कार्तिक शुक्ल षष्ठी के दिन बिहार क्षेत्र के शहर सहित जिले भर में रोजगार के उद्देश्य से निवासरत लोगों ने सूर्य षष्ठी व्रत हर्षोल्लास से किया। व्रतार्थी पूरा दिन निर्जल रहे। शाम करीब पांच बजे माणक चौक से शोभायात्रा निकली। इसमें श्रद्धालुओं का उत्साह देखते ही बना। पुरुष सिर पर मौसमी फल एवं व्रत की पूजन सामग्री लेकर चलते दिखे। वहीं, महिलाएं हाथों में पवित्र जल के ताम्र कलश लेकर चली। शोभायात्रा प्रमुख मार्गों से होती हुई गेपसागर जलाशय पहुंची। यहां पूजा के बाद शोभायात्रा वापस इन्हीं मार्गों से माणक चौक पहुंची। व्रतार्थी सोमवार सुबह सूर्योदय पर भी अर्घ्य समर्पित कर व्रत खोलेंगे।
ठेकुआ का चढ़ाया भोग
व्रतार्थियों ने गेपसागर की पाल पर पहुंच कर फल के अघ्र्य समर्पित किए। सूर्य भगवान को आटे एवं शक्कर से बनाए जाने वाले ठेकुआ मिष्ठान का भोग लगाया। व्रतार्थियों ने 12 तरह के फल एवं गूंजिया, खास्टा, मालपुआ आदि पकवान सूर्य को अघ्र्य दिए।
व्रतार्थियों ने गेपसागर की पाल पर पहुंच कर फल के अघ्र्य समर्पित किए। सूर्य भगवान को आटे एवं शक्कर से बनाए जाने वाले ठेकुआ मिष्ठान का भोग लगाया। व्रतार्थियों ने 12 तरह के फल एवं गूंजिया, खास्टा, मालपुआ आदि पकवान सूर्य को अघ्र्य दिए।
गो दुग्ध का अघ्र्य परिवार में सुख-शांति के लिए सूर्य षष्ठी व्रत के तहत व्रतार्थी षष्ठी से लेकर सप्तमी की सुबह तक निर्जल रहते हैं। सप्तमी को तड़के सूर्य को गौ-दूध का अर्घ्य देने के बाद शुद्ध जल चढ़ाया जाएगा। इसके बाद व्रत खोलेंगे।
डूंगरपुर में अन्य प्रदेशों के तीज-त्योहार से झलक हो रही अनेकता में एकता
पहाड़ों की नगरी डूंगरपुर अपनी स्थानीय लोक धार्मिक आस्थाओं के चलते पूरे प्रदेश में अलग ही स्थान रखती है। हर दस से पंद्रह किलोमीटर की दूरी पर धूणियां धर्म की प्रवाहिणी बन युवा पीढ़ी को सींच रही हैं, तो लोक देवता कल्ला राठौड़ एवं गातरोड़ धाम के प्रति जनजन की आस्था है। वागड़ की ऐसी ही अनुपम विशेषताओं के बीच पिछले कुछ वर्षों से अन्य राज्यों की भक्ति प्रवाहिणी का भी अनुपम संगम हो रहा है।
पहाड़ों की नगरी डूंगरपुर अपनी स्थानीय लोक धार्मिक आस्थाओं के चलते पूरे प्रदेश में अलग ही स्थान रखती है। हर दस से पंद्रह किलोमीटर की दूरी पर धूणियां धर्म की प्रवाहिणी बन युवा पीढ़ी को सींच रही हैं, तो लोक देवता कल्ला राठौड़ एवं गातरोड़ धाम के प्रति जनजन की आस्था है। वागड़ की ऐसी ही अनुपम विशेषताओं के बीच पिछले कुछ वर्षों से अन्य राज्यों की भक्ति प्रवाहिणी का भी अनुपम संगम हो रहा है।
