यहां पर 150 साल से चांदी के आभूषणों पर काम हो रहा है। वर्तमान में गांधी चौक, मोहननगर, रविशंकर, सूबेदार और चकराघाट वार्ड में लगभग 200 कारखाने संचालित हो रहे हैं। इनमें 4 हजार से अधिक कारीगर दिन-रात आभूषणों को नया रूप देने में लगे हैं। पायल, बाजूबंद, तोड़ा, करधनी, बिछड़ी के साथ ही चांदी की प्रतिमाओं सहित अन्य आभूषण भी बनाए जा रहे हैं।
मांग रहे सिल्वर प्लाजा
सराफा एसोसिएशन के अध्यक्ष विक्रम सोनी का कहना है कि चांदी के इसी कारोबार की वजह से व्यापारी लगातार सिल्वर प्लाजा की मांग कर रहे हैं। सिल्वर प्लाजा में कारखाने और दुकानें एक क्षेत्र में रहेंगे। शहर में हर माह लगभग 300 करोड़ का चांदी का कारोबार होता है।
खास है चांदी की कारीगरी
चांदी को खास बनाने वाले यहां के कारीगर हैं। चांदी पर बारीक नक्काशी सागर की पहचान है। चांदी पर छोटी छैनी और हथोड़े से घंटों तक कारीगर बर्तन और मूर्ति को आकार देने में लगे रहते हैं। मांग के अनुरूप ये हर तरह की नक्काशी करने में सक्षम हैं। खास बात यह है कि इसमें मशीनरी का बिलकुल भी उपयोग नहीं किया जाता है। ऐसे होता है काम
- चांदी की सिल्लियों टुकड़े कर 300 डिग्री तापमान पर तपाया जाता है।
- पिघली हुई चांदी की परत को मशीन से गुजारा जाता है।
- पतली सीट काटी जाती है, जिसे आकार देकर आइटम बनाए जाते हैं।
- हाथ की कारीगरी के लिए कारीगर अलग काम करते हैं।
150 साल पुराने काम को मिल रही पहचान
मध्य प्रदेश के सागर शहर के कारीगर रामकुमार ने बताया कि जो हैंडमेड काम 150 साल पहले होता था, हम वही आज के दौर में कर रहे हैं। विदेशों में इसी काम को पसंद किया जा रहा है। गुणवत्ता भी 95 से 98 प्रतिशत तक होती है, जिसका हॉलमार्क भी लगाते हैं।