अनोखा रहस्य : इस मंदिर में फूल प्रसाद नहीं, चढ़ाए जाते है पत्थर, सदियों पुरानी है ये परंपरा
अनोखा रहस्य : इस मंदिर में फूल प्रसाद नहीं, चढ़ाए जाते है पत्थर, सदियों पुरानी है ये परंपरा

दमोह. माता के मंदिरों में पान, सुपाड़ी और ध्वजा नारियल की भेट चढ़ाने के लिए भक्तों की भीड़ तो आपने मंदिरों में बहुत देखी होगी। मंदिरों में पुष्प और प्रसाद लेकर जाने वालों को भी देखा होगा, लेकिन अगर यहां विराजमान देवी को पुष्प और प्रसाद का चढ़ावा पसंद नहीं है। यहीं कारण है कि यहां भक्त पत्थरों का चढ़ावा करते है। सदियों पुरानी इस परंपरा का निर्वहन आज भी लोग श्रद्धा के साथ करते है। यही कारण है कि सड़क किनारे बने इन मंदिर के पास चढ़ाए गए पत्थरों का पहाड़ नजर आने लगा है।
मध्यप्रदेश के दमोह शहर के महज 6 किलोमीटर की दूरी पर एक ऐसी देवी वीराने में विराजमान हैं, जो केवल एक पत्थर का टुकड़ा चढ़ाने से लोगों की मनोकामना पूर्ण कर रही हैं। चढ़ाए गए पत्थरों के बड़े ढेर लग गए हैं और आस्था का क्रम आज भी जारी है।
वीरानी पहाड़ी पर एक प्रतिमा
दमोह जिले के अथाई चौराहा के नजदीक वीरानी पहाड़ी पर एक देवी प्रतिमा व उसके आसपास पत्थर के बड़े ढेर नजर आते हैं। इस राह से गुजरने वाले ग्रामीण यहां रुककर माता को प्रणाम करते हैं और एक पत्थर अर्पित कर आगे बढ़ जाते हैं। यह परंपरा सदियों से चली आ रही हैं और भक्तों की आस्था रूपी अर्पित किए गए पत्थरों के ढेर लगते जा रहे हैं।

पथरयाऊ देवी को चढ़ाए जाते है पत्थर
बुधवार की दोपहर जब पत्रिका इस स्थल पर पहुंची तो यहां पर सीताराम पटैल निवासी बरपटी ने बताया कि यह स्थल भूलन देवी व पथरयाऊ देवी के नाम से जाना है। हमारे बुजुर्गों के अनुसार तीन चार पीढ़ी पहले यहां पर पहाड़ी होने से बहुत से रास्ते थे और आवागमन के साधन व पक्की सड़कें नहीं थीं। इस स्थल से करीब डेढ़ दर्जन गांवों का रास्ता निकलता है, लेकिन यहां आते ही लोग रास्ता भूल जाते थे।

ये है अनोखा रहस्य
बताते हैं कि एक व्यक्ति भूल कर रात में इसी स्थल पर आकर रुक गया और थक हार कर सो गया तो उसे रात में सपना आया कि यह एक देवी स्थल है, जो भी यहां पर प्रार्थना कर पत्थर चढ़ाकर आगे बढ़ेगा तो वह रास्ता नहीं भूलेगा। यह परंपरा आज भी जारी है।

रास्ता ने भूलें इसीलिए आज भी है मान्यता
अथाई गांव के कमलेश पांडेय का कहना है कि यह सच है कि यहां से निकलते वक्त जो भी नहीं रुकता है वह रास्ता भूल जाता है और यह आज के दौर में भी हुआ। जिससे सड़कें बन जाने के बावजूद यहां से निकलने वाले राहगीर यहां रुककर माथा टेकते हैं और माता को भेंट स्वरूप पत्थर चढ़ाते हैं। ग्रामीण मुरारी यादव व सेठी अहिरवाल ने बताया कि इस स्थल पर एक प्रतिमा भी रखी हुई है जिस पर कभी जल नहीं चढ़ाया जाता है हां कुछ लोग यहां मन्नत के लिए नारियल जरूर रखते हैं और मनोकामना पूर्ण होने पर मां को नारियल चढ़ाने लगे हैं। साथ ही अब ध्वजा भी चढऩे लगी हैं, लेकिन पत्थर यहां प्रमुख है जो अब भी चढ़ाया जा रहा है।

चढ़ाए गए पत्थरों ने पहाड़ का लिया स्वरूप
सदियों से चढ़ाए गए पत्थरों के अलग-अलग रास्तों पर चार ढेर लग गए हैं और इन पत्थरों को कोई उपयोग में इसलिए नहीं लेता क्योंकि यह माता का चढ़ावा है जो उनके पास ही एक पहाड़ का स्वरूप धारण करता जा रहा है।
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