हल से निकली सामग्री का निषेध
हरषष्टी के दिन जगह-जगह पर महिलाएं सामूहिक रूप से पूजन करेंगी। मान्यता है कि इस दिन व्रत करने से मिला पुण्य संतान को संकटों से मुक्ति दिलाता है। हलषष्ठी पर श्री कृष्ण के बड़े भाई बलराम के शस्त्र यानी हल की पूजा का विधान भी है इसलिए व्रती महिलाएं हल से जुड़ी वस्तुओं का सेवन इस दिन नहीं करती हैं।
हरषष्टी के दिन जगह-जगह पर महिलाएं सामूहिक रूप से पूजन करेंगी। मान्यता है कि इस दिन व्रत करने से मिला पुण्य संतान को संकटों से मुक्ति दिलाता है। हलषष्ठी पर श्री कृष्ण के बड़े भाई बलराम के शस्त्र यानी हल की पूजा का विधान भी है इसलिए व्रती महिलाएं हल से जुड़ी वस्तुओं का सेवन इस दिन नहीं करती हैं।
पसाई के चावल का है महत्व
पं. मनोज तिवारी ने बताया कि इस तिथि विशेष के लिए पसहर चावल की खीर विशेष रूप से बनाई जाती है। इसे बुंदेली में पसाई के चावल भी कहा जाता है। यह चावल बोया नहीं जाता बल्कि खेतों में अपने-आप ही उगते हैं। विधि पूर्वक हल षष्ठी व्रत का पूजन करने से संतान सुख की प्राप्ति होती है। भाद्रपद के कृष्ण पक्ष की षष्ठी के दिन भगवान कृष्ण के बड़े भाई बलराम जी का जन्म हुआ था। बलराम जी का प्रधान शस्त्र हल तथा मूसल है।
पं. मनोज तिवारी ने बताया कि इस तिथि विशेष के लिए पसहर चावल की खीर विशेष रूप से बनाई जाती है। इसे बुंदेली में पसाई के चावल भी कहा जाता है। यह चावल बोया नहीं जाता बल्कि खेतों में अपने-आप ही उगते हैं। विधि पूर्वक हल षष्ठी व्रत का पूजन करने से संतान सुख की प्राप्ति होती है। भाद्रपद के कृष्ण पक्ष की षष्ठी के दिन भगवान कृष्ण के बड़े भाई बलराम जी का जन्म हुआ था। बलराम जी का प्रधान शस्त्र हल तथा मूसल है।
ये है पूजन विधि
हलषष्ठी के दिन महिलाएं सुबह स्नान करके व्रत का संकल्प लेती हैं। इसके बाद घर या बाहर कहीं भी दीवार पर भैंस के गोबर से छठ माता का चित्र बनाते हैं। फिर भगवान गणेश और माता पार्वती की पूजा की पूजा कर छठ माता की पूजा की जाती है। कई जगह महिलाएं घर में ही गोबर से प्रतीक रूप में तालाब बनाकर उसमें झरबेरी, पलाश और कांसी के पेड़ लगाती हैं और वहां पर बैठकर पूजा अर्चना करती हैं एवं हल षष्ठी की कथा सुनती हैं। मान्यता के अनुसार इस व्रत में इस दिन दूध, घी, सूखे मेवे, लाल चावल आदि का सेवन किया जाता है। इस दिन गाय के दूध व दही का सेवन नहीं करना चाहिए।
हलषष्ठी के दिन महिलाएं सुबह स्नान करके व्रत का संकल्प लेती हैं। इसके बाद घर या बाहर कहीं भी दीवार पर भैंस के गोबर से छठ माता का चित्र बनाते हैं। फिर भगवान गणेश और माता पार्वती की पूजा की पूजा कर छठ माता की पूजा की जाती है। कई जगह महिलाएं घर में ही गोबर से प्रतीक रूप में तालाब बनाकर उसमें झरबेरी, पलाश और कांसी के पेड़ लगाती हैं और वहां पर बैठकर पूजा अर्चना करती हैं एवं हल षष्ठी की कथा सुनती हैं। मान्यता के अनुसार इस व्रत में इस दिन दूध, घी, सूखे मेवे, लाल चावल आदि का सेवन किया जाता है। इस दिन गाय के दूध व दही का सेवन नहीं करना चाहिए।
