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11 साल से जमीं कर्मचारी दे रही धमकी, छात्राओं को नहीं मिल रहा पर्याप्त भोजन

locationसागरPublished: Jul 21, 2018 04:28:08 pm

छात्राओं के लिए शुक्रवार को फिर देरी से नाश्ता और भोजन मिला। इसी वजह से वे आधे घंटे देरी से स्कूल पहुंचीं।

gyanodaya Residential school

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सागर. ज्ञानोदय आवासीय स्कूल की छात्राओं को काफी समय से भरपेट भोजन नहीं मिल रहा है। जिस कारण गुरुवार को छात्राएं धरने पर बैठी थीं। इसके बाद भी हालात नहीं सुधरे। छात्राओं के लिए शुक्रवार को फिर देरी से नाश्ता और भोजन मिला।
इसी वजह से वे आधे घंटे देरी से स्कूल पहुंचीं। तब तक कक्षाएं लग चुकी थीं। छात्राओं का आरोप है कि उन्हें भोजन बनाने वाली महिला कर्मचारियों द्वारा धमकाया जा रहा है और स्कूल प्रबंधन कुछ नहीं कर पाया है। पत्रिका ने शुक्रवार को मौके पर फिर पहुंचकर स्थिति का जायजा लिया तो प्राचार्य डॉ. शिवकुमार चौरसिया ने कहा कि कर्मचारियों को राजनीतिक स्तर से समर्थन मिल रहा है, हम नोटिस देते हैं। इसके बाद भी उन्हें यहां से नहीं हटाया जा रहा है।
विद्यालय में महिलाकर्मी पार्वती, संतोषी अहिरवार, सीमा सोनी और प्रभा टोटे 11 वर्षों से यहां काम कर रही हैं। छात्राओं की शिकायतों के आधार पर वर्ष 2012 से पत्र लिखकर जिला कार्यालय को अवगत कराया जा रहा है।
पत्र में इन कर्मचारियों को हटाने की बात भी लिखी गई है। इसके बाद यहां आज तक कोई कार्रवाई नहीं हुई। प्राचार्य का कहना था कि पत्र की फोटो कॉपी इन कर्मियों के पास पहुंच जाती है, लेकिन कोई एक्शन नहीं लिया जाता है। 6 वर्षों में दर्जनों पत्र लिखे गए हैं। मैस प्रभारी छात्रा एकता अहिरवार ने बताया कि शुक्रवार को नाश्ता और भोजन दोनों देरी से दिया गया।
भोजन सुबह 11 बजे के बाद मिला। स्कूल पहुंचे तो कक्षाएं लग चुकी थीं। आधे घंटे लेट हुए हैं। रोजना कक्षा में लेट होते हैं। परीक्षा के समय पर हमें अधिक परेशान किया जाता है। एक बार सुबह ११ बजे भोजन मिलने के बाद दिनभर भूखे भी रखा जाता है।
बाजार से खाना मंगाने का दबाव
12वीं कक्षा की एक छात्रा ने बताया कि मैन्यू के आधार पर भोजन नहीं मिलता है। दबाव बनाया जाता है कि जितना है उतना ही खाओ। आज भी हमें भोजन समय पर नहीं दिया गया। हमसे बाजार से भोजन लाने के लिए कहा जाता है। सुबह नाश्ता कुछ दिनों से ही मिल रहा है, पहले नहीं दिया जाता था।
तुम भी हट जाओगी
मैं पत्र लिखकर बच्चियों को समय पर भोजन देने के लिए कहती हूं। लेकिन मेरी बात भी नहीं मानी जाती है। जवाब दिया जाता है कि दो अधीक्षिका इससे पहले हम हटवा चुके हैं, और तुम भी एक साल में हट जाओगी। – सुबे सिंह सोलंकी, अधीक्षिका छात्रावास

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