ज्योति अब पिछले पांच साल से पार्लर का बिजनेस कर रही है और दूसरों को भी काबिल बना रही है। दरअसल ज्योति दस साल की उम्र तक अन्य बच्चियों की तरह ही जिंदगी जी रही थी, वहीं खेलना-कूदना, पढ़ना और मस्त मौला थी लेकिन दस की उम्र के बाद से ही वह अचानक बीमार रहनी लगी और 12 साल की होने के बाद स्थिति और ज्यादा बिगड़ी गई।
तब वह छतरपुर में रहती थी। गांव वालों के चलते सालों तक यूं ही बिना डॉक्टर के घरेलू इलाज होते रहे लेकिन फिर कुछ दिन में वही बुखार आना, घबराहट और सांस लेने में दिक्कत होने लगी। उसकी इस हालत से घर के सब लोग बहुत परेशान रहने लगे।
इसके बाद जब वह पिता की नौकरी के चलते सागर आई तो वहां भी इलाज के बाद सुधार नहीं हुआ। इस तरह हार्ट की बीमारी का पता चला और जांच में (हार्ट की पम्पिंग गति) एमवीएफ 17 से 18 प्रतिशत के बीच आया, जो करीब 70 से 80 प्रतिशत होना चाहिए था फिर जैसे-तैसे सालों तक इलाज चला, दवाइयां चली।
इसी बीच पिता की ट्रैवल में नौकरी थी वह भी छूट गई और भाई का भी एक एक्सीडेंट में एक हाथ कट गया। आर्थिक स्थिति बिगड़ती गई जिसके चलते इलाज बीच में रोकना पड़ा। ज्योति ने बताया उस समय लगा कि मुझे हिम्मत नहीं हारनी है, जबकि डॉक्टर्स भी बोल चुके थे कि मेरी जिंदगी अब ज्यादा दिनों की नहीं है।
ऑपरेशन के लिए लोगों से उधार लिए पैसे
कुछ इलाज के बाद एमवीएफ 23 प्रतिशत पहुंचा। इस तरह करीब 17 साल बेड रेस्ट करने के बाद ज्योति की तबियत में थोड़ा सुधार आया। ज्योति ने कहा बीमारी के वो 22-23 साल में ये तय कर लिया था, फिर से खड़े होना है और परिवार की मदद करना है, उन्हें आर्थिक स्थिति से उबारना है। ज्योति ने बताया डॉक्टरों ने नसों में भी फाल्ट बताया और हार्ट का ऑपरेशन (पेस मेकर) करना पड़ा, जिसमें लाखों का खर्चा बताया फिर सीएम हेल्प और लोगों से मदद लेकर ऑपरेशन हुआ, हालांकि अब भी एमवीएफ 22-23 प्रतिशत ही है, लेकिन इसी दौरान मैंने पार्लर का कोर्स किया और चार साल नौकरी करने के बाद अब मैंने अपना पार्लर शुरू कर लिया है।