1 लाख से अधिक राशि मिलती है अनुदान में
जानकारी अनुसार प्रत्येक झूलाघर संचालक के लिए सालाना 1 लाख 51 हजार रुपए का बजट तय है। इसमें से 60 फीसदी राशि केंद्र सरकार देती है। 30 प्रतिशत अनुदान राज्य सरकार मिलाती है। झूलाघर चलाने वाली संस्था को महज दस फीसदी खर्च वहन करना पड़ता है। इस मान से हर संस्था को प्रति झूलाघर सालाना एक लाख 36 हजार 600 रुपए मिलते हैं।
केस-1
पुरव्याउ टौरी पर झूलाघर किराए के कमरे में संचालित हो रहा है। यहां झूलाघर के नाम पर केवल बोर्ड लगा हुआ है। बच्चों के लिए कोई सुविधा नहीं है। जिस कमरे में झूलाघर है, वहां गाडिय़ा खड़ी रहती हैं। पत्रिका की टीम जब यहां पहुंची तो एक भी बच्चा नहीं था। केंद्र पर केवल सहायिका थी। टीम के आने के बाद यहां कार्यकर्ता रेखा गुरु पहुंची। झूलाघर में केवल एक ब्लेक बोर्ड लगा हुआ है। यहां बच्चों को खेलने और पढऩे की कोई सुविधा नहीं है। वर्षों से यह ऐसे ही चलाया जा रहा है। यहां खिलौने की जगह अलमारी में झाड़ू और कबाड़ रखा मिला।
केस-2
पुरव्याउ टौरी पर नवीन ज्ञान भारती स्कूल के एक कमरे में झूलाघर का संचालन किया जाता था। यहां स्कूल बंद होने के बाद झूलाघर भी बंद हो गया और यहां मजदूर रह रहे हैं। आसपास के लोगों ने बताया कि झूलाघर का संचालन कागजों में हो रहा है, यहां बच्चों को कोई सुविधा नहीं है। जो बच्चे पास में क्रेंद्र आंगनबाड़ी में दर्ज हैं, वही बच्चे झूलाघर में भी जाते थे।इन केंद्रों का संचालन दीनानाथ तिवारी कर रहे हैं, ये केवल एक नहीं बल्कि शहर में ३ और ग्रामीण स्तर पर ६ केंद्रों का संचालन कर रहे हैं। ये केवल कागजों में ही चलाए जा रहे हैं।
केस-3
गोपालगंज स्थित बालभारती स्कूल में भी एक झूलाघर का संचालन किया जा रहा है। पत्रिका की टीम के पहुंचने पर यह बंद मिला। आसपास के लोगों ने बताया कि यहां झूलाघर बंद हो गया है, यहां पर बोर्ड लगा हुआ है, लेकिन आस-पास के लोगों को इसकी कोई सुविधा नहीं मिल रही है। यह केंद्र एमपी बलैया के परिवार के लोगों द्वारा संचालित किया जाता है।