scriptnotbandi : भूखे-प्यासे फिरत रेत ते दिनभर, एक दिना तो मोड़ी-मोड़ा खों भी लाइन में लगा दव तो… | demonetization effects | Patrika News

notbandi : भूखे-प्यासे फिरत रेत ते दिनभर, एक दिना तो मोड़ी-मोड़ा खों भी लाइन में लगा दव तो…

locationसागरPublished: Nov 08, 2017 02:38:01 pm

नोटबंदी का एक साल पूरा होने पर फिर याद आए नोटबंदी के दिन, चल पड़ी चर्चा

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सागर. हम तो सुबेरे से शाम तक भूखे-प्यासे लगे रेत ते लाइन में… जब कबऊं काउंटर तक पहुंच पात ते। एक दिना तो मोड़ी-मोड़ा खों भी लाइन में लगा दव तो। का करते भज्जा… छोटी सी दुकान हे। नोट तो बदलनेईं हते। हां, अब ठीकठाक हे। काय बड्डे तुमईं सुनाओ कछु… अरे! का बताएं अब हम। जानत तो हो सबई। तुमई रे संगे तो जात ते नोट बदलवे। ये बातें हैं सागर में छोटे दुकानदारों और आम लोगों के बीच की। बस स्टैंड, तीन बत्ती, चाय-पान की दुकानों पर कुछ इसी तरह की बातें सुनने को मिल रही हैं। एक साल पहले नोटबंदी शब्द हर किसी की जुबान पर था। जिसे देखो वही लाइन में लगा था घर के सारे काम छोड़कर। बहरहाल पत्रिका ने मार्केट के हाल जाने कि एक साल में नोटबंदी का कितना असर पड़ा तो कुछ इस तरह की प्रतिक्रिया मिलीं।
यदि सालभर के आंकड़ों को देखा जाए तो कपड़ा व्यापार पर नोटंबदी का असर नहीं पड़ा है। यह जरूर है कि 8 नवंबर 2016 से लेकर दिसंबर 2016 व जनवरी 2017 तक व्यापार कुछ धीमा रहा था। लेकिन 1 फरवरी का व्यापार पहले से अतिरिक्त रहा। टोटल एवरेज के तहत कपड़ा व्यापार पर फर्क नहीं पड़ा है।
राजेंद्र छबलानी, थोक व फुटकर कपड़ा व्यापारी
नोटबंदी के बाद शुरुआत में 3-4 माह तक लोहा व्यापार धीमा चला। लेकिन बाद में लय में आ गया था। यदि पूरे साल का औसत निकाला जाए तो हार्डवेयर मर्केट में नुकसान नहीं हुआ है। बीते वर्षों की तरह ही बिक्री हुई है। कुछ दिन के लिए मार्केट में नरमी आई थी, लेकिन बाद में सब ठीक हो गया।
ओमप्रकाश राय, हार्डवेयर व्यापारी
नोटबंदी से युवाओं और स्टूडेंट्स को ज्यादा परेशानी नहीं हुई। रोजना के खर्चों में जरूर कटौती करनी पड़ती थी। ज्यादातर युवा नोटबंदी के पक्ष में रहे। सरकार का यह एक अच्छा फैसला था। इससे कालाधन रखने वालों को ही सबसे ज्यादा परेशानी हुई थी। आम आदमी को कुछ दिनों तक कैश की परेशानी हुई, लेकिन अब सब सही चल रहा है।
लालसिंह पटैल (लकी), स्टूडेंट्स
यह सरकार का अच्छा फैसला था। कई फायदे मिले तो कुछ नुकसान भी। युवाओं ने मुद्रा परिवर्तन का स्वागत किया था। पता था कि अभी परेशानी हो रही है, लेकिन आगे राहत भरा होगा। नोट बदलने और अन्य रोजमर्रा के काम के लिए परेशान होना पड़ा था। लेकिन कालाधन निकलने जैसा कोई बड़ा मुद्दा सामने नहीं आया। एक साल बाद अब सब ठीक चल रहा है।
कार्तिक नामदेव, शिक्षक
एक्सपर्ट व्यू
यह एक अच्छा फैसला था, लेकिन जल्दबाजी में लिया गया। जिन उद्देश्यों को लेकर नोटबंदी की गई एक वर्ष में वह हमें प्राप्त नहीं हो सके हैं। मुद्रा परिवर्तन के दौरान अकास्मिक तौर पर बढ़ी राशि की जांच की गई। इसका मनोवैज्ञानिक प्रभाव भी लोगों पर पड़ा। जो लोग कलाधन रखे हुए थे उन्हें परेशानी हुई। अब पारदर्शिता भी बढ़ी है। दरअसल, योजनाएं और फैसले तो सही होते हैं, लेकिन सही तरीके से वे लागू नहीं हो पाते हैं। मुद्रा परिवर्तन का नकारात्मक प्रभाव यह पड़ा कि देश की जीडीपी में कमी आई। सबसे ज्यादा प्रभावित किसान और मजदूर वर्ग रहा। मध्यम आय वर्ग वाले व्यक्तिभी परेशान हुए थे। नौकरीपेशा व उच्चवर्गीय लोगों को कम परेशानी हुई। अब सरकार को चाहिए कि वह लोगों की परेशानियों पर गौर करे और उनका हल प्रस्तुत करे। बैंकों के पास जमा पंूजी बढ़ गई हैं। जिससे ज्यादा लोन कम ब्याज पर उपलब्ध हो रहा है। होम लोन भी सस्ते हुए हैं।
गिरीश मोहन दुबे, विभागाध्यक्ष अर्थशात्र विभाग, डॉ. हरिसिंह गौर केंद्रीय विवि

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