सरकारी विभागों के साथ भी कार्यक्रम आयोजित करती है।

बच्चों के परिजन के ना पहुंचने तक खुद ही करते हैं देखभाल

दरअसल देखने में आता है कि नाबालिग बच्चे पुलिस के नाम से डर, सहम जाते हैं। इसलिए कहीं भी ऐसे बच्चे मिलने के बाद संस्था के सदस्य उनके परिजनों के ना पहुंचने तक बच्चों की देखभाल परिवार की तरह करते हैं, जिनसे सहज होने के बाद बच्चे भी अपने मन की बात खुलकर बोलते हैं।