सागर

स्लीपिंग डिसऑर्डर से बचाएगा रिसर्च से तैयार फॉस्फर मटेरियल

डॉ. हरिसिंह गौर केंद्रीय विवि के भौतिक शास्त्र विभाग के शोधार्थी ने रिसर्च के जरिए तैयार की ब्लू एलइडी का मटेरियल
 

सागरOct 16, 2019 / 10:11 pm

आकाश तिवारी

स्लीपिंग डिसऑर्डर से बचाएगा रिसर्च से तैयार फॉस्फर मटेरियल

सागर. यदि आप लैंपटॉप, मोबाइल का ज्यादा देर तक उपयोग करते हो तो आपकी आंखों में तकलीफ होने लगती है। सिर भारी होने लगता है। इसकी वजह आंखों पर पडऩे वाली लाइट होती है।

देश में स्लीपिंग डिसऑर्डर के मरीजों की संख्या शायद इसी कारण से लगातार बढ़ रही है। डॉ. हरिसिंह गौर केंद्रीय विश्वविद्यालय के शोधार्थी ने एक एेसा प्रयोग किया है, जिससे एलइडी बल्व, लैंप, रंगीन टीवी, लंबे समय तक चलने वाले डिवाइस, लेजर होस्ट आदि से हानिकारक किरणें बाहर नहीं आ पाएंगी। शोधार्थी द्वारा फॉस्फर नामक मटेरियल पर की गई रिसर्च पूरी हो चुकी है। इसके जरनल एल्सवेयर में प्रकाशित हो चुके हैं।

बाहर नहीं आ पाएंगी हानिकारक किरणें

एलइडी, बल्व, लैंप आदि में ४१० से ४५० नेनोमीटर तक का दृश्य प्रकाश उत्सर्जित होता है। प्रकाश की हानिकारण किरणों को बाहर आने से रोकने के लिए जो कवर लगे होते हैं। वे कारगर नहीं साबित हो रहे। शोधार्थी अक्ष कुमार ने जो फॉस्फर मटेरियल तैयार किया है। यदि उसके कवर बनाए जाएंगे तो हानिकारक किरणें बाहर नहीं आ पाएंगी। इससे लोगों को लाइट से होने वाले रेटिना, अनिद्रा और त्वाचा जैसे रोग नहीं होंगे।

-ब्लू एलइडी होगी तैयार
भौतिक शास्त्र विभाग एचओडी डॉ. आशीष वर्मा ने बताया कि अभी तक फॉस्फर पर हुई रिसर्च में ४१० से ४५० नेनोमीटर तक नीले दृश्य प्रकाश उत्सर्जित हो रहा है। इससे लोगों को तरह-तरह की बीमारियां हो रही हैं। लेकिन अक्ष कुमार ने अपनी रिसर्च में दृश्य प्रकाश की क्षमता ४१०-४५० से ४१०- ४८० नेनोमीटर की है। यदि इस मटेरियल का उपयोग व्यवसायिक रूप से किया जाता है तो निश्चित रूप से लोगों को स्लीपिंग डिसऑर्डर की परेशानी से बचाया जा सकता है।

-पैटेंट होगा मटेरियल

विवि के शोध छात्र अक्ष ने बताया कि उनके द्वारा जो रिसर्च तैयार की है। उसको पैटेंट कराने की प्रक्रिया चल रही है। पब्लिकेशन होने के बाद कंपनियां विवि से संपर्क करेंगी। उन्होंने बताया कि फॉस्फर पर कुछ नए और प्रयोग किए जा रहे हैं। इन पर रिसर्च जारी है।

-यह होगा फायदा
कम वॉल्ट में अधिक रोशनी मिलेगी।

प्रदूषण पर भी अंकुश लगेगा।
हानिकारक किरणों को अवशोषित करने की क्षमता ९० से बढ़कर हुई ९३ फीसदी।

-यहां भी एक नजर

एल्सेवयेर में जरनल हो चुका प्रकाशित
कई कॉंफ्रेंस में हो चुका प्रस्तुतिकरण

स्क्रीन पर मटेरियल का हो सकता है उपयोग।
४ साल में पूरी की रिसर्च


शोधार्थी ने फॉस्फर पर रिसर्च करने की इच्छा जाहिर की थी। उसकी परिकल्पना काफी अच्छी थी। धीरे-धीरे उसे मटेरियल पर काम करना शुरू किया। जहां उसे परेशानी आती थी उसका मार्गदर्शन करता था। ४ साल में बेहतर परिणाम के साथ उसने फॉस्फर मटेरियल बना लिया है। अब उसकी रिसर्च पूरी हो चुकी है। विवि के लिए यह बड़ी उपलब्धि है।

प्रो. आशीष वर्मा, विभागाध्यक्ष भौतिक शास्त्र विभाग


ब्लू लाइट से अनिद्रा से पीडि़त मरीजों के लगातार मामले सामने आ रहे थे। मैंने पहले तो इसकी वजह जानने की कोशिश की। मालूम चलने पर इस दिशा में रिसर्च की और मटेरियल तैयार किया है। मेरे हिसाब से यदि इस मटेरियल का उपयोग किया जाता है तो निश्चित रूप से लोगों को फायदा मिलेगा।

अक्ष कुमार, शोधार्थी भौतिक शास्त्र विभाग

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