हलषष्ठी व्रत कथा
प्रचलित कथा के अनुसार एक ग्वालिन दूध दही बेचकर अपना जीवन व्यतीत करती थी। एक बार वह गर्भवती दूध बेचने जा रही थी तभी रास्ते में उसे प्रसव पीड़ा होने लगी। इस पर वह एक झरबेरी पेड़ के नीचे बैठ गई और वहीं पर एक पुत्र को जन्म दिया। ग्वालिन को दूध खराब होने की चिंता थी इसलिए वह अपने पुत्र को पेड़ के नीचे सुलाकर पास के गांव में दूध बेचने के लिए चली गई। उस दिन हलछठ का व्रत था और सभी को भैंस का दूध चाहिए था, लेकिन ग्वालिन ने लोभवश गाय के दूध को भैंस का बताकर सबको दूध बेच दिया। इससे छठ माता को क्रोध आया और उन्होंने उसके बेटे के प्राण हर लिए। ग्वालिन जब लौटकर आई तो रोने लगी और उसे अपनी गलती का अहसास हुआ। इसके बाद सभी के सामने उसने अपना गुनाह स्वीकार कर पैर पकड़कर माफी मांगी। इसके बाद हर छठ माता प्रसन्न हो गई और उसके पुत्र को जीवित कर दिया। इस वजह से ही इस दिन पुत्र की लंबी उम्र की कामना से हलछठ का व्रत व पूजन किया जाता है।
प्रचलित कथा के अनुसार एक ग्वालिन दूध दही बेचकर अपना जीवन व्यतीत करती थी। एक बार वह गर्भवती दूध बेचने जा रही थी तभी रास्ते में उसे प्रसव पीड़ा होने लगी। इस पर वह एक झरबेरी पेड़ के नीचे बैठ गई और वहीं पर एक पुत्र को जन्म दिया। ग्वालिन को दूध खराब होने की चिंता थी इसलिए वह अपने पुत्र को पेड़ के नीचे सुलाकर पास के गांव में दूध बेचने के लिए चली गई। उस दिन हलछठ का व्रत था और सभी को भैंस का दूध चाहिए था, लेकिन ग्वालिन ने लोभवश गाय के दूध को भैंस का बताकर सबको दूध बेच दिया। इससे छठ माता को क्रोध आया और उन्होंने उसके बेटे के प्राण हर लिए। ग्वालिन जब लौटकर आई तो रोने लगी और उसे अपनी गलती का अहसास हुआ। इसके बाद सभी के सामने उसने अपना गुनाह स्वीकार कर पैर पकड़कर माफी मांगी। इसके बाद हर छठ माता प्रसन्न हो गई और उसके पुत्र को जीवित कर दिया। इस वजह से ही इस दिन पुत्र की लंबी उम्र की कामना से हलछठ का व्रत व पूजन किया जाता है।
पूजन का शुभ मुहूर्त
षष्ठी तिथि 16 अगस्त मंगलवार को रात 8 बजकर 19 मिनट से शुरू होगी और 17 अगस्त रात 9 बजकर 21 मिनट तक रहेगी। उदयातिथि के आधार पर हलषष्ठी का व्रत 17 अगस्त को मनाया जाएगा।
षष्ठी तिथि 16 अगस्त मंगलवार को रात 8 बजकर 19 मिनट से शुरू होगी और 17 अगस्त रात 9 बजकर 21 मिनट तक रहेगी। उदयातिथि के आधार पर हलषष्ठी का व्रत 17 अगस्त को मनाया जाएगा।