पौराणिक मान्यता के अनुसार दैत्यराज हिरण्यकश्यप खुद को भगवान मानता था, लेकिन उसका पुत्र प्रह्लाद भगवान विष्णु के अलावा किसी की पूजा नहीं करता था। यह देख हिरण्यकश्यप काफी क्रोधित हुआ और अंतत: उसने अपनी बहन होलिका को आदेश दिया की वह प्रह्लाद को गोद में लेकर अग्नि में बैठ जाए। होलिका को वरदान प्राप्त था कि उसे आग से कोई नुकसान नहीं पहुंचेगा। लेकिन भगवान विष्णु की कृपा से प्रह्लाद आग से बच गया, जबकि होलिका आग में जलकर भस्म हो गई। उस दिन फाल्गुन मास की पूर्णिमा थी। इसी घटना की याद में होलिका दहन करने का विधान है। बाद में भगवान विष्णु ने लोगों को अत्याचार से निजात दिलाने के लिए नरसिंह अवतार लेकर हिरण्यकश्यप का वध किया।
– होलिका दहन से पहले पूजा की जाती है। इस दौरान होलिका के पास जाकर पूर्व या उतर दिशा की ओर मुख करके बैठकर पूजा करनी चाहिए।
– शुद्ध जल व अन्य पूजन सामग्रियों को एक-एक कर होलिका को समर्पित किया जाता है। – पूजन के बाद जल से अर्ध्य दिया जाता है। एक लोटा जल, माला, रोली, चावल, गंध, पुष्प, कच्चा सूत, गुड़, साबुत हल्दी, मूंग, बताशे, गुलाल, नारियल आदि।
– नई फसल के अंश जैसे पके चने और गेंहूं की बालियां भी शामिल की जाती हैं।
– होली की बची हुई अग्नि और राख को अगले दिन प्रात: घर में लाने से घर से नकारात्मक शक्तियां दूर होती हैं।
रात्रि 8.58 से 12.28बजे तक अवधि – 3 घंटा 30 मिनट
भद्रा पुंछ – 14.53 से 15.54 तक भद्रा मुख – 15.54 से 17. 37 तक राशि अनुसार करें परिक्रमा
यदि राशि के शुभ अंक के हिसाब से परिक्रमा की जाए तो ग्रह बाधायें दूर हो सकती हैं। अन्य लाभ भी होते हैं जैसे रुके हुए शुभ कार्य शुरू हो जाते हैं, धन संबंधि फायदा होगा और नव संवत्सर की शुरूआत में आर्थिक कष्टों से मुक्ति मिलने की संभावना बनती है। ऐसे में जानें कि किस राशि वाले लोगों को लगानी होंगी कितनी परिक्रमा।
मिथुन – 07 परिक्रमा कर्क – 28 परिक्रमा
सिंह – 29 परिक्रमा कन्या – 07 परिक्रमा
तुला – 21 परिक्रमा वृश्चिक – 28 परिक्रमा
धनु – 23 परिक्रमा
कुंभ – 25 परिक्रमा मीन – 9 परिक्रमा