scriptआषाढ़ गुप्त नवरात्र 2018 : साल में होती है चार नवरात्र,आने वाली है आषाढ़ की गुप्त नवरात्र, इन भक्तों को विशेष लाभ | Gupt Navratri 2018 Puja Vidhi Vrat Vidhi and Katha | Patrika News

आषाढ़ गुप्त नवरात्र 2018 : साल में होती है चार नवरात्र,आने वाली है आषाढ़ की गुप्त नवरात्र, इन भक्तों को विशेष लाभ

locationसागरPublished: Jul 03, 2018 02:41:01 pm

Submitted by:

Samved Jain

साल में होती है चार नवरात्र, आने वाली है आषाढ़ की गुप्त नवरात्र, इन भक्तों को विशेष लाभ

सागर. मां दुर्गा की उपासना का आषाढ़ मास का ‘गुप्त नवरात्रि पर्व’ इस बार 17 जुलाई से 25 जुलाई तक मनाया जाएगा। वर्ष की उपासना के लिए नवरात्रि को ही माना गया है। सागर सहित समूचे बुंदेलखंड क्षेत्र में इस गुप्त नवरात्र को लेकर भी मां के भक्तों में खासा उत्साह रहता है। मान्यता है कि इस नवरात्रि का महत्व भी अन्य दो नवरात्रि की तरह ही है। हालांकि, साल में 4 नवरात्रि का उल्लेख किया गया है, जिसमें प्रथम संवत् प्रारंभ होते ही बसंत नवरात्रि व दूसरा शरद नवरात्रि, जो कि आपस में 6 माह की दूरी पर है। अब भक्तों ने 2 गुप्त नवरात्रि की व्यवस्था की जिसमें कि आषाढ़ सुदी प्रतिपदा (एकम) से नवमीं तक दूसरा पौष सुदी प्रतिप्रदा (एकम) से नवमीं तक। ये दोनों नवरात्रि युक्त संगत है, क्योंकि ये दोनों नवरात्रि अयन के पूर्व संख्या संक्रांति के हैं।
शास्त्रों के अनुसार दो मुख्य नवरात्र के अलावा साल में दो बार नवरात्र ऐसे भी आते हैं जिनमें मां दुर्गा की दस महाविद्याओं की पूजा की जाती है। यह साधना हालांकि चैत्र और शारदीय नवरात्र से कठिन होती है लेकिन मान्यता है कि इस साधना के परिणाम बड़े आश्चर्यचकित करने वाले मिलते हैं। इसीलिए तंत्र विद्या में विश्वास रखने वाले तांत्रिकों के लिये यह नवरात्र बहुत खास माने जाते हैं। चूंकि इस दौरान मां की आराधना गुप्त रूप से की जाती है इसलिये इन्हें गुप्त नवरात्र भी कहा जाता है।
आषाढ़ गुप्त नवरात्र 2018 : साल में होती है चार नवरात्र,आने वाली है आषाढ़ की गुप्त नवरात्र, इन भक्तों को विशेष लाभ
 

आषाढ़ और माद्य मास में आती है गुप्त नवरात्र


चैत्र और आश्विन मास के नवरात्र के बारे में तो सभी जानते ही हैं जिन्हें बसंती और शारदीय नवरात्र भी कहा जाता है। लेकिन गुप्त नवरात्र आषाढ़ और माघ मास के शुक्ल पक्ष में मनाये जाते हैं। गुप्त नवरात्र की जानकारी अधिकतर उन लोगों को होती है जो तंत्र साधना करते हैं। इन दोनों नवरात्र के दोनों भक्तों को अपार लाभ के भी संयोग बनते है।
ये पौराणिक कथा है प्रचलित


