दरअसल, बीएसपी के नेता और 2013 में खुरई विधानसभा से बीएसपी प्रत्याशी रहे सुरेश पटैल अपने समर्थकों के साथ बीजेपी में शामिल हो गए हैं। इनके दल बदलते ही विरोधी दलों ने तंज कसना शुरू कर दिए है। गरम माहौल में इनकी किताब जब पत्रिका ने खोली तो नजारा कुछ इस तरह था। सुरेश पटेल को बीएसपी प्रत्याशी के रूप में 2013 में खुरई की जनता ने 9606 मत दिए। नेताजी जीते भी 4 पोलिंग से, लेकिन विधायक नहीं बन पाए। तीसरे पोजीशन मिली, जबकि चौथा उनसे काफी दूर रहा।
ऐसे समीकरण बढ़ा सकते है मुश्किल
बीएसपी में रहते हुए सुरेश पटैल ने 2013 में भले ही तीसरे स्थान पर ही संतुष्ट रहना पड़ा, लेकिन वह बीजेपी के लिए चेंजमेकर की भूमिका में नजर आए। 2013 के आंकड़ों पर एक बार दोबारा नजर डालें तो कांग्रेस के अरुणोदय चौबे को कुल 56 हजार 43 मत मिले थे। जबकि बीजेपी के भूपेंद्र भैया को 62 हजार 127 मत। ऐसे में बीजेपी की जीत का अंतर महज 6 हजार के आसपास ही था। जबकि बीएसपी के सुरेश पटैल को 96 सौ 6 मत मिले थे। बीएसपी के ये वोट कहीं न कहीं कांग्रेस के लिए भारी पड़े थे। क्योंकि, चुनावी समीक्षा में भी माना गया था कि बीएसपी ने कांग्रेस के वोट काटने का काम किया है। जो 2008 के आंकड़ों भी स्पष्ट होता है। ऐसे में 2013 में भी बीएसपी के पटैल बीजेपी के लिए हनुमान बने थे, कहना गलत नहीं होगा।
बीएसपी में रहते हुए सुरेश पटैल ने 2013 में भले ही तीसरे स्थान पर ही संतुष्ट रहना पड़ा, लेकिन वह बीजेपी के लिए चेंजमेकर की भूमिका में नजर आए। 2013 के आंकड़ों पर एक बार दोबारा नजर डालें तो कांग्रेस के अरुणोदय चौबे को कुल 56 हजार 43 मत मिले थे। जबकि बीजेपी के भूपेंद्र भैया को 62 हजार 127 मत। ऐसे में बीजेपी की जीत का अंतर महज 6 हजार के आसपास ही था। जबकि बीएसपी के सुरेश पटैल को 96 सौ 6 मत मिले थे। बीएसपी के ये वोट कहीं न कहीं कांग्रेस के लिए भारी पड़े थे। क्योंकि, चुनावी समीक्षा में भी माना गया था कि बीएसपी ने कांग्रेस के वोट काटने का काम किया है। जो 2008 के आंकड़ों भी स्पष्ट होता है। ऐसे में 2013 में भी बीएसपी के पटैल बीजेपी के लिए हनुमान बने थे, कहना गलत नहीं होगा।
अब ये सवाल
खुरई के गरम माहौल के बीच बीएसपी और बीजेपी की गुटबंदी ने कांग्रेस की मुश्किल बढ़ाई या राह आसान की , यह तो नजीते बताएंगे, लेकिन इस बदलाव ने एक बार फिर चुनावी चर्चाओं को जोर दे दिया है। जोर है सवाल यह भी उठने लगा है कि कहीं ये दांव उलटा न पड़ जाए। सवाल 2013 की समीक्षा उठता भी है। सुरेंद्र पटैल को जिन पोलिंग से अधिकांश वोट मिले थे, उन पर हमेशा से कांग्रेस हावी रही है। यानि स्पष्ट है कि वोट कांग्रेस के कटे थे। अगर वह वोट कांग्रेस वापस अपने पाले में लाने में सफल हो जाती है तो बीजपी की डगर मुश्किल है भैया। अब डिपेंड करता है मतदाता के मन पर। जो चाहती है करेगी।
खुरई के गरम माहौल के बीच बीएसपी और बीजेपी की गुटबंदी ने कांग्रेस की मुश्किल बढ़ाई या राह आसान की , यह तो नजीते बताएंगे, लेकिन इस बदलाव ने एक बार फिर चुनावी चर्चाओं को जोर दे दिया है। जोर है सवाल यह भी उठने लगा है कि कहीं ये दांव उलटा न पड़ जाए। सवाल 2013 की समीक्षा उठता भी है। सुरेंद्र पटैल को जिन पोलिंग से अधिकांश वोट मिले थे, उन पर हमेशा से कांग्रेस हावी रही है। यानि स्पष्ट है कि वोट कांग्रेस के कटे थे। अगर वह वोट कांग्रेस वापस अपने पाले में लाने में सफल हो जाती है तो बीजपी की डगर मुश्किल है भैया। अब डिपेंड करता है मतदाता के मन पर। जो चाहती है करेगी।