विवि के संगीत विभाग में कार्यक्रम आयोजित
सागर. परंपरा से ही व्यक्ति की अभिव्यक्ति व्यक्त हो पाती है। अत: रंगकर्मियों को नाट्य परंपरा का ज्ञान आवश्यक है, इसके साथ ही नवीन प्रयोग से पूर्व से ही निर्धारित सीमाओं को न्यायोचित होने पर तोडऩा आवश्यक है। रंगमंच मानव जीवन के उतार-चढ़ाव एवं मूल्यों को उद्धाटित करता है, जहां पर रंगमंच मनोरंजन एवं क्रीड़ा का एक छोर है वहीं दूसरा छोर आध्यात्मिक वैभव से जुड़ा है।
यह बात विश्व रंग मंच दिवस पर मंगलवार को विवि में आयोजित कार्यक्रम के दौरान फिल्म अभिनेता मुकेश तिवारी ने कही। विवि के संगीत, फाइन आटर््स, प्रदर्शनकारी कला विभाग द्वारा आयोजित इस कार्यक्रम में तिवारी ने कहा कि कलाकार को स्वयं की अभिप्सा को समझना आवश्यक है। उसे अपने अंदर के कलाकार को किसी भी स्तर पर या परिस्थिति में मरने नहीं देना चाहिए।
उन्होंने कहा कि रंगमंच और सिनेमा में अंतर है, ठीक उसी तरह जिस तरह पगडंडी और पक्की चिकनी सड़क में है। या ठीक उसी तरह जिस तरह दादी-नानी के बनाए चिप्स और बाजार में डिब्बा बंद चिप्स में है। प्रत्येक रंगकर्मी की कामयाबी का मापदण्ड उसके द्वारा किए गए कलाकर्म हैं न कि भौतिक संसाधनों का एकत्रीकरण और उपभोग। संचालन डॉ. राकेश सोनी और आभार अल्ताफ मुलाणी ने माना।