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Sagar University : बेटियों की साख पर बट्टा

locationसागरPublished: Mar 29, 2018 05:18:02 pm

दिन शहर के लोगों के लिए खास रहा। एक मसला साख का था तो दूसरा सुविधाओं का।

Issue of Menstrual Check in University, Presenting Corporation Budget

Issue of Menstrual Check in University, Presenting Corporation Budget

सागर. साख का मसला ऐसे कि विवि में छात्राओं की माहवारी चैक कराने के मामले की जांच रिपोर्ट आई। इसमें विवि प्रशासन ने दोनों वार्डन को हटा दिया, पर इसे नैतिकता करार दिया गया। टीम की कथित जांच में वे फिर भी दोषी नहीं पाई गईं। प्रोक्टर बोले, फिलहाल ये तय नहीं हुआ कि वे दोषी हैं या नहीं। छात्राओं को विवि का निर्णय सुखद तो लगा, लेकिन उन्हें टीस यह रही कि वार्डन ने जब उन्हें शर्मसार किया था तो सार्वजनिक रूप से मांफी नहीं मांगी। विवि में ड्रामा दिनभर चलता रहा। कुलपति भी धरने पर बैठे, अंतत: रात में मामला शांत हो गया।
डॉ. हरिसिंह गौर केंद्रीय विवि के महारानी लक्ष्मीबाई कन्या छात्रावास में 50 छात्राओं की माहवारी चैक कराने के मामले की जांच रिपोर्ट आखिककार बुधवार को आ ही गई। विवि प्रशासन ने रिपोर्ट को सार्वजनिक करते हुए छात्राओं को बताया कि वार्डन प्रो.चंदा बेन व संध्या पटेल को पद से हटा दिया गया है। लेकिन यहां गौर करने योग्य तथ्य यह है कि विवि ने रिपोर्ट के असल तथ्यों को छिपाते हुए छात्राओं को गुमराह किया है।
दरअसल, विवि की ओर से जारी बयान में यह स्पष्ट नहीं किया गया है कि जांच में वार्डन प्रो. चंदा बेन और प्रो. संध्या पटेल दोषी हैं या नहीं। साथ ही कमेटी यह भी तय कर पाई कि सामूहिक रूप से छात्राओं की माहवारी चैक हुई है। यह कार्रवाई प्रबंधन ने नैतिकता के आधार पर की है, जिसे सार्वजनिक नहीं किया गया।
छात्राएं बोलीं, हमारी मूल मांगें अधूरी रहीं
इस तथ्य से अनजान छात्राओं ने निर्णय का स्वागत किया और सभी ने ताली बजाई। रिपोर्ट का खुलासा नवागत रजिस्ट्रार विवेक दुबे ने किया था। इस दौरान जब उन्होंने छात्राओं से बात की तो वे बोलीं: यह काफी नहीं है। उनकी मूल मांगें पूरी नहीं हुई हैं। एक छात्रा ने खड़े होकर अपनी मांग रजिस्ट्रार के सामने रखी। बताया कि वार्डन प्रो. चंदा बेन सार्वजनिक रूप से गलती स्वीकार करें और सभी से माफी मांगें, लेकिन रजिस्ट्रार ने चंदा बेन के अस्वस्थ होने और अस्पताल में भर्ती होने की बात बताई। इसके बाद भी छात्राएं नहीं मानीं तो रजिस्ट्रार मौके से चले गए।
डेढ़ घंटे के इंतजार के बाद आई रिपोर्ट
विवि प्रशासन को तीन दिन में यह जांच रिपोर्ट प्रस्तुत करना थी। शाम ५ बजे रिपोर्ट सार्वजनिक करने की बात कही गई थी। लेकिन विवि ने 6.30 बजे रिपोर्ट सार्वजनिक की। इससे पूर्व छात्राएं बड़ी संख्या में केंद्रीय कार्यालय के पास जमा हो गईं थीं और रिपोर्ट जल्द प्रस्तुत करने को लेकर नारेबाजी करने लगीं। करीब देढ़ घंटे तक नारेबाजी चलती रही। इस बीच प्रोक्टर प्रो. एपी दुबे छात्राओं के बीच पहुंचे, जहां उन्होंने छात्राओं से 5.45 बजे हॉस्टल में रिपोर्ट बताने की बात कही। इसका छात्राओं ने विरोध किया और धरनास्थल पर ही रिपोर्ट सावर्जनिक करने की बात कही। फिर प्रो. दुबे वहां से चले गए। इसके बाद सीएसपी आए और उन्होंने 15 मिनट बाद रिपोर्ट आने की बात कही। लेकिन इसके बाद भी जब रिपोर्ट नहीं आई तो छात्राओं ने नारेबाजी शुरू कर दी।
प्रो.चंदा बेन को चेयरमैन पद से भी हटाया
रजिस्ट्रार विवेक दुबे ने रिपोर्ट में बताया कि कार्रवाई में प्रो. चंदा बेन को उनके पद वार्डन और महिला उत्पीडऩ कमेटी के चेयरमैन पद से हटा दिया है। संध्या पटेल को भी वार्डन पद से हटा दिया है। अधिकारी की बात सुनकर छात्राओं के चेहरे खिल उठे, लेकिन उनकी दो मांगें न माने जाने पर हंगामा खड़ा कर दिया। 8.15 बजे तक तक वे धरने पर बैठी रहीं।
धरने पर बैठी छात्राओं को कुलपति ने मनाया
माफी मंगवाने की जिद पर अड़ीं छात्राओं के प्रतिनिधिमंडल के रूप में पांच छात्राओं को कुलपति ने कक्ष में बुलाया। यहां बंद कमरे में 20 मिनट तक चर्चा हुई। यहां छात्राओं ने कहा कि कुलपति प्रो. तिवारी ने मांगें मान ली हैं। जल्द हॉस्टल आकर वे दोनों वार्डन से माफी मंगवाएंगे। इसके बाद धरना समाप्त हो गया, हालांकि जब छात्राओं से बात की तो उन्होंने मीडिया से बात नहीं की।
छात्र को उठाया तो शुरू हो गया हंगामा
छात्राओं के साथ विवि के छात्र और संगठनों के कार्यकर्ता भी थे। विवि ने जानकारी सिविल लाइन पुलिस को दी। टीआई संगीता सिंह पहुंचीं। नारेबाजी में एक छात्र बोला, पुलिस लाठीचार्ज करने आई है, हम भी पीछे नहीं हटेंगे।
विवि बना छावनी, 5 थानों के टीआई रहे तैनात
विवि में बड़ी संख्या में पुलिस तैनात थी। शाम ५ बजे सिविल लाइन थाना टीआई संगीता सिंह मौके पर पहुंची थीं। इसके बाद जैसे-जैसे माहौल गरमाना शुरू हुआ तो चार अन्य थानों की पुलिस मौके पर पहुंच गई।
सीधी बात- विवेक दुबे, रजिस्ट्रार
सवाल: जांच रिपोर्ट में क्या पाया?
जवाब: टीम में सदस्यों द्वारा प्रस्तुत रिपोर्ट अलग-अलग थीं। इनमें यह तय नहीं हो रहा था कि छात्राओं की माहवारी चैक हुई है।
सवाल: आप मानते हैं कि छात्राओं का चैकअप किया गया?
जवाब: रिपोर्ट में तीन तरह की बातें सामने आ रही हैं। इससे यह तय कर पाना मुश्किल हो रहा है।
सवाल: किस आधार पर दोनों वार्डनों पर कार्रवाई की गई।
जवाब: मामला संवेदनशील था। नैतिकता के आधार पर यह कार्रवाई की गई है।
सवाल: इस तरह की कार्रवाई तो पहले भी हो सकती थी?
जवाब: नहीं, विवि के रूल्स हैं, नियम हैं। बिना जांच किसी को दोषी नहीं
ठहराया जा सकता।
सवाल: दबाव में यह कार्रवाई की गई है, यह मानते हैं?
जवाब: जी नहीं। ऐसा बिलकुल भी नहीं है।