गुप्त नवरात्र के महत्व को बताने वाली एक कथा भी पौराणिक ग्रंथों में मिलती है। कथा के अनुसार एक समय की बात है कि ऋषि श्रंगी एक बार अपने भक्तों को प्रवचन दे रहे थे कि भीड़ में से एक स्त्री हाथ जोड़कर ऋषि से बोली कि गुरुवर मेरे पति दुव्र्यसनों से घिरे हैं जिसके कारण मैं किसी भी प्रकार के धार्मिक कार्य व्रत उपवास अनुष्ठान आदि नहीं कर पाती। मैं मां दुर्गा की शरण लेना चाहती हूं लेकिन मेरे पति के पापाचारों से मां की कृपा नहीं हो पा रही मेरा मार्गदर्शन करें। तब ऋषि बोले वासंतिक और शारदीय नवरात्र में तो हर कोई पूजा करता है सभी इससे परिचित हैं। लेकिन इनके अलावा वर्ष में दो बार गुप्त नवरात्र भी आते हैं इनमें 9 देवियों की बजाय 10 महाविद्याओं की उपासना की जाती है। यदि तुम विधिवत ऐसा कर सको तो मां दुर्गा की कृपा से तुम्हारा जीवन खुशियों से परिपूर्ण होगा। ऋषि के प्रवचनों को सुनकर स्त्री ने गुप्त नवरात्र में ऋषि के बताये अनुसार मां दुर्गा की कठोर साधना की स्त्री की श्रद्धा व भक्ति से मां प्रसन्न हुई और कुमार्ग पर चलने वाला उसका पति सुमार्ग की ओर अग्रसर हुआ उसका घर खुशियों से संपन्न हुआ। कुल मिलाकर गुप्त नवरात्र में भी माता की आराधना करनी चाहिये।
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गुप्त नवरात्र में ऐसे करें पूजा


मान्यतानुसार गुप्त नवरात्र के दौरान भी पूजा अन्य नवरात्र की तरह ही करनी चाहिये। नौ दिनों तक व्रत का संकल्प लेते हुए प्रतिपदा को घटस्थापना कर प्रतिदिन सुबह शाम मां दुर्गा की पूजा की जाती है। अष्टमी या नवमी के दिन कन्याओं के पूजन के साथ व्रत का उद्यापन किया जाता है। वहीं तंत्र साधना वाले साधक इन दिनों में माता के नवरूपों की बजाय दस महाविद्याओं की साधना करते हैं। ये दस महाविद्याएं मां काली, तारा देवी, त्रिपुर सुंदरी, भुवनेश्वरी, माता छिन्नमस्ता, त्रिपुर भैरवी, मां ध्रूमावती, माता बगलामुखी, मातंगी और कमला देवी हैं। लेकिन एस्ट्रोयोगी की सभी साधकों से अपील है कि तंत्र साधना किसी प्रशिक्षित व सधे हुए साधक के मार्गदर्शन अथवा अपने गुरु के निर्देशन में ही करें। यदि साधना सही विधि से न की जाये तो इसके प्रतिकूल प्रभाव भी साधक पर पड़ सकते हैं।
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इस नवरात्र के ये है राशि स्वामी


नवरात्र अपने आगामी नवरात्र की संक्रांति के साथ-साथ मित्रता वाले भी हैं, जैसे आषाढ़ संक्रांति मिथुन व आश्विन की कन्या संक्रांति का स्वामी बुध हुआ और पौष संक्रांति धनु और चैत्र संक्रांति मीन का स्वामी गुरु है। अत: ये चारों नवरात्रि वर्ष में 3-3 माह की दूरी पर हैं। कुछ विद्वान पौष माह को अशुद्ध माह नहीं गिनते हैं और माघ में नवरात्रि की कल्पना करते हैं। किंतु चैत्र की तरह ही पौष का महीना भी विधि व निषेध वाला है अत: प्रत्यक्ष चैत्र गुप्त आषाढ़ प्रत्यक्ष आश्विन गुप्त पौष माघ में श्री दुर्गा माता की उपासना करने से हर व्यक्ति को मन इच्छित फल प्राप्त होते हैं।
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