scriptपानी पर 12 साल से आरक्षण का ग्रहण | Eclipse of reservation on water for 12 years | Patrika News

पानी पर 12 साल से आरक्षण का ग्रहण

locationसागरPublished: Sep 14, 2017 02:08:24 am

पानी पर 12 साल से आरक्षण का ग्रहण

Sagar

Eclipse of reservation on water for 12 years

सागर. देश का शायद ही एेसा कोई कोना होगा, जहां पानी पर आरक्षण हो लेकिन नगर निगम में यह विसंगति पिछले १२ सालों से चली आ रही है। तत्कालीन निगम परिषद के इस निर्णय पर ऑडिट ने भी आपत्ति ली थी, फिर भी जिम्मेदारों ने निर्णय को बदलने का प्रयास नहीं किया।
विशेषज्ञों की मानें तो राजघाट फेज-२ के तहत शहरवासियों को चौबीस घंटे-सातों दिन पानी मिलेगा और उस समय इस निर्णय को पुन: परिषद में रखकर बदला जा सकता है। वर्तमान में एसटी-एससी वर्ग के कनेक्शनधारियों को 75 रुपए तो अन्य पिछड़ा वर्ग व सामान्य वर्ग के लोगों को 150 रुपए प्रतिमाह का जलकर चुकाना पड़ रहा है। इसके साथ ही कनेक्शन देते समय उपभोक्ताओं से ली जाने वाली 2000 रुपए की मार्जिन राशि में भी एसटी-एससी वर्ग के उपभोक्ताआें के लिए 50 प्रतिशत राहत दी गई है।
डॉ. हरिसिंह गौर केंद्रीय विश्वविद्यालय के समाजशास्त्र विभाग के पूर्व विभागाध्यक्ष डॉ. दिवाकर शर्मा का कहना है कि समाज के किसी पिछड़े वर्ग को मुख्य धारा से जोडऩे व सामाजिक उत्थान के लिए शिक्षा, रोजगार में तो आरक्षण दे सकते हैं, लेकिन जो चीज प्रकृति प्रदत्त (हवा, पानी, प्रकाश) है, उन पर आरक्षण देने का निर्णय गलत है। एेसे निर्णयों से समाज में टकराव पैदा होता है।
निगम के तत्कालीन महापौर व वर्तमान में नरयावली विधानसभा के विधायक प्रदीप लारिया ने यह निर्णय एमआईसी व परिषद से वर्ष-२००५ में पारित करवाया था। तब जनप्रतिनिधियों ने दलील दी थी कि एसटी-एससी बाहुल्य वार्डों में ज्यादा अवैध कनेक्शन हैं।यदि उन्हें राहत दी जाती है तो यह कनेक्शन वैध हो जाएंगे, लेकिन १२ साल बाद भी अवैध कनेक्शन की स्थिति जस की तस है।
तत्कालीन परिषद का निर्णय था कि जो एसटी-एससी बाहुल्य क्षेत्र हैं, वहां उनको पानी मिल सके। पुन: विचार करने के लिए परिषद में मामला रखा जा सकता है।
नरेश यादव, वरिष्ठ पार्षद
परिषद ने सहानुभूति के तहत निर्णय लिया होगा, इसलिए विसंगतिपूर्ण निर्णय तो नहीं कह सकते। परिषद अपने किसी भी निर्णय पर पुन: विचार कर सकती है।
अजय परमार, नेता प्रतिपक्ष
तत्कालीन परिषद का निर्णय है, इसलिए ज्यादा कुछ तो नहीं कहा जा सकता है, लेकिन किसी भी मसले पर दोबारा चर्चा करने में कोई हर्ज नहीं।
राजबहादुर सिंह, निगमाध्यक्ष
उस समय की परस्थितियों को ध्यान में रखकर निर्णय लिया था, ताकि अवैध नल कनेक्शनों पर लगाम लग सके। अब वर्तमान पदाधिकारी ही
निर्णय ले सकते हैं।
प्रदीप लारिया, विधायक

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