scriptयहां मंच पर दिखा हीरो ऑफ बुंदेलखंड का पराक्रम | Hero of Bundelkhand's heroic show on stage here | Patrika News

यहां मंच पर दिखा हीरो ऑफ बुंदेलखंड का पराक्रम

locationसागरPublished: Mar 28, 2018 06:08:54 pm

अभिनेता मुकेश तिवारी ने कहा, रंगकर्मियों को नाट्य परंपरा का ज्ञान जरूरी

Hero of Bundelkhand's heroic show on stage here

Hero of Bundelkhand’s heroic show on stage here

सागर. मधुकरशाह के जन्म पर बधाई नृत्य हुए, ढोल बजे। नन्हा बालक महानायक बना। बुंदेलखंड की भोली-भाली जनता को न्याय दिलाकर बुंदेला विद्रोह के नायक बन गए। दुनिया के सबसे बड़े और शक्तिशाली अंग्रेजी साम्राज्य के खिलाफ भारत में विद्रोह का बिगुल फूंका।
देश के इस महान क्रांतिकारी के बारे में जाने का मौका मंगलवार को शहर के लोगों को मिला। मौका था, अन्वेषण थियेटर ग्रुप द्वारा रवींद्र भवन सभागार में नाटक मधुकर शाह हीरो ऑफ बुंदेलखंड के पहली बार मंचन का। फिल्म अभिनेता गोविंद नामदेव द्वारा लिखित एवं निर्देशित नाटक को दर्शकों ने खूब सराहा। कुछ ने कैमरे में तो कुछ ने अपने जेहन में इसे कैद कर ले गए। दर्शक नाटक में खोए रहे। बीच-बीच में कुछ बुंदेली संवादों पर ठहाके भी लगे। खचाखच भरे सभागार में तालियां गूंजती रहीं। हर दृश्य के बाद बुंदेली नृत्य और संगीत ने समां बांध दिया। मंच परिकल्पना और प्रकाश सराहनीय रहा। नाटक में फिल्म अभिनेता द्वारा रिकॉर्डेड कॉमेंट्री ने दर्शकों को बांधे रखा। कलाकारों ने ऐतिहासिक पात्रों के साथ बखूबी न्याय किया। हर एक पात्र की संवाद अदायगी ऐसी लगी कि जैसे वह वर्षों से इसी पात्र का अभिनय कर रहे हों। सहनिर्देशन अन्वेषण ग्रुप की अध्यक्ष सुषमा मिश्रा ने किया। अथग की २५ वर्षों की रंगयात्रा में अब तक ३० तक नाट्य प्रस्तुति दी जा चुकी हैं।
प्रमुख किरदार : मधुकर – अश्विनी सागर, राव साहब- सुमीत दुबे, गणेश जू- गौरव सिंह ठाकुर, ओम्मनी- राघव मिश्रा, क्लार्क- हरिनारायण चढ़ार, चाल्र्स फ्रेजर- शिवम मिश्रा, लैन्डा – सुषमा मिश्रा, जज- रवीन्द्र दुबे कक्का, मनोज सोनी, सुषमा मिश्रा, अनुवादक सेकेट्री- राहुल सेन, सरकारी वकील – अमित नामदेव।
मंच से परे : रिकॉर्डेड कॉमेंट्री- गोविन्द नामदेव, संगीत निर्देशक- इश्त्यिाक आरिफ खान, प्रकाश परिकल्पना- आकाश विश्वकर्मा, वस्त्र विन्यास- सुषमा
मिश्रा, शिवम मिश्रा, अनामिका सागर, रूप सज्जा- कपिल नाहर, संतोष
सोनी, हेमन्त कुशवाहा।
यह है कहानी
अंग्रेजों के अत्याचारों से बुंदेलखंड का हर आदमी परेशान है। मनमाना लगान चुकाने वालों को पीटा जा रहा है। दूर-दूर तक आशा की कोई किरण नहीं। इस बीच एक योद्धा का आगमन होता है। यह योद्धा देश की क्रांति का सूत्रधार बनता है। वीर मधुकर शाह बुंदेला। मधुकर दुनिया के सबसे शक्तिशाली ब्रिटिश साम्राज्य के खिलाफ ऐसा विद्रोह करते हैं कि अंग्रेजी हुकूमत हिल जाती है। अंग्रेजों में मधुकर का डर बैठ जाता है। मधुकर ने अंग्रेजी सल्तनत के खिलाफ वर्ष 1842 में बुंदेला विद्रोह का बिगुल फूंका था। देश की आजादी की पहली क्रांति 1857 का सूत्रपात यहीं से हुआ। षडय़ंत्रकारियों के नापाक इरादों के कामयाब होने पर मधुकर को अंग्रेज फांसी पर लटका देते हैं, लेकिन वह देशवासियों को आजादी की लौ जरूर दिखा जाते हैं। इसी के साथ वे आजादी का बिगुल फूंकने वाले बुंदेला विद्रोह के पहले प्रमुख बन गए।

विवि के संगीत विभाग में कार्यक्रम आयोजित
सागर. परंपरा से ही व्यक्ति की अभिव्यक्ति व्यक्त हो पाती है। अत: रंगकर्मियों को नाट्य परंपरा का ज्ञान आवश्यक है, इसके साथ ही नवीन प्रयोग से पूर्व से ही निर्धारित सीमाओं को न्यायोचित होने पर तोडऩा आवश्यक है। रंगमंच मानव जीवन के उतार-चढ़ाव एवं मूल्यों को उद्धाटित करता है, जहां पर रंगमंच मनोरंजन एवं क्रीड़ा का एक छोर है वहीं दूसरा छोर आध्यात्मिक वैभव से जुड़ा है।
यह बात विश्व रंग मंच दिवस पर मंगलवार को विवि में आयोजित कार्यक्रम के दौरान फिल्म अभिनेता मुकेश तिवारी ने कही। विवि के संगीत, फाइन आटर््स, प्रदर्शनकारी कला विभाग द्वारा आयोजित इस कार्यक्रम में तिवारी ने कहा कि कलाकार को स्वयं की अभिप्सा को समझना आवश्यक है। उसे अपने अंदर के कलाकार को किसी भी स्तर पर या परिस्थिति में मरने नहीं देना चाहिए।
उन्होंने कहा कि रंगमंच और सिनेमा में अंतर है, ठीक उसी तरह जिस तरह पगडंडी और पक्की चिकनी सड़क में है। या ठीक उसी तरह जिस तरह दादी-नानी के बनाए चिप्स और बाजार में डिब्बा बंद चिप्स में है। प्रत्येक रंगकर्मी की कामयाबी का मापदण्ड उसके द्वारा किए गए कलाकर्म हैं न कि भौतिक संसाधनों का एकत्रीकरण और उपभोग। संचालन डॉ. राकेश सोनी और आभार अल्ताफ मुलाणी ने माना।

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