रक्तदान कर बीएमसी के दो डॉक्टरों ने बचाई अज्ञात घायल की जान
सुरखी के पास शुक्रवार रात हुए हादसे में घायल को पहुंचाया गया था बीएमसी
सागर. इलाज में लापरवाही के लिए चर्चा में रहने वाले बुंदेलखण्ड मेडिकल कॉलेज के दो डॉक्टरों ने शुक्रवार रात संवेदनशीलता दिखाते हुए उस समय रक्तदान कर अज्ञात घायल की जान बचाई जब कोई उसे खून देने तैयार नहीं था। सुरखी के पास हाइवे पर हादसे में घायल होने के बाद युवक के शरीर से लगातार खून बह रहा था और उसकी हालत काफी नाजुक थी। एम्बुलेंस द्वारा उसे बीएमसी लाने के बाद डॉक्टरों ने उसकी जांच की और जब कहीं से खून मिलने की स्थिति नजर नहीं आई तो स्वयं ही रक्तदान कर दिया। दोनों डॉक्टरों द्वारा समय पर अपना खून देने से मरीज की जान बचा ली गई। शनिवार सुबह हादसे में घायल युवक के परिजन बीएमसी पहुंचे और रक्तदान का पता लगने पर दोनों डॉक्टरों के प्रति कृतज्ञता जताते हुए भावुक हो उठे।
जानकारी के अनुसार बीएमसी में शुक्रवार रात को खून से लथपथ हालत में युवक को लाया गया था। उसकी हालत अधिक रक्तस्राव के कारण काफी बिगड़ी हुई थी। रात में ड्यूटी पर तैनात डॉक्टर सौरभ शुक्ला और डॉ.उमेश मिश्रा ने तुरंत उसका चैकअप किया। हालज नाजुक होने के बारे में बताया लेकिन साथ में किसी व्यक्ति के नहीं होने पर वे चिंता में पड़ गए। रक्तस्राव के कारण शरीर का काफी खून बहने से उसकी जान को खतरा बढ़ गया था। एेसे में दोनों डॉक्टरों ने मानवीय संवेदना का परिचय दिया। उन्होंने तुरंत नर्सिंग स्टाफ को बुलाया और मरीज को ऑपरेशन थिएटर में शिफ्ट कराया। मरीज की जान बचाने के लिए खून की जरूरत को देखते हुए डॉ.शुक्ला और डॉ. मिश्रा ने एक-एक यूनिट रक्त दान किया। रात में मरीज को ब्लड यूनिट चढ़ाए गए और इसकी वजह से उसकी जान बच गई।
शनिवार सुबह राघवेन्द्र नाम बताते हुए घायल के परिजन बीएमसी पहुंचे। इस दौरान उन्हें नाजुक स्थिति और घातक चोट के कारण पांव के बुरी तरह क्षतिग्रस्त होने के बारे में बताया गया। जिसके बाद वे चले गए। इस बीच युवक को उच्च स्तरीय उपचार के लिए भोपाल रेफर करने की स्थिति बनी लेकिन डीन डॉ.जीएस पटेल ने उसकी स्थिति को देखते हुए हर प्रकार की उपचार सुविधा बीएमसी में ही उपलब्ध कराते हुए वार्ड में शिफ्ट करा दिया गया जहां डॉक्टरों की निगरानी में उसका उपचार जारी है। बताया जा रहा है कि शरीर से इतना अधिक खून बह चुका था कि यदि समय पर डॉक्टरों द्वारा रक्तदान नहीं किया गया होता तो राघवेन्द्र की जान बचाना मुश्किल था।
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