आचार्यश्री ने कहा कि धर्म अपने निजी स्वार्थ के लिए हथियार उठाना नहीं सिखाता। धर्म को आज क्रिया,कांडो में कैद कर मनुष्य ने आत्मतत्व की पहचान खो दी है। धर्म बैर विरोध छोड़कर व्यवहार में सरलता, विचारों में पवित्रता, स्वभाव में विनम्रता और ह्दय में उतारना सिखाता है। धर्म का आचरण जीवन का प्रमुख लक्षण होना चाहिए। आचार्य श्री ने कहा कि आज जिनआगम के अंतर्गत इंद्रिय और इंद्रियों के विषयों को विस्तार से समझाते हुए रसना घ्राण, चक्षू, स्पर्श और कर्ण इंद्रियों के रसों भेदों से जीवन में बचने का आव्हान किया।
उन्होंने कहा कि इंद्रिया भी मांग करती है और स्त्रियां भी मांग करती है। हमें इंद्रियों को वश में करने के लिए मन को वश में करना चाहिए और संयम व्रत संकल्प धारण करना चाहिए। पंच परमेष्टी ज्ञान जैन तत्व के संस्कार व कर्म तत्व के बारे में कक्षाओं में उपस्थित लोगों को ज्ञान कराया गया
उन्होंने कहा कि इंद्रिया भी मांग करती है और स्त्रियां भी मांग करती है। हमें इंद्रियों को वश में करने के लिए मन को वश में करना चाहिए और संयम व्रत संकल्प धारण करना चाहिए। पंच परमेष्टी ज्ञान जैन तत्व के संस्कार व कर्म तत्व के बारे में कक्षाओं में उपस्थित लोगों को ज्ञान कराया गया