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मिलीभगत न होती तो पहली ही किस्त जारी होने पर खुल जाता फर्जीवाड़ा

locationसागरPublished: Aug 27, 2018 10:49:12 am

Submitted by:

sunil lakhera

बीएलसी: क्रॉस वैरीफिकेशन के लिए नियुक्त एजेंसियों और अधिकारियों ने ही की लापरवाही

nagar nigam housing programm BLC forgery No cross verification

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सागर. बीएलसी योजना में निजी एजेंसियों, नगर निगम के इंजीनियर्स व अन्य अधिकारियों की मिलीभगत नहीं होती तो यह फर्जीवाड़ा पहली ही किस्त जारी होने पर पकड़ में आ जाता। पहली किस्त जारी होने के बाद तीन स्तर पर मॉनीटरिंग की जानी थी। हितग्राही समेत तीन एजेंसियों की रिपोर्ट लगनी थी, फिर भी सबने मिलकर फर्जीवाड़ा को अंजाम दे दिया।
यह थी गाइडलाइन
किस्त जारी होने के बाद निगम प्रशासन व कंसल्टेंट को डिजाइन उपलब्ध करानी थी। यह न होने पर उस भवन के नक्शे को निगम से पास करवाना अनिवार्य था।
किस्त मिलने के बाद हितग्राही ने भूखंड पर निर्माण शुरू किया या नहीं, इसकी जानकारी इंजीनियर्स, टैक्स कलेक्टर समेत अन्य को जुटानी थी।
पहली किस्त जारी होने के बाद उसकी जियो टैगिंग करनी थी। ऐसे में सवाल है कि यदि जिम्मेदार फर्जीवाड़ा में शामिल नहीं थे, तो उन्होंने इसकी शिकायत वरिष्ठ अधिकारियों तक क्यों नहीं की?
पत्रिका लगातार ३० दिन से कर रहा खुलासा
बीएलसी घटक में कैसे, कहां पर, किन-किन अधिकारियों व एजेंसियों की मदद से फर्जीवाड़ा किया गया है, पत्रिका इन पहलुओं पर पिछले ३० दिन से तथ्यों के आधार पर खुलासा कर चुका है। खुलासे के ७ दिन बाद जिला व निगम प्रशासन ने फर्जीवाड़ा की जांच शुरू करवा दी थी और ६ अगस्त को एक सप्ताह में जांच रिपोर्ट पेश करने के निर्देश दिए थे, लेकिन अब प्रशासनिक अधिकारियों की कार्यप्रणाली भी इस मामले में संदेहास्पद हो गई है। सूत्रों की मानें तो मामला बड़ा होने की बात कहकर अधिकारियों ने जांच को ठंडे बस्ते में डालने की प्लानिंग बना ली है।
निगम ने खैरात में दिया आइएचएसडीपी योजना के आवासों का आधिपत्य – वहीं शहर में संचालित हो रहीं आवासीय योजनाओं में जमकर भ्रष्टाचार व अव्यवस्थाओं के मामले सामने आ रहे हैं। आइएचएसडीपी (इंटीग्रेटेड हाउसिंग एंड स्लम डवलपमेंट प्रोग्राम) के तहत धर्मश्री में बनाए गए आवासों में लगातार दूसरी बार फर्जीवाड़ा सामने आया है। नगर निगम प्रशासन ने कागजों में लगभग सभी ३६० आवासों का आधिपत्य हितग्राहियों को दे दिया है लेकिन उनके लोग प्रकरण आज तक स्वीकृत नहीं हुए हैं। इस प्रोजेक्ट को पूर्ण हुए करीब चार साल पूरे होने को हैं फिर भी निगम प्रशासन आवासों में रहने वाले लोगों से राशि की वसूली नहीं कर पा रहा है। आइएचएसडीपी योजना जब शुरू हुई थी तब हितग्राहियों को २०-२० हजार रुपए की राशि अंशदान के रूप में जमा कराई थी। निगम प्रशासन ने किसी भी हितग्राही से एक पैसा भी कम नहीं लिया था लेकिन तीन साल बाद निगम प्रशासन ने ५-५ हजार रुपए की राशि जमा कराकर कुछ चिन्हित वार्ड के लोगों में आवासों को बांट दिया।
किराये से देने की तैयारी – आइएचएसडीपी योजना में वर्तमान में मात्र ५५ से ६० परिवार ही आवासों में रह रहे हैं, जबकि आवासों का आवंटन लगभग पूर्ण हो चुका है। नाम न छापने की शर्त पर कुछ परिवारों ने बताया कि जिन लोगों को हाल ही में आवास दिए गए हैं वे लोग किरायेदारों को लेकर यहां पर पहुंचते हैं। कुछ लोगों ने किराये से आवास दे भी दिए हैं।

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