 

टिप्पणी- गोविंद अग्निहोत्री

…कुछ तो लाज बचा लेते साहब

नै तिकता अंतरात्मा की आवाज है। यह वह शब्द है जो हमें अच्छाई-बुराई का बोध कराता है। सीमा लांघने पर अंतर्मन धिक्कारता है। इसी नैतिकता शब्द का उपयोग कर वार्डनों को उनके पद से हटाया गया। इतनी ही नैतिकता थी तो आरोपी वार्डन माफी मांग सकती थीं। बेटी समान छात्राओं के सामने उनका कद छोटा नहीं हो जाता। पीडि़तों को न्याय दिलाने के नाम पर राजनीतिक रोटियां सेंकने वालों को मौका नहीं मिलता। अपनी पढ़ाई-लिखाई छोड़ छात्र-छात्राएं तपती दुपहरी में यूं प्रदर्शन न करते। कुलपति महोदय को भी गुस्से में धरने पर नहीं बैठना पड़ता। आप बैठे भी तो दूसरे पाले में। कहीं तो छात्राओं के पक्ष में खड़े दिखते। दरअसल, इस तरह के मामलों में जांच कमेटी गठित कर रिपोर्ट बनाना बचने-बचाने की सरल प्रक्रिया है। यही कुछ हुआ हमारी सेंट्रल यूनिवर्सिटी में। आशंका भी यही थी। जांच कमेटी के नाम का ड्रामा खेला गया। जब परदा उठा तो नौटंकी सामने आ गई। एक तरह से आरोपियों को क्लीन चिट दी गई। दूसरी ओर कमेटी में शामिल एक स्वतंत्र सदस्य का यह कहना कि घटना हुई है, जांच रिपोर्ट पर गंभीर सवाल उठाता है। ऐसे में कोई कितना विश्वास करे रिपोर्ट पर। परिवार के लोग यदि परिवार के ही किसी सदस्य पर लगे आरोपों की जांच करेंगे तो निष्पक्षता की उम्मीद कैसे की जा सकती है। उम्मीद तो आरोपियों पर सख्त कार्रवाई की थी। दांव पर लगी यूनिवर्सिटी की साख बचाने की भी उम्मीद थी। आगे से इस तरह की घटनाओं का दोहराव नहीं होगा, इसके लिए भी कुछ तो प्रावधान करते। विवि की धूमिल होती छवि की खातिर ही सही, नैतिकता के आधार पर कुछ तो लाज बचती।

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