रोजगार एवं शिक्षा के उद्देश्य से हजारों किलोमीटर दूर जिला मुख्यालय पर रहने वाले अन्य राज्यों के परिवार वहां के त्योहारों आदि का उल्लास के साथ आयोजन करते हैं, तो भारत के हर कोने में एक भारत का दृश्य जीवंत हो उठता है। वागड़ की सर्वग्राही संस्कृति के चलते स्थानीय लोग भी इन आयोजनों में शामिल होते हैं। इससे देश के कोने-कोने में प्रचलित धार्मिक व सांस्कृतिक विविधता से रूबरू होने का अवसर भी मिल रहा है।
बंगाली परिवार करते हैं दुर्गा पूजा
गत कुछ वर्षों से बंगाली परिवार की ओर से शारदीय नवरात्रि मेें तीन दिवसीय दुर्गापूजा महोत्सव मनाया जाता है। बड़ी संख्या में स्थानीय लोग भी देश के पूर्वी छोर की संस्कृति का दिग्दर्शन करने और उसमें भागीदारी निभाने पहुंचते हैं। पूर्णाहुति पर शोभायात्रा निकाली जाती है।
गत कुछ वर्षों से बंगाली परिवार की ओर से शारदीय नवरात्रि मेें तीन दिवसीय दुर्गापूजा महोत्सव मनाया जाता है। बड़ी संख्या में स्थानीय लोग भी देश के पूर्वी छोर की संस्कृति का दिग्दर्शन करने और उसमें भागीदारी निभाने पहुंचते हैं। पूर्णाहुति पर शोभायात्रा निकाली जाती है।
ओणम से बढ़ता प्रेम
श्रावण मास में केरल में ओणम पर्व मनाया जाता है। फसल कटाई पर राजा महाबली की स्मृति में किए जाने वाले पर्व के बारे में मूलत: केरल हाल हाउसिंग बोर्ड के आर. पिल्लई बताते हैं कि ओणम पर्व दीपावली के समान ही मनाया जाता है। केरल परिवार के लोग एक-दूसरे के यहां जाते हैं। पर्व के तहत अब यहां के लोग भी केरल परिवारों के घर जाते हैं एवं परस्पर बधाई देते हुए मिठाई खिलाते हैं।
श्रावण मास में केरल में ओणम पर्व मनाया जाता है। फसल कटाई पर राजा महाबली की स्मृति में किए जाने वाले पर्व के बारे में मूलत: केरल हाल हाउसिंग बोर्ड के आर. पिल्लई बताते हैं कि ओणम पर्व दीपावली के समान ही मनाया जाता है। केरल परिवार के लोग एक-दूसरे के यहां जाते हैं। पर्व के तहत अब यहां के लोग भी केरल परिवारों के घर जाते हैं एवं परस्पर बधाई देते हुए मिठाई खिलाते हैं।
लोहड़ी एवं वैसाखी
13 जनवरी को लोहड़ी एवं 13 अप्रैल को वैसाखी पर्व धूमधाम से मनाया जाता है। लोहड़ी पर हेमूकालानी चौक एवं हाउसिंग बोर्ड में होलिका दहन की तर्ज पर होने वाले इस पर्व में न केवल सिंधी समाज अपितु अन्य क्षेत्रवासी भी शामिल होते हैं। समाज के सुनील भठिजा बताते हैं कि शहर में करीब 650 सिंधी समाज के लोग धूमधाम से हिस्सा लेते हैं।
13 जनवरी को लोहड़ी एवं 13 अप्रैल को वैसाखी पर्व धूमधाम से मनाया जाता है। लोहड़ी पर हेमूकालानी चौक एवं हाउसिंग बोर्ड में होलिका दहन की तर्ज पर होने वाले इस पर्व में न केवल सिंधी समाज अपितु अन्य क्षेत्रवासी भी शामिल होते हैं। समाज के सुनील भठिजा बताते हैं कि शहर में करीब 650 सिंधी समाज के लोग धूमधाम से हिस्सा लेते हैं।