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पहाड़ों पर विराजीं रानगिर की हरसिद्धि माता, तीन रूपों में होते हैं भक्तों को दर्शन

locationसागरPublished: Oct 11, 2021 10:00:07 pm

Submitted by:

Atul sharma

रहली के रानगिर में विराजी मां हरसिद्धि तीन रूप में दर्शन देती हैं। सागर से करीब 60 किलोमीटर दूर नरसिंहपुर मार्ग पर स्थित प्रसिद्ध तीर्थ क्षेत्र रानगिर अपने आप में एक विशेषता समेटे हुए है

पहाड़ों पर विराजीं रानगिर की हरसिद्धि माता, तीन रूपों में होते हैं भक्तों को दर्शन

पहाड़ों पर विराजीं रानगिर की हरसिद्धि माता, तीन रूपों में होते हैं भक्तों को दर्शन

सागर.रहली के रानगिर में विराजी मां हरसिद्धि तीन रूप में दर्शन देती हैं। सागर से करीब 60 किलोमीटर दूर नरसिंहपुर मार्ग पर स्थित प्रसिद्ध तीर्थ क्षेत्र रानगिर अपने आप में एक विशेषता समेटे हुए है। देहार नदी के तट पर स्थित इस प्राचीन मंदिर में विराजी मां हरसिद्धि देवी की मूर्ति दिन में तीन रुपों में दर्शन देती हैं। प्रात: काल मे कन्या, दोपहर में युवा और सायंकाल प्रौढ़ रुप में माता के दर्शन होते है। जो सूर्य, चंद्र और अग्नि इन तीन शक्तियों के प्रकाशमय, तेजोमय तथा अमृतमय करने का संकेत है।
किवदंती के अनुसार देवी भगवती के 52 सिद्ध शक्ति पीठों में से एक शक्तिपीठ है सिद्ध क्षेत्र रानगिर। यहां पर सती की रान गिरी थी। इस कारण यह क्षेत्र रानगिर कहलाया। रानगिर का यह मंदिर लगभग 1100 वर्ष पुराना है। इस स्थान के विषय में कहा जाता है की यह मंदिर पहले रानगिर में नहीं था, नदी के उस पार देवी जी रहती थी। प्रतिदिन माता कन्याओं के साथ खेलने के लिए आया करती थी। एक दिन गांव के लोगों ने छिपकर देखा कि यह किसकी लड़की है सुबह खेलने आती है एवं सायंकाल को कन्याओं को एक चांदी का सिक्का देकर बूढ़ी रानगिर को चली जाती हैं।
ऐसे हुई थी माता की स्थापना
रानगिर मंदिर के पुजारी अनिल शास्त्री ने बताया कि हरसिद्धि माता के बारे में कई किवदन्तियां प्रचलित हैं। एक किवदन्ती के अनुसार रानगिर में एक चरवाहा हुआ करता था। चरवाहे की एक छोटी बेटी थी। बेटी के साथ एक वन कन्या रोज आकर खेलती थी एवं अपने साथ भोजन कराती थी तथा रोज एक चांदी का सिक्का देती थी। चरवाहे को जब इस बात की जानकारी लगी तो एक दिन छुपकर दोनों कन्या को खेलते देख लिया चरवाहे की नजर जैसे ही वन कन्या पर पड़ी तो उसी समय वन कन्या ने पाषाण रूप धारण कर लिया। बाद में चरवाहे ने कन्या का चबूतरा बना कर उस पर छाया आदि की और यहीं से मां हरसिद्धि की स्थापना हुई।
माता के दरबार में पहुंचने के लिए
देहार नदी के पूर्व तट पर घने जंगलों एवं सुरम्य वादियों के बीच स्थित हरसिद्धि माता के दरबार में पहुंचने के लिए जिला मुख्यालय सागर से दो तरफा मार्ग है। सागर, नरसिंहपुर नेशनल हाइवे पर सुरखी के आगे मार्ग से बायीं दिशा में आठ किलोमीटर अंदर तथा दूसरा मार्ग सागर-रहली मार्ग पर पांच मील नामक स्थान से दस किलोमीटर दाहिनी दिशा में रानगिर स्थित है। मेले के दिनों में सागर, रहली, गौरझामर, देवरी से कई स्पेशल बस दिन-रात चलती हैं। दोनों ओर से आने-जाने के लिए पक्की सड़कें हैं। निजी वाहनों से भी लोग पहुंचते हैं।
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