कनेरा देव निवासी 94 वर्षीय रामसहाय पांडेय को पुरस्कार दिए जाने का लाइव प्रसारण हुआ था, जिससे देखकर लोग झूम उठे। पांडेय 75 साल से राई नृत्य का प्रदर्शन करते आ रहे हैं। 94 साल की उम्र में भी वे प्रस्तुतियां दे रहे हैं। हालांकि इस पारंपरिक नृत्य को लेकर पाण्डेय ने सामाजिक बहिष्कार भी झेला, लेकिन उन्होंने हार नहीं मानी। वे लगातार राई नृत्य के अंतरराष्ट्रीय पहचान दिलाने का काम करते रहे। पांडेय का जन्म 11 मार्च 1933 को मडधार पठा में हुआ था। अब वे कनेरादेव में निवास करते हैं।
छतरपुर के जडिय़ा 28 को सम्मानित होंगे
बुंदेलखंड के एक और रत्न डॉ अवध किशोर जडिय़ा को भी बुंदेली साहित्य में उनके योगदान के लिए पद्मश्री देने की घोषणा 25 जनवरी को ही हुई थी। उन्हें 28 मार्च को यह सम्मान राष्ट्रपति 28 मार्च को प्रदान करेंगे। मूलरूप से छतरपुर जिले के हरपालपुर निवासी डॉ. जडिय़ा देश के प्रतिष्ठित कवियों में शुमार है। डॉ. जडिय़ा ने वन्दनीय, उद्धव शतक, कारे कन्हाई के कान, लगी है तथा बिरागमला काव्य संग्रह का सृजन किया।
मुश्किल भरा था बचपन
राई नृत्य में पारंगत रामसहाय पांडे का बचपन अभावों में बीता। उनका परिवार बेहद गरीबी में जीवन व्यतीत करता रहा, पिता लालजू पांडे गांव के ही मालगुजार के यहां नौकरी करते थे, लेकिन जब पांडे छह साल के हुए तब इनके पिता का निधन हो गया था। इसके बाद उनका जीवन और कष्ट में हो गया। इनकी माता अपने बच्चों को लेकर कनेरादेव गांव आ गई और अपने मायके में रहने लगी, लेकिन 6 साल बाद ही माता ने भी बच्चों का साथ छोड़ दिया। ऐसे हालात में जैसे-तैसे उनका बचपन अभावों में और संघर्ष के साथ गुजरा।