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पैडमैन मूवीः पीरियड, डेट, माहवारी… जैसे मुद्दे पर यह बोलीं शहर की युवतियां

locationसागरPublished: Feb 09, 2018 05:02:03 pm

लड़कियों ने कहा- अरे! लिखकर क्या बताना, बिंदास बोलते हैं पैड चाहिए

On issues like period... The girls of the city talked openly

On issues like period… The girls of the city talked openly

सागर. पीरियड, डेट, माहवारी… ये शब्द ऐसे हैं, जिन पर लोग खुलकर बात नहीं करना चाहते। पैडमैन फिल्म के संदर्भ को देखते हुए पत्रिका को इस मुद्दे पर लड़कियों से बात करना आसान नहीं था। बात चली तो हमारा अनुमान गलत साबित हुआ। शुक्रवार को पैडमैन मूवी देखकर कहा कि वे बहुंत प्राउड फील कर रही हैं। एेसे बहुत ही कम लोग होते हैं जो युतियों व महिलाओं की समस्याओं को समाज के सामने लाते हैं। उनका हल बताते हैं। इससे अब कई युवतियों की झिझक दूर होगी।

हमने शहर की गल्र्स डिग्री कॉलेज में टीचर्स से अनुमति ली और फिर कुछ लड़कियों से बात शुरू की। एक बारगी तो उन्हें कुछ समझ नहीं आया, लेकिन जब एक लड़की ने खुलकर बात की तो फिर ६-७ और लड़कियां भी आगे आ गईं। इनसे बातचीत का जो सार निकला वह यह है कि वह जमाना गया जब दुकानदार से बेहद धीमी आवाज में फुसफुसाते हुए या लिखकर सेनेटरी पैड खरीदने की बात कहनी पड़ती थी।

अब तो बिंदास बोलते हैं फलां कंपनी का, फलां साइज का नैपकिन चाहिए। आखिर हमारी स्वच्छता से जुड़ी चीज है तो इसमें शर्माना कैसा?
उनका कहना था कि अब लड़कियों, महिलाओं में जागरुकता आई है। पुरुषों को भी जागरूक होना चाहिए। फिल्म पैडमैन सामाजिक संदेश देने वाली है तो इसे सभी को मिलकर देखना चाहिए।
छात्रा चांदनी बुंदेला कहती हैं, माहवारी कोई पाप नहीं है जो इसे हौवे की तरह समझा जाता है। महिलाओं को माहवारी के दिनों में अपवित्र माना जाता है। उस पर प्रतिबंध लगा दिए जाते हैं और कहीं उसे एक कोने में बिठा दिया जाता है।
पूर्णिमा विश्वकर्मा का कहना था कि महिलाएं खुद इस मुद्दे पर खुल कर अपनी सोच नहीं प्रकट कर पाती। घरों में अब लड़कियों को छूट मिलनी चाहिए वे परिवार किसी से भी पैड को मंगवा सके। सेनेटरी नैपकिन का इस्तेमाल करने से कई हाईजैनिक परेशानियों से बचा जा सकता है।


पैडमैन फिल्म रिलीज के बाद उम्मीद की जा सकती है कि लड़कियां और पैरेन्ट्स खुलकर इस मुद्दे पर बात करने लगेंगे। पढ़ाई के साथ लड़कियां जागरूक हुई हैं, लेकिन अब भी परिवार में यह बात खुलकर नहीं कर पाती हैं। – प्रतिमा खरे, अभिभावक


कॉलेज में वेंडिंग मशीन लगाने के बाद लड़कियां पैड का इस्तेमाल कर रही हैं। पहले की अपेक्षा अब जागरुकता आ रही है। लेकिन घरों में इस बारे में बातचीत न होने पर आज भी इस विषय पर बात करने से बचती हैं। – ईला तिवारी, गल्र्स हॉस्टल वार्डन

पीरियड्स का दर्द, दाग लगने का झंझट… और दुनिया भर के नियम। ये सब किसी भी आम लड़की के लिए हर महीने की जंग होती है। स्वच्छता जरूरी है और पैड का इस्तेमाल न करने की वजह से संक्रमण का खतरा रहता है। ग्रामीण इलाके की महिलाओं को संक्रमण का खतरा अधिक रहता है। इसलिए पैड का इस्तेमाल करना चाहिए। -डॉ. ललिता पाटिल, स्त्री रोग विशेषज्ञ


आप भी दूर करें अपना भ्रम
माहवारी के दिनों में वर्षों पहले से महिलाओं को रसोई से दूर रखा जाता है। उन्हें कोई सामान इस्तेमाल करने नहीं दिया जाता। आज भी कई घरों में ऐसी प्रथा चली आ रही है, लेकिन यह सब भ्रम है। दरअसल, यह इसलिए होता था कि महिलाओं को इन दिनों में कमजोरी रहती है इसलिए उनसे काम न करवाया जाए। सोने के लिए उन्हें गद्दे आदि नहीं दिए जाते थे। वजह यह थी क पहले सुरक्षा के इंतजाम नहीं थे। अब सुरक्षा के इंतजाम हैं, इसलिए बड़े-बुजुर्गों को भी इन भ्रांतियों को दूर रखना चाहिए। – पं. मनोज तिवारी

बिक्री से समझें अवेयरनेस
१.१२ लाख किशोरियां हैं सागर शहर में
१.३० लाख युवतियां/ महिलाएं १८ से ४९ वर्ष की
१२ से १५ लाख के ब्रांडेड सेनेटरी नैपकिन की बिक्री वर्तमान में प्रतिमाह
०५ लाख की बिक्री पांच साल पहले होती थी
०८ से ०९ लाख रुपए के नॉन ब्रांडेड पैड की बिक्री प्रतिमाह
(स्रोत : महिला बाल विकास केंद्र, पैड निर्माता कंपनी के मैनेजर राजेश साहू, नॉन ब्रांडेड पैड के व्यापारी अनुपम तिवारी)

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