सागर का यह सच जानकर दंग रह जाएंगे आप, जिस नाम से रखी गई थी सागर की नींव, आज वही है सागर का एक वार्ड...पढ़ें पूरा सच
सागर जिले की अनसुनी कहानी, हर व्यक्ति को जानना है जरूरी

सागर. मध्य प्रदेश का एक महत्वपूर्ण शहर है। सागर का इतिहास सन् 1660 से आरंभ होता है। जब ऊदनशाह ने तालाब के किनारे स्थित वर्तमान किले के स्थान पर एक छोटे किले का निर्माण करवा कर उस के पास परकोटा नाम का गांव बसाया था। निहालशाह के वंशज ऊदनशाह द्वारा बसाया गया वही छोटा सा गांव आज सागर के नाम से जाना जाता है। परकोटा अब शहर के बीचों-बीच स्थित एक मोहल्ला है।
वर्तमान किला और उसके अंदर एक बस्ती का निर्माण पेशवा के एक अधिकारी गोविंदराव पंडित ने कराया था। सन् 1735 के बाद जब सागर पेशवा के आधिपत्य में आ गया, तब गोविंदराव पंडित सागर और आसपास के क्षेत्र का प्रभारी था। समझा जाता है कि इसका नाम सागर उस विशाल सरोवर के कारण पड़ाए जिसके किनारे नगर स्थित है।
विंध्य पर्वत श्रृंखला के बीच स्थित यह जिला पुराने समय से ही मध्य भारत का एक महत्वपूर्ण केंद्र रहा है। सागर के आरंभिक इतिहास की कोई निश्चित जानकारी तो उपलब्ध नहीं है, लेकिन पुस्तकों में दर्ज विवरणों के अनुसार प्रागैतिहासिक काल में यह क्षेत्र गुहा मानव की क्रीड़ा स्थली रहा। पौराणिक साक्ष्यों से ऐसे संकेत मिलते हैं कि इस जिले का भूभाग रामायण और महाभारत काल में विदिशा और दशार्ण जनपदों में शामिल था।
इसके बाद ईसा पूर्व छटवीं शताब्दी में यह उत्तर भारत के विस्तृत महाजनपदों में से एक चेदी साम्राज्य का हिस्सा बन गया। इसके उपरांत ज्ञात होता है कि इसे पुलिंद देश में सम्मिलित कर लिया गया। पुलिंद देश में बुंदेलखंड का पश्चिमी भाग और सागर जिला शामिल था। सागर के संबंध में विस्तृत जानकारी टालमी के लिखे विवरणों से प्राप्त होती है। टालमी के अनुसार फुलिटो(पुलिंदौं)का नगर आगर सागर था।
गुप्त वंश के शासनकाल में इस क्षेत्र को सर्वाधिक महत्व मिला। समुद्रगुप्त के समय में एरण को स्वभोग नगर के रूप में उद्धृत किया गया है और यह राजकीय तथा सैन्य गतिविधियों का एक महत्वपूर्ण केंद्र था। नवमीं शताब्दी में यहां चंदेल और कलचुरी राजवंशों का आधिपत्य हुआ और 13.14वीं शताब्दी में मुगलों का शासन शुरू होने से पूर्व यहां कुछ समय तक परमारों का शासन भी रहने के संकेत मिलते हैं। ऐतिहासिक साक्ष्यों के अनुसार सागर का प्रथम शासक श्रीधर वर्मन को माना जाता है।
पंद्रहवीं शताब्दी के उत्तराद्र्ध में सागर पर गौंड़ शासकों ने कब्जा जमाया। फिर महाराजा छत्रसाल ने धामोनीए गढ़ाकोटा और खिमलासा में मुगलों को हराकर अपनी सत्ता स्थापित की लेकिन बाद में इसे मराठाओं को सौंप दिया। सन् 1818 में अंग्रेजों ने अपना कब्जा जमाया और यहां ब्रिटिश साम्राज्य का आधिपत्य हो गया। सन् 1861 में इसे प्रशासनिक व्यवस्था के लिए नागपुर में मिला दिया गया और यह व्यवस्था सन् 1956 में नए मध्यप्रदेश राज्य का गठन होने तक बनी रही।
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