पंडित शिवप्रसाद तिवारी बताते हैं कि इस व्रत के विषय में मान्यता है कि इस व्रत को जो जन करता है उसे सभी भोगों की प्राप्ति के बाद मोक्ष की प्राप्ति होती है। यह व्रत सभी पापों का छय करने वाला व्रत है। शिवपुराण में लिखा है कि इस व्रत को लगातार 14 वर्षो तक करने के बाद विधि- विधान के अनुसार इसका उद्यापन करना चाहिए।
राशि के अनुसार शिव पूजन
मेष राशि – लाल वास्तु के भोग के साथ गुड़ और लाल चंदन से अभिषेक।
वृष राशि – दही- मिश्री मिलाकर अभिषेक करें। बतासा, चावल, सफेद फल प्रसाद से बाबा का पूजन करें।
मिथुन राशि – गन्ने का रस और फल के रस से अभिषेक करना चाहिए। मूंग, पान पत्ता और दूब अर्पण करना चाहिए।
कर्क राशि – घी और पंचामृत से अभिषेक करें। चावल, दूध, सफेद अकवन से बाबा का पूजन करें।
सिंह राशि- लाल चंदन और इत्र से अभिषेक करें। भोग के रूप में मीठा वस्तु और मखान रखें।
कन्या राशि – गन्ने और मौसमी का रस से अभिषेक करें। अर्पण के रूप में भांग, दूब और पान के पत्ता के साथ बेलपत्र का अर्पण करें।
तुला राशि – इत्र और चमेली तेल, मधु से अभिषेक करें। गुलाब या कमल में इत्र लगाकर अर्पण करें।
वृश्चिम राशि- पंचामृत और मधु से अभिषेक करें। लाल फल और लड्डू का भोग अर्पण करें।
धनु राशि – दूध, हल्दी और पिला चन्दन से अभिषेक करें। बेसन और नारंगी, केला का भोग लगाना चाहिए।
मकर राशि – नारियल के जल से अभिषेक करें। कमल फूल और बेल फल का अर्पण करें।
कुम्भ राशि – सरसो या तिल के तेल से अभिषेक करें। सम्मी का पत्र बेर या चिकू का अर्पण करें।
मीन राशि – पिला चन्दन या केसर उक्त जल से अभिषेक करें। पिला फल और फूल बाबा पर अर्पण करें।
प्राचीन शिवमंदिरों में होंगा महाभिषेक
भूतेश्वर मंदिर में सबसे पुराना शिवालय
भूतेश्वर मंदिर में शहर का सबसे पुराना शिवालय है इसलिए मंदिर को सिध्द दरवार कहते हैं। लाखों श्रध्दालु यहां हर साल दर्शन करने के लिए आते हैं। मंदिर के पुजारी पंडित मनोज तिवारी ने बताया प्रमाण मिलते हैं कि विक्रम संवत १५६० में मंदिर की स्थापना हुई थी। उस समय सागर गड़पहरा किला के अंतगर्त ही आता था। राजा दीलीप शाह के समय मंदिर की स्थापना हुई थी। लगभग ५१२ साल पहले मंदिर का निर्माण हुआ था। शिवरात्रि के मौके पर यहां रविवार को मंडप सजा, और रात में माता पार्वती को हल्दी चढ़ाई गई। सोमवार को यहां सुबह ४ बजे से ही महाभिषेक शुरू होगा और रात में बारात आएगी।