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खुद बनाई राह अब कमा रहे लाखों रुपए, जैविक खेती एेसे बनी लाभ का धंधा

locationसागरPublished: Oct 12, 2018 09:48:53 am

Submitted by:

sunil lakhera

खास बात यह है कि ये जैविक खेती कर रहे हैं

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सागर. इंजीनियरिंग और डॉक्टर की मंहगी पढ़ाई के बाद यदि कोई युवा किसान बनने की जिद पर अड़ जाएं तो सहज आश्चर्य होगा, लेकिन यह सच है। पढ़ाई के बाद नौकरी अब युवाओं के लिए जरूरी है नहीं है, आधुनिक तरीकों से खेती कर ये नौकरी से ज्यादा लाभ कमा रहे हैं। जिले में पढ़ाई कर रहे युवाओं ने खेती की राह पकड़ ली है। खास बात यह है कि ये जैविक खेती कर रहे हैं।
जैविक खेती को लाभ का धंधा बनकर इसमें कई लोग के साथ जोड़ भी रही हैं। किसान दिवस के मौके पर पत्रिका ने उन्नत खेती करने वाले इन युवाओं से बात की।
42 हजार किसानों को दिया जैविक प्रशिक्षण
तिली राजीव नगर निवासी आकाश चौरसिया शहर में पिछले 8 सालों से जैविक खेती कर रहे है। आकाश 3 एकड़ के खेत में अदरक, करेला, पान, पपीता, टमाटर इत्यादि फसले लेते है। मल्टीलेयर फार्मिंग में एक साथ चार से पांच फसले हर सीजन पर उगाते हैं। जिससे खर्चा कम और आमदनी 4 गुना बढ़ जाती है। इनका ये फार्मूला देश के कई किसान देख कर अपना चुके है।
इन्होंने अब तक 42 हजार किसानों और युवाओं को निशुल्क प्रशिक्षण दिया है। आकाश ने बताया कि जैविक खेती आज बड़ी जरूरत है। उनके इस काम के लिए हाल ही में पीएम नरेन्द्र मोदी ने विज्ञान भवन में उन्हें न्यू इंडिया यूथ अवार्ड से सम्मानित किया था। इससे पहले १२ राष्ट्रीय पुरस्कार इन्हें मिल चुके हैं।
इंजीनियरिंग के बाद चुनी किसानी
गढ़कोटा में ग्राम केंकरा के निवासी दीपक चौधरी इंजीनियरिंग की पढ़ाई के बाद खेती-किसानी कर रहे हैं। इन्होंने आईटी से बीई करने के बाद यह रास्ता चुना। उन्होंने बताया कि वे करेला,मूली,लौकी और प्याज का उत्पादन मल्टीलेयर में कर रहे हैं। दीपक ने बताया कि गांव में माता-पिता के साथ के लिए यह रास्ता चुना। इसमें नौकरी जैसा कोई तनाव भी नहीं है और कमाई भी अच्छी है। मेरी हर माह की आय लगभग २० हजार है जिसे मैं नौकरी से बेहतर समझता हूं।
मरीजों के इलाज के साथ करते हैं खेती
चिकित्सक पवन श्रीवास्तव ने बताया कि वे वाइसा मुहल्ला में प्रेक्ट्रिस करते हैं और अधिक समय खेती के लिए देते हैं। बिलेहरा के पास टेकपार ग्राम में जमीन है जिस पर वे स्वयं खेती करते हैं। उन्होंने बताया कि करीब ४ एकड़ जमीन पर मुनगा की फसल पर काम कर रहे हैं। इसके लिए वन विभाग द्वारा उन्हें मुनगा के पौधे भी दिए गए हैं। उनकी पत्ती का पाउडर हम बनाते हैं। गुजरात की कंपनी यह पाउडर खरीदती है। यह कुपोषण को दूर करने के लिए बेहतर है। खेती से करीब १ लाख ६० हजार रुपए की आमदनी हर वर्ष होती है।

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