जैन धर्म की है प्राचीन परंपरा जैन-धर्म में मौजी बंधन की परंपरा अतिप्राचीन है। इसका प्रथम उल्लेख राष्ट्रकूट वंशी राजा अमोघवर्ष के गुरु आचार्य जिनसेन ने किया है। उनके अनुसार प्रत्येक जैन बालक को विद्यारंभ से पहले मौजी बंधन संस्कार कराना चाहिए। मुनियों के निर्देशन में महिला एवं पुरुष भी प्रौढ़ सम्यक संस्कार विधि संपन्न करवा सकते हैं। मौजी बंधन में मुंडन करवाकर मुनियों के हाथों से उनपर जैन-धर्म संबंधी मंत्र से चंदन लिखे जाते हैं। जैन-धर्म के मूल एवं अनिवार्य नियमों का प्रण दिलाया जाता है। मौजी बंधन कराने के बाद एक बालक पूर्ण रूप से जैन श्रावक बन जाता है। वह जैन धर्म संबंधी धार्मिक अनुष्ठान करने का पात्र होता है।
वर्षों से ही संस्कार कराने की इच्छा मुंबई से आए आयुष जैन ने बताया कि वर्षों की इच्छा आज पूरी हो गई। उन्होंने बताया कि वे मुनि सुधा सागर के हाथों से मौजी बंधन संस्कार कराकर धन्य हो गए। पूरे परिवार के साथ यहां संस्कार कराने आया था। उन्होंने बताया कि यहां अविवाहित युवकों को मौका मिला है।
गुजरात से आकर कराए संस्कार गुजरात के अहमदाबाद के पर्व जैन और अतिशय जैन ने बताया कि वे गुजरात से यहां संस्कार कराने के लिए पहुंचे। उन्होंने बताया कि माता-पिता उन्हें लेकर आए हैं। अतिशय ने बताया कि अहमदाबाद से उनके दोस्त भी संस्कार कराने के लिए यहां आए हैं।
ऐसे चला दिनभर कार्यक्रम – सुबह 6 बजे से शांतिधारा-अभिषेक – सुबह 8.30 बजे से प्रवचन – सुबह 10.30 मुनि संघ की आहार चर्या – दोपहर 1 बजे से मौजी बंधन संस्कार
– शाम 6 बजे से जिज्ञासा समाधान कार्यक्रम