तिवारी ने बताया कि जिस तकनीक से झाबुआ में कड़कनाथ प्रजाति को पाला जा रहा है और वहां पर जो महौल उन्हें दिया जाता है वह सागर में भी संभव है, इसलिए अब स्व-सहायता समूहों की मदद से इसे सागर में पाला जाएगा। आजीविका मिशन के दल में दो किसान राम अवतार घोषी व नर्मदा ठाकुर के साथ मिशन के प्रमोद चौरसिया, राकेश खरे, ऋषिकांत खत्री व नीरज गहरवाल शामिल थे।
अक्टूबर में आएगा पहला आर्डर
आजीविका मिशन सागर ने झाबुआ में पहले आर्डर के रूप में 500 चूजे मंगाए हैं। बताया जा रहा है कि यह पहला पार्सल सागर में अक्टूबर तक पहुंचेगा और इसके बाद इसे अंचलों में संचालित स्व-सहायता समूहों को 50-50 चूजे पालने के लिए दिए जाएंगे। इसके पहले झाबुआ में कड़कनाथ मुगे-मुर्गियों का पालन कर रहीं महिलाएं सागर आकर यहां पर स्व-सहायता समूहों की महिलाओं को प्रशिक्षित करेंगी।
सर्दी के सीजन में विदेशों तक होती है मांग
औषधीय गुण, सबसे कम फैट, चटखदार काले रंग, हमेशा याद रहने वाले लजीज स्वाद आदि के लिए पहचाने जाने वाले कड़कनाथ प्रजाति के मुर्गा-मुर्गियों की डिमांड सर्दी के सीजन में काफी बढ़ जाती है। आदिवासी बहुल क्षेत्र झाबुआ में पाए जाने वाले इन कड़कनाथ की मांग सर्दियों के समय देश में ही नहीं विदेशों में भी होती है। भारत-पाकिस्तान की सीमा से लगे श्रीगंगानगर, दक्षिणी छोर कर्नाटक, हैदराबादए केरल से लेकर गोरखपुर तक इस प्रजाति के मुर्गे की मांग है। यही नहीं कई एनजीओ भी झाबुआ क्षेत्र से मुर्गे व चूजे लेकर बाहर जाते हैं।
आदिवासियों की भाषा में मुर्गे का नाम कालीमासी
झाुबआ के आदिवासियों की क्षेत्रीय भाषा में कड़कनाथ प्रजाति के मुर्गा-मुर्गीयों को कालीमासी कहा जाता है। इसका मांस, चोंच, कलंगी, जुबान, पैर, नाखून, चमड़ी सभी काले होते है। इसमें प्रोटिन की प्रचूर मात्रा पाई जाती है। वहीं वसा बहुत कम होता है। यही वजह है कि इसे औषधीय गुणों वाला मुर्गा माना जाता है। बताया जाता है कि हृदय व डायबिटीज रोगियों के लिए कड़कनाथ रामबाण का काम करता है।
कड़कनाथ के है तीन रूप
500 चूजों का पहला आर्डर आ जाएगा
कड़कनाथ पालन में मुनाफा अधिक है इसलिए झाबुआ से चुजे लाकर सागर में इनका उत्पादन किया जाएगा। इसके लिए क्या-क्या आवश्कता है वह पता करने के लिए ही हम झाबुआ गए थे। अभी 10 अंडे लेकर आए हैं। इसके बाद अक्टूबर में हमारा 500 चूजों का पहला आर्डर आ जाएगा।
अनूप तिवारी, जिला प्रबंधक, आजीविका मिशन