पुरव्याऊ टौरी पर स्थापित कांधे वाली काली की हजारों भक्तों ने महाआरती की। शाम 6 बजे माता के पंडाल में 5 हजार से ज्यादा भक्त आरती के लिए पहुंचे। महाआरती 45 मिनिट में सम्पन्न हुई। इसके बाद प्रसादी वितरण का आयोजन किया गया।
कुलदेवी की हुई पूजा
मनोज तिवारी ने बताया कि नवरात्र के सभी नौ दिनों के पूजन का विशेष महत्व है, लेकिन महाष्टमी उनमें सर्वश्रेष्ठ पूजन माना गया है। इस दिन महागौरी का पूजन होता है। इन्हें कुल देवी भी कहा जाता है। कुल देवी के नाम भले ही अलग हो सकते हैं, लेकिन पूजा का महत्व और विधान लगभग एक जैसा ही है।
देवी पंडालों में हो रहा गायन
नवदुर्गा के पर्व पर जगह-जगह आयोजित हो रहे विभिन्न धार्मिक आयोजनों ने पूरे शहर को भक्ति रस में डुबा दिया है। इसी क्रम में लोक गायक शिव रतन यादव के निर्देशन में उनके द्वारा प्रशिक्षित बालिकाएं मोहनी,मिनी रायकवार,मान्या चौरसिया,नीलम चौरसिया,रक्षा चौरसिया,राधा यादव,मुनमुन चौरसिया, साक्षी रायकवार के मधुर गायन किया। गणेश चौरसिया,रमेश चौरसिया, कपिल चौरसिया तथा दीपक चौरसिया द्वारा वाद्ययंत्रों पर संगीत के साथ प्रस्तुति पुरव्याऊ सहित अलग-अलग देवी पंडालों में जाकर दी जा रहीं। देवी गीतों-भजनों की मधुर प्रस्तुतियां आकर्षण का केन्द्र बनी हुई है। नवदुर्गोत्सव के अवसर पर प्रतिवर्ष शिवरतन यादव के नेतृत्व में स्वेच्छा से देवीगीतों के गायन की परम्परा ही बन गई।
1101 दीपों से हुई महाआरती
जय मां सिंहवाहिनी मंदिर सिद्धपीठ विजय टाकीज चौराहा पर नवरात्रि की अष्टमी पर 1101 दीपों से महाआरती की गयी व छप्पन भोग प्रसाद लगाया गया। ढोल बाजे रमतूला शंख झालर के बीच महा आरती हुई। छप्पन व्यंजनों का महाभोग मां अम्बे को अर्पण किया गया। देर रात तक मंदिर में भजन कीर्तन चलता रहा बाद महाभोग प्रसाद वितरण किया गया।
जवारों का विसर्जन आज
जवारों को विसर्जन गाजे-बाजों के साथ सोमवार को नवमी के मौके पर किया जाएगा। जगह-जगह से जुलूस के रूप में जवारे चकराघाट आएंगे। जवारे नौ दिन के होते है। इसलिए सोमवार को जवारे विसर्जित किए जाएंगे। जवारे धन-धान्य की वृद्धि व मां भगवती के प्रतीक होते है।