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MP News: विदेशों में धूम मचा रही एमपी की चांदी, बेहद खास है यहां के सिल्वर आइटम

MP News: 150 साल से चल रहा चांदी के आभूषणों और बर्तनों पर काम, काम में माहिर कारीगर चांदी को बना रहे खूबसूरत और यूनिक

सागरJun 17, 2024 / 11:14 am

Sanjana Kumar

MP News

विदेशों में बढ़ी मध्य प्रदेश की चांदी की चमक।

MP News: शहर में बने चांदी के डिनर सेट, मूर्ति और बड़े-बड़े सिंहासन समेत अन्य आइटम की मांग देश में ही नहीं बल्कि विदेशों में भी बढ़ रही है। यहां के कारखानों में बन रहे चांदी के आइट को यूएसए और कनाडा में विशेष रूप से पसंद किया जा रहा है। सागर से उत्तरप्रदेश और महाराष्ट्र सबसे ज्यादा आइटम भेजे जाते हैं, जहां से ये पूरे देश और दुनिया में सप्लाई होते हैं। चांदी के कारोबार में सागर प्रदेश की दूसरी बड़ी मंडी के रूप में पहचाना जाता है।
यहां पर 150 साल से चांदी के आभूषणों पर काम हो रहा है। वर्तमान में गांधी चौक, मोहननगर, रविशंकर, सूबेदार और चकराघाट वार्ड में लगभग 200 कारखाने संचालित हो रहे हैं। इनमें 4 हजार से अधिक कारीगर दिन-रात आभूषणों को नया रूप देने में लगे हैं। पायल, बाजूबंद, तोड़ा, करधनी, बिछड़ी के साथ ही चांदी की प्रतिमाओं सहित अन्य आभूषण भी बनाए जा रहे हैं।

मांग रहे सिल्वर प्लाजा

सराफा एसोसिएशन के अध्यक्ष विक्रम सोनी का कहना है कि चांदी के इसी कारोबार की वजह से व्यापारी लगातार सिल्वर प्लाजा की मांग कर रहे हैं। सिल्वर प्लाजा में कारखाने और दुकानें एक क्षेत्र में रहेंगे। शहर में हर माह लगभग 300 करोड़ का चांदी का कारोबार होता है।

खास है चांदी की कारीगरी

चांदी को खास बनाने वाले यहां के कारीगर हैं। चांदी पर बारीक नक्काशी सागर की पहचान है। चांदी पर छोटी छैनी और हथोड़े से घंटों तक कारीगर बर्तन और मूर्ति को आकार देने में लगे रहते हैं। मांग के अनुरूप ये हर तरह की नक्काशी करने में सक्षम हैं। खास बात यह है कि इसमें मशीनरी का बिलकुल भी उपयोग नहीं किया जाता है।

ऐसे होता है काम

  • चांदी की सिल्लियों टुकड़े कर 300 डिग्री तापमान पर तपाया जाता है।
  • पिघली हुई चांदी की परत को मशीन से गुजारा जाता है।
  • पतली सीट काटी जाती है, जिसे आकार देकर आइटम बनाए जाते हैं।
  • हाथ की कारीगरी के लिए कारीगर अलग काम करते हैं।

150 साल पुराने काम को मिल रही पहचान

मध्य प्रदेश के सागर शहर के कारीगर रामकुमार ने बताया कि जो हैंडमेड काम 150 साल पहले होता था, हम वही आज के दौर में कर रहे हैं। विदेशों में इसी काम को पसंद किया जा रहा है। गुणवत्ता भी 95 से 98 प्रतिशत तक होती है, जिसका हॉलमार्क भी लगाते हैं।

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