मल्टीलेयर खेती कैसे होती है?
बुंदेलखंड के सागर जिले में रहने वाले आकाश चौरसिया बताते है खेती की मल्टीलेयर या बहुस्तरीय पद्धति आम खेती ही तरह ही है। बस जरूरत है तो थोड़ी सावधानी बरतने और फोकस की। आकाश के अनुसार बहुस्तरीय खेती वह पद्धति है जिसमें एक ही जमीन पर अलग-अलग ऊंचाई की फसलें एक साथ उगाई जाती हैं। आकाश फरवरी में जमीन के अंदर अदरक की रोपाई करते हैं। इसी माह अदरक के ऊपर चौलाई लगाते है। इस दौरान वह थोड़ी-थोड़ी दूरी पर पपीते के पौधे लगाते है। कुंदरू की बेल पांच से दस साल तक उपज देती है। यह बेल खेत के बीच-बीच में लगे बांस से सहारे बढ़ती है और मंडप में फैल जाती है। इस तरह एक ही खेत में अदरक, चौलाई, पपीता और कुंदरू की खेती हो जाती है। इस प्रकार की खेती ही मल्टीलेयर या बहुस्तरीय खेती कहलाती है।
मल्टीलेयर खेती बिना पॉलीहाउस कैसे करें
आकाश के अनुसार पॉलीहाउस लगाकर भी मल्टीलेयर खेती की जा सकती है, लेकिन वह सिर्फ इसे फिजूल खर्चा मानते है। आकाश पॉलीहाउस का न तो इस्तेमाल करते है और न ही किसी को सलाह देते है। वकौल आकाश पॉलीहाउस की जगह पर बांस और घास की मदद से मंडप बनाया जा सकता है। प्राकृतिक चीजों से तैयार यह मंडप किसी भी तरीके से पर्यावरण को नुकसान नहीं पहुंचाता है। इतना ही नहीं एक बार लगा देने के बाद यह करीब पांच साल तक चलता है। इस मंडप से मौसम की मार जैसे ओलों, तेज बारिश और धूप से फसलों की रक्षा भी होती है। इस तरह कम खर्च में देशी तरीके से फसल की रक्षा भी हो जाती है।
मल्टीलेयर खेती में कौन से बीजों का इस्तेमाल करें?
मल्टीलेयर यानि बहुस्तरीय खेती में आकाश केवल देशी बीजों का इस्तेमाल करते हैं। आकाश के अनुसार देशी बीज का इस्तेमाल करने से महंगों बीजों से छुटकारा मिलता ही है। साथ ही देशी बीज जलवायु परिवर्तन का प्रभाव झेलने की शक्ति रखते हैं। इन बीजों से खेती करने पर कीड़ों से होने वाला नुकसान भी न्यूनतम होता है। बुंदेलखंड जैसे सूखा प्रभावित क्षेत्रों में यह काफी महत्वपूर्ण है। बहुस्तरीय खेती की ये तमाम विशेषताएं और इसमें प्रयोग होने वाला सामान इसे सस्टेनेबल मॉडल बनाता है। इस पद्धति से होने वाली खेती पानी की बचत भी करती है। इसमें आम फसलों की तरह बहुत ज्यादा पानी की जरूरत नहीं पड़ती। दिन में एक बार छिड़काव से ही काम चल जाता है। इतने कम पानी में चार फसलें तैयार होती है और मुनाफा भी चार गुना होता है।मल्टीलेयर खेती में ये सावधानियां भी जरूरी
मल्टीलेयर खेती के साथ वर्मीकंपोस्ट से भी करें कमाई
आकाश के अनुसार मल्टीलेयर खेती के इस सिद्धांत को “विष मुक्त गौ आधारित खेती” का नाम देते हैं। आकाश के पास पांच गाय हैं जिनका मूत्र और गोबर वह खाद के रूप में इस्तेमाल करते हैं। गोमूत्र से उन्होंने कई प्रकार के जैविक कीटनाशक तैयार किए हैं। साथ ही साथ वर्मीकंपोस्ट भी तैयार की है। इस कंपोस्ट में 75 प्रतिशत गाय का गोबर और 25 प्रतिशत रॉक फास्फेट होता है। वर्मीकंपोस्ट और दूध बेचकर भी आकाश अतिरिक्त आय सृजित करते हैं। आकाश का कहना है कि अगर देशभर के किसान इस पद्धति को अपनाएं तो खेती को फायदे का सौदा बनाया जा सकता है।
डॉक्टर का सपना छोड़ क्यों खेती में दिखाई रुचि
आकाश कहते है कि किसी व्यक्ति का सपना होता है कि डॉक्टर बनना है, अच्छा पैसा और नाम कमाना है, लेकिन मेरा डॉक्टर बनने का सपना यह था कि लोगों की सेहत अच्छी करना है। मैने देखा कि मैं डॉक्टर बनकर लोगों की सेहत अच्छी न कर पाऊं, क्योंकि आज की तारीख में जैसा खान-पान हो रहा है लोगों का, उससे सेहत दिन प्रतिदिन बिगड़ता चला रहा है। डॉक्टर बनकर सेहत तो नहीं सुधार पाएंगे, जो तकलीफ होगी उसे सुधार पाएंगे। क्यों न हम सेहत को सुधारे, सेहत पर ध्यान दिया जाए। यह विचार आने के बाद खेती का काम शुरू किया। यहीं वह दिन था कि कृषि संकट के दौर से गुजर रहे देश को एक युवा किसान ने उम्मीद की रोशनी दिखाई है। सूखे की मार से प्रभावित बुंदेलखंड क्षेत्र के सागर मध्य प्रदेश के रहने वाले आकाश चौरसिया खेती का ऐसा प्रयोग कर रहे हैं जो न केवल पर्यावरण के लिहाज से अनुकूल है बल्कि लाभकारी भी है। आकाश ने मल्टीलेयर खेती की नई पद्धति विकसित की है।