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केवल बोर्ड लगाकर चल रहे झूलाघर, अनुदान के नाम पर लाखों की चपत

locationसागरPublished: Sep 06, 2018 02:55:17 pm

Submitted by:

Samved Jain

पत्रिका पड़ताल में सामने आई हकीकत

Locked by the board, the floating hoop, the name of the grant

Locked by the board, the floating hoop, the name of the grant

रेशु जैन सागर. झूलाघर अनुदान के नाम पर सरकार को चपत लग रही है। अधिकांश संस्थाओं ने कागजों पर ही झूलाघर संचालित किए जा रहे हैं। घरों में झूलाघर का बोर्ड लगाकर लाखों रुपए निकाले जा रहे हैं, जिस संस्था के नाम पर फंड लिया जा रहा है, वह हकीकत में है ही नहीं। दरअसल, झूलाघर (क्रेंच) केंद्र सरकार की योजना है। इनमें छह माह से छह साल तक के बच्चे रखे जाते हैं। योजना का उद्देश्य कामकाजी महिलाओं के बच्चों की देख-भाल करना है। इस योजना के क्रियान्वयन का जिम्मा प्रदीप राय महिला बाल विकास अधिकारी का है। महिला बाल विकास अधिकार से बात करने के लिए कई बार कॉल किया गया, लेकिन फोन रिसीव नहीं हुआ।
पत्रिका टीम ने शहर में संचालित होने वाले झूलाघरों की पड़ताल की तो सामने आया कि यहां संचालित होने वाले झूलाघर व्यवस्थित संचालित ही नहीं हो रहे हैं। केवल बोर्ड लगाकर लाखों रुपए की राशि निकाली जा रही है। सभी झूलाघरों में सिर्फ बोर्ड लगाकर अनुदान लिया जा रहा। पड़ताल के दौरान जब शहर के पुरव्याउ टौरी, बरिया घाट, लक्ष्मीपुरा, गोपालगंज के झूलाघरों की स्थिति का जायजा लिया गया तो सामने आया कि कहीं झूलाघर के भवन में कबाड़ भरा हुआ है। कहीं बोर्ड लगाकर मजदूरों को भवन किराए से दिया जा चुका है। जिले में ऐसे करीब ३० झूलाघर संचालित हो रहे हैं, जो कागजों पर ही हैं।
केंद्र सरकार से मिलती थी अनुमति- झूला घर चलाने की अनुमति अभी तक केंद्र सरकार का समाज कल्याण बोर्ड देता था। अब यह अनुमति राज्य सरकार (महिला बाल विकास) देता है। योजना के मुताबिक झूलाघर में खिलौने, झूले और खेल का मैदान मेडिसिन और प्री स्कूल एजुकेशन किट होना चाहिए। इसके अलावा डॉक्टर, पालनाघर कार्यकर्ता और पालनाघर सहायक की नियुक्ति भी अनिवार्य है। अनुदान भी दो प्रकार से मिलता है। पहला आवर्ती, इसमें कर्मचारियों का वेतन शामिल है। अनावर्ती में खिलौने, झूले आदि का बजट मंजूर होता है।

1 लाख से अधिक राशि मिलती है अनुदान में
जानकारी अनुसार प्रत्येक झूलाघर संचालक के लिए सालाना 1 लाख 51 हजार रुपए का बजट तय है। इसमें से 60 फीसदी राशि केंद्र सरकार देती है। 30 प्रतिशत अनुदान राज्य सरकार मिलाती है। झूलाघर चलाने वाली संस्था को महज दस फीसदी खर्च वहन करना पड़ता है। इस मान से हर संस्था को प्रति झूलाघर सालाना एक लाख 36 हजार 600 रुपए मिलते हैं।
केस-1
पुरव्याउ टौरी पर झूलाघर किराए के कमरे में संचालित हो रहा है। यहां झूलाघर के नाम पर केवल बोर्ड लगा हुआ है। बच्चों के लिए कोई सुविधा नहीं है। जिस कमरे में झूलाघर है, वहां गाडिय़ा खड़ी रहती हैं। पत्रिका की टीम जब यहां पहुंची तो एक भी बच्चा नहीं था। केंद्र पर केवल सहायिका थी। टीम के आने के बाद यहां कार्यकर्ता रेखा गुरु पहुंची। झूलाघर में केवल एक ब्लेक बोर्ड लगा हुआ है। यहां बच्चों को खेलने और पढऩे की कोई सुविधा नहीं है। वर्षों से यह ऐसे ही चलाया जा रहा है। यहां खिलौने की जगह अलमारी में झाड़ू और कबाड़ रखा मिला।

केस-2
पुरव्याउ टौरी पर नवीन ज्ञान भारती स्कूल के एक कमरे में झूलाघर का संचालन किया जाता था। यहां स्कूल बंद होने के बाद झूलाघर भी बंद हो गया और यहां मजदूर रह रहे हैं। आसपास के लोगों ने बताया कि झूलाघर का संचालन कागजों में हो रहा है, यहां बच्चों को कोई सुविधा नहीं है। जो बच्चे पास में क्रेंद्र आंगनबाड़ी में दर्ज हैं, वही बच्चे झूलाघर में भी जाते थे।इन केंद्रों का संचालन दीनानाथ तिवारी कर रहे हैं, ये केवल एक नहीं बल्कि शहर में ३ और ग्रामीण स्तर पर ६ केंद्रों का संचालन कर रहे हैं। ये केवल कागजों में ही चलाए जा रहे हैं।

केस-3
गोपालगंज स्थित बालभारती स्कूल में भी एक झूलाघर का संचालन किया जा रहा है। पत्रिका की टीम के पहुंचने पर यह बंद मिला। आसपास के लोगों ने बताया कि यहां झूलाघर बंद हो गया है, यहां पर बोर्ड लगा हुआ है, लेकिन आस-पास के लोगों को इसकी कोई सुविधा नहीं मिल रही है। यह केंद्र एमपी बलैया के परिवार के लोगों द्वारा संचालित किया जाता है।

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