पहले ही जहरखुरानी को लेकर थी चिंता
वन विभाग के अनुसार करीब तीन साल पहले पेंच अभयारण्य में शिकारियों ने राधा के पूरे परिवार को जहरीला पदार्थ खिलाकर मार दिया था। तब यह बाघिन 6 माह की थी, लेकिन जहर की ज्यादा खुराक नहीं खाने के कारण इसे बचा लिया गया। बाद में दूध की बॉटल के जरिए बाघिन को कान्हा अभयारण्य में पाला गया। बाघिन को नौरादेही लाने के बाद वन विभाग के अधिकारियों बाघिन के शरीर पर जहर के असर को देखते हुए उसके मां बनने की भी कम उम्मीद थी। मई 2019 में तीन शावकों को जन्म देने के बाद विभाग की यह चिंता तो दूर हो गई, लेकिन अब ट्रेंक्युलाइज का असर बच्चों पर होने की आशंका ने चिंताएं बढ़ा दी हैं।
बाघिन के गले से गिर चुकी है कॉलर आइडी
शावकों के जन्म के दौरान बाघिन की कॉलर आइडी भी गिर चुकी है, उसके बाद से बाघिन बिना कॉलर आइडी के ही अभयारण्य में है। जानकारों का कहना है कि ट्रेंक्युलाइज करने से बाघिन चोटिल भी हो सकती है और फिलहाल शावकों की सुरक्षा को देखते हुए यह जोखिम उठाने से विभाग डर रहा है। विभागीय सूत्रों से मिली जानकारी के अनुसार कुछ दिन में वाइल्ड लाइफ और टाइगर कंजर्वेशन अथॉरिटी के परीक्षण के बाद भी बाघिन को ट्रेंक्युलाइज कर दोबारा कॉलर आइडी पहनाई जाएगी। बताया जा रहा है कि इसमें एक से डेढ़ माह का समय लग सकता है।
एक्सपर्ट व्यू
गर्भ धारण कुछ समय पहले या कुछ समय बाद बाघिन को ट्रेंक्युलाइज किया जाए और डोज हैवी हो तो शावकों पर इसका असर आ सकता है। इसमें उन्हें दूध पीने में दिक्कत हो सकती है इसके अलावा सामान्य गतिविधियों में भी वे सुस्त हो सकते हैं। हालांकि इससे उनकी शारीरिक संरचना पर कोई असर नहीं आता है और न ही किसी प्रकार की विकृति होती है।
अनिल यादव, वाइल्ड लाइफ एक्सपर्ट
शावकों के वयस्क होने तक रिस्क नहीं ले सकते
बाघिन को ट्रेंक्युलाइज किया जाना है, लेकिन जब तक शावक वयस्क नहीं हो जाते तब तक यह रिस्क नहीं लेंगे। उम्मीद है कि एक माह के बाद बाघिन भी शावकों के साथ बाहर आने-जाने लगेगी।
नवीन गर्ग, डीएफओ, नौरादेही अभयारण्य