republic day : वर्ष 1950 की बात है... उस समय एक अलग तरह का उत्साह देखा गया
प्रो. कांतिकुमार की जुबानी जानिए तब और अब का गणतंत्र दिवस

सागर. उनकी आवाज कुछ अस्पष्ट हो चली है, लेकिन नजरिया बिल्कुल स्पष्ट। उम्रदराज होने के कारण शरीर भले ही साथ न दे रहा हो, लेकिन देश के प्रति जज्बा जवानों से कहीं कम नहीं। खुशी है कि इस राष्ट्रीय पर्व के मौके पर भी वे अपनों के बीच हैं। खुशी हो भी क्यों न... क्योंकि उन्होंने 1950 का गणतंत्र जो देखा है। बात हो रही है 1932 में जन्मे सेवानिवृत्त प्रोफेसर कांतिकुमार जैन की। गणतंत्र दिवस के मौके पर आइए हम आपको लिए चलते हैं वर्ष 1950 में। प्रो. जैन की ही जुबानी जानते हैं सागर में उस समय के गणतंत्र दिवस समारोह का हाल और वर्तमान परिप्रेक्ष्य में कुछ पीड़ा...
नया उत्साह देखा गया
26 जनवरी 1950 को सागर विश्वविद्यालय में नए कुलपति इतिहासवेत्ता डॉ. रामप्रकाश त्रिपाठी आ चुके थे। हम लोग गौरवान्वित महसूस कर रहे थे कि हमारे संस्थापक कुलपति डॉ. हरिसिंह गौर संविधान निर्मात्री सभा के सदस्य थे, इसलिए सागर में उस गौरव के प्रतीक को लेकर गणतंत्र दिवस मना रहे थे। गुरु सिसला छात्रावास में सभाओं का आयोजन हुआ। प्रभात फेरी निकाली गई। विवि के विभिन्न विभागों में गणतंत्र और संविधान के महत्व पर व्याख्यान हुए। सागर में नया और एक अलग तरह का उत्साह देखा गया। गणतंत्र दिवस कार्यक्रम में यहां के प्रमुख वकील शामिल हुए। विवि इस तरह के आयोजनों का केंद्र बन गया था।
हमारी आंखों में एक सपना था
पहली बार हम लोगों ने स्वाधीनता और गणतंत्र दिवस को समझा। स्वतंत्रता तो हमने अर्जित की थी, पर गणतंत्रता एक बहुत सुविचारित, सुनियोजित उपक्रम था। गणतंत्र दिवस पर हमारी आंखों में एक सपना था। हमें अपना संविधान मिल चुका था। उसमें निष्पक्षता, समता और संभावनाओं की बातें थी, किंतु आज हम जो गणतंत्र मनाते हैं उसमें विगत 50-55 वर्षों की असफलताएं और खरोंचे भी शामिल हैं। एक तरह से संविधान में बेहतर और बेहतर और बेहतर करने के लिए परिवर्तन करते रहे हैं। संविधान के स्वप्न वाक्य में भी कुछ नए शब्द जोड़े गए हैं। यह गुंजाइश 1950 में नहीं थी, लेकिन अब जरूर है।
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