गोधुली बेला में हुआ भगवान दत्त का जन्म, गेंदे और शेवंती के फूलों से सजा मंदिर
सागर. लक्ष्मीपुरा स्थित दत्त मंदिर में शनिवार को महाराष्ट्र समाज ने दत्त जयंती का आयोजन किया गया। मंदिर में भगवान दत्त के प्रिय फूल गेंदे और शेवंती की मालाओं से से सजावट की गई है। समाज के सदस्य सुयश वाखले ने बताया कि शाम को 4 बजे से दत्त मंदिर में भजन-कीर्तन का आयोजन हुआ।
महाराष्ट्र समाज से धूमधाम से किया दत्त जयंती का आयोजन सागर. लक्ष्मीपुरा स्थित दत्त मंदिर में शनिवार को महाराष्ट्र समाज ने दत्त जयंती का आयोजन किया गया। मंदिर में भगवान दत्त के प्रिय फूल गेंदे और शेवंती की मालाओं से से सजावट की गई है। समाज के सदस्य सुयश वाखले ने बताया कि शाम को 4 बजे से दत्त मंदिर में भजन-कीर्तन का आयोजन हुआ। फूलों से सजे पालने में गोधुली बेला में भगवान दत्त का जन्म हुआ। दत्त भगवान के प्रिय प्रसाद मुंगफली, तिल, गुड़ की पट्टी, पंजीरी और फल सहित डेढ़ क्विंटल से अधिक की प्रसादी का वितरण हुआ। दत्त मंदिर में न केवल समाज के लोग बल्कि शहर के विभिन्न इलाकों से लोग भगवान दत्तात्रैय के दर्शन करने आते हैं। यहां दत्त जयंती के 7 दिन पहले से ही दत्त चरित्र का वाचन होता है। प्रतिदिन दूध, पंचामृत एवं गंगाजल से भगवान का अभिषेक होता है। शाम को महाराष्ट्र की विशेष विधा कीर्तन का भी आयोजन किया गया था। जिसे नागपुर से आईं सौ प्रज्ञा ताई कुलकर्णी ने प्रस्तुत किया। वहीं तबले पर प्रशांत माणके और हारमोनियम पर जयंत माणके द्वारा संगत की गई। समाज के सचिव प्रदीप सुभेदार ने बताया कि रविवार की सुबह सत्यनारायण की पूजा होगी जिसके बाद महाप्रसादी का आयोजन होगा।दत्त भगवान के 24 गुरु थेप्रदीप सुभेदार ने बताया कि भगवान दत्त के साथ हमेशा एक गाय तथा आगे चार कुत्ते रहते हैं। औदुंबर वृक्ष के समीप इनका निवास बताया गया है। भगवान दत्तात्रेय ने जीवन में कई लोगों से शिक्षा ली। दत्तात्रेय ने अन्य पशुओं के जीवन और उनके कार्यकलापों से भी शिक्षा ग्रहण की। दत्तात्रेयजी कहते हैं कि जिससे जितना-जितना गुण मिला है उनको उन गुणों को प्रदाता मानकर उन्हें अपना गुरु मान लीजिए। उन्होंने पृथ्वी, जल, अग्नि, वायु, आकाश, चंद्रमा, सूर्य, कबूतर , अजगर, सिंधु, पतंग, भंवरा, मधुमक्खी, हाथी, हिरण, मछली , पिंगला, कुररपक्षी, बालक, कुमारी, सर्प, शरकृत, मकड़ी और भृंगी जैसे 24 गुरु बनाएं थे।
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