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सावधान! चढ़ रहा है प्रकृति का ‘पारा’, कम हुई हरियाली, कांक्रीट के जंगल ने गर्म की आबोहवा

मार्च १९९८ में तापमान ३६.३ डिग्री था, जो साल-दर-साल बढ़ते हुए २०१७ में ४१.४ डिग्री पर पहुंच गया है।

सागरMar 23, 2018 / 04:13 pm

गुलशन पटेल

Mercury has climbed 5 degrees in 20 years, it has become hot

Mercury has climbed 5 degrees in 20 years, it has become hot

रिपोर्ट: रेशु जैन. सागर. २० साल में हमारा सागर पांच डिग्री सेल्सियस तक गर्म हो गया है। मार्च १९९८ में तापमान ३६.३ डिग्री था, जो साल-दर-साल बढ़ते हुए २०१७ में ४१.४ डिग्री पर पहुंच गया है। अब मार्च २०१८ के आखिरी हफ्ते में भी मौसम वैज्ञानिक तापमान में और उछाल आने की संभावना व्यक्त कर रहे हैं। जनाब! यह सब प्रकृतिजनित नहीं, बल्कि हमारी अतिदोहन की प्रवृत्ति के कारण हो रहा है। हाल ही में भारतीय वन सर्वे संस्थान देहरादून द्वारा जारी रिपोर्ट के अनुसार भी बीते सालों में सागर में हरियाली ७० फीसदी तक कम हो गई है। २३ मार्च को विश्व मौसम विज्ञान दिवस के अवसर पर पत्रिका ने विशेषज्ञों से लेकर बुजुर्गों तक चर्चा की, सभी ने एक सुर में कहा, जब हरियाली ही नहीं होगी तो हवा कहां से आएगी? हमनें हरियाली के हमदर्द भी तलाशे, जिन्होंने प्रकृति के लिए काम करते हुए मिसाल पेश की है।

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IMAGE CREDIT: Mercury has climbed 5 degrees in 20 years, it has become hot
विशेषज्ञ व बुजुर्ग की बात
पहले २१ मार्च के बाद होता था बदलाव, अब पहले ही…
भूगोलवेत्ता डॉ. आरपी मिश्रा कहते हैं कि पिछले सालों की अपेक्षा अब गर्मी का अहसास बढ़ गया है। इसकी मुख्य वजह शहर क्षेत्र में हरियाली घटना है। अंचल में भी वनों की संघनता कम हो गई है। अमूमन २१ मार्च के बाद जब सूर्य उत्तरी गोलाद्र्ध में प्रवेश कर जाता है, तब तापमान में उछाल आता है, लेकिन अब यह उछाल पहले ही आने लगा है।
८५ वर्षीय पुरषोत्तम लाल दुबे कहते हैं कि बढ़ते पर्यावरण प्रदूषण की वजह से गर्मी के दिनों में अब परेशानी होती है, पहले ऐसा नहीं होता था। अब दोपहर में घर से बाहर निकलना मुश्किल होता है। मार्च में ही घरों में कूलर और एसी चल रहे हैं, हमनें पिछले वर्षों में न कूलर देखे और न ही एसी। पहले तो पंखा भी नहीं चलाना पड़ता है। घरों की दीवारें कच्ची होती थीं और ठंडक बरकरार रहती थी। पेड़ों की कटाई और सीमेंट के घरों ने गर्मी को बढ़ा दिया है। दिल्ली की रॉयल मीट्रियोलॉजिकल सोसायटी द्वारा की गई रिसर्च ‘द इंडियन मानसून इन ए चेंजिंग क्लाइमेट अर्बन हीट आईलैंड’ की बढ़ती तादाद से भी परंपरागत मौसम का स्वरूप बदल रहा है। बारिश के दिन एक तिहाई तक घट गए हैं। में सामने आया है कि शहरों की गर्मी और महासागर की ठंड के कारण दिनों-दिनों अंतर बढ़ता जा रहा है। इसी लैंड सी थर्मल कंट्रास्थ के अंतर की वजह से वातावरण में नमी बढ़ रही है। नमी बादलों के अधिक या कम बरसने में प्रमुख कारक होती है। इस स्थिति से हर साल मानसून में १० से १२ फीसदी तक बदलाव हो रहा है।
१९५० में की गई थी मौसम विज्ञान दिवस की घोषणा
विश्व मौसम विज्ञान दिवस की स्थापना वर्ष 23 मार्च 1950 को संयुक्त राष्ट्र में की गई थी। इसका मुख्यालय जिनेवा में खोला गया था। मौसम विज्ञान दिवस पर देश के विभिन्न हिस्सों में सभाएं और अन्य कार्यक्रम होते हैं जिनमें मौसम विज्ञानी अपने विचार व अनुभव लोगों के साथ साझा करते हैं।
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ये हैं प्रकृति के सजग प्रहरी, आप भी तो बनें
अब तक रोप चुके पांच सौ पौधे
बीएमसी में लैब तकनीशियन रामजी गुप्ता बीते कई सालों से गायत्री परिवार से जुड़कर पौधरोपण करते आ रहे हैं। रामजी स्कूलों में पौधरोपण करवाते हैं, ताकि ‘नई पौध’ को भी पर्यावरण का महत्व समझ आए और वे भी प्रेरणा लेकर सजग बनें। वे अब तक स्कूलों में ५०० से अधिक पौधे रोप चुके हैं, जिनमें से कुछ तो अब पेड़ भी बन चुके हैं। आर्मी स्कूल, केंद्रीय विद्यालय (क्रं-३) सहित कई स्कूलों में पौधरोपण गुप्ता ने किया है। उन्होंने बताया कि पेड़ों की संख्या की घटने की वजह से मौसम का संतुलन बिगड़ रहा है। इसलिए गायत्री परिवार से जुड़कर में पौधरोपण का काम कर रहा हूं।
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गर्मी से बचने घर पर बनाया बगीचा
समाजसेविका निधि जैन मां से प्रेरणा लेकर घर के चारों ओर पेड़ लगाए हुए हैं। शादी करके जब यह ससुराल आई तब इन्होंने पौधे लगाने का काम शुरू किया। अब ये पौधे पेड़ बन गए हैं। यही वजह है कि इनके घर पर गर्मी का अहसास ही नहीं होता। जब बाहर का तापमान ३५ डिग्री होता है, तब इनके घर में तापमान २५ डिग्री के पास रहता है। निधि ने बताया कि घर चारों ओर से हरियाली से घिरा हुआ है, इसलिए तापमान में भी इजाफा नहीं होता है। बगीचे में ही आंवला, आम, केला के पेड़ लगे हुए हैं। इसके साथ आलू, प्याज, अदरक, टमाटर, हल्दी, मुंगफली और दालों की विभिन्न सब्जियां भी लगी हुई हैं। निधि कहती है ये पेड़ सकुन देते हैं, साथ ही हमारे घर की सुंदरता को बगीचा बड़ा रहा है।
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