प्राप्त जानकारी के अनुसार बेल्जियन डॉग टायसन को नौरादेही अभयारण्य की मोहली बीट में रखा जाना था। भोपाल से आने के बाद यह डीएफओ अंकुर अवधिया के सरंक्षण में रखा गया था और यह किसी गंभीर बीमारी से पीडि़त नहीं था। इस डॉग की देखरेख तीन सदस्यीय डॉक्टरों की टीम द्वारा की जाती रही। लेकिन 22 फरवरी की सीसीएफ एएस तिवारी के आदेश पर इसे संजय नगर स्थित केनल में शिफ्ट कर दिया गया था।
इन अधिकारियों को पहले मिल चुकी थी जानकारी
डीएफओ अंकुर अवधिया द्वारा एक पत्र सीसीएफ सागर, पीसीसीएफ वाइल्ड लाइफ, पीसीसीएफ वन बल को लिखा था जिसमें बताया गया था कि जिस स्थल पर डॉग को रखा जा रहा है इस जगह पर इंफेक्शन का खतरा है, बावजूद इसके इस तथ्य को नजर अंदाज कर दिया गया। अधिकारियों की हठधर्मिता उस वक्त भी सामने आई जब डॉग इंफेक्शन से पीडि़त हो चुका था यह तथ्य डॉक्टरी रिपोर्ट से सामने आने के बाद उसे वापस इंफेक्शन प्रभावित स्थल पर ही रखा गया।
डॉग ने पकड़वाया था शिकारियों का गिरोह
टायसन की मदद से नौरादेही वन अमले को टायसन के आने के बाद ४० दिन के भीतर दो बढ़े मामलों में सफलता मिली थी। बताया गया है कि टाइसन ने शिकारियों के एक गिरोह को पकड़वाया था। वहीं दूसरे मामले में टायसन द्वारा एक शिकारी व उसके द्वारा शिकार में उपयोग किए गए भाला को डूंढ़ निकाला था।
इसलिए की गई थी बेल्जियन डॉग की मांग
अभयारण्य की सुरक्षा के लिए बेल्जियन डॉग की मांग नौरादेही डीएफओ द्वारा की गई थी। इस संबंध में डीएफओ अंकुर अवधिया ने बताया है कि जब उन्हें ट्रेनिंग पर आफ्रीका भेजा गया था तब उन्हें पता चला था कि बेल्जियन डॉग की मदद से आफ्रीका नेशनल पार्क से हो रही गेंडों की चोरी को रोका जा सका था। इसके चलते ही अभयारण्य के लिए बेल्जियन डॉग की मांग की गई थी।
फैक्ट फाइल
टायसन ने पुलिस एकेडमीसे की थी 10 माह की ट्रेनिंग
ट्रेनिंग में करीब 6 लाख रुपए शासन का खर्च
डीएफओ नौरादेही के आगाह करने के बाद भी नहीं बरती गई सतर्कता
वर्जन
मैंने आगाह करने का भरसक प्रयास किया था, मौखिक बात नहीं मानी गई तो मैंने लिखित पत्र के जरिए अवगत कराया था, प्रशिक्षित होने के बाद डॉग की कीमत का आंकलन नहीं किया जा सकता, हां यह समझा जा सकता है कि अभयारण्य की सुरक्षा एक प्रशिक्षित डॉग 30 से 40 वनरक्षकों की तुलना में अकेला करता है।
अंकुर अवधिया, डीएफओ नौरादेही