कहने को अधिकांश गांवों को प्रधानमंत्री सड़क योजना के तहत सड़कों के जाल से जोड़ दिया गया है लेकिन इन सड़कों की बदहाली के चलते ऑपरेटर बसों का संचालन करने से कतरा रहे हैं और ग्रामीण क्षेत्रों में परिवहन सेवा का वायदा करने के बावजूद परिवहन विभाग असफल रहा है। ग्रामीण परमिट पर टैक्स में छूट सहित कई लुभावनी योजनाएं भी बस ऑपरेटर्स को नहीं लुभा पा रही और खामियाजा ग्रामीण उठा रहे हैं।
सिर्फ दो बसों का संचालन
झिला से बटयावदा मार्ग पर दिन में सिर्फ दो बसें चलती हैं। एक बस सुबह ११ बजे और दूसरी शाम ६ बजे। झिला गांव से पठारी तक जाने के लिए भी स्थिति कुछ एेसी ही है और अकसर बस चूकने से यात्री मुश्किल में पड़ जाते हैं। वहीं आम दिनों में शाम छह बजे झिला से बटावदा गांव तक बस जाती है इसके बाद कोई बस नहीं रहती। यहां पचमा, रुसल्ला और अन्य कई गांव हैं, जहां जाने के लिए यात्रियों को पैदल व निजी वाहनों से जाना पड़ता है। वहीं, बारिश में इन मार्गों पर अधिकांश दिनों में बस सेवा बंद कर दी जाती है।
बिना टैक्सी परमिट चल रहे वाहन
बहादुरपुर से शेरपुर, खेजरा माफी, भभुकाबारी, नदनवारा सहित अनेक गांव सड़क से जुड़े हैं। लेकिन यहां कोई यात्री बस नहीं चलती। इन क्षेत्र के लोगों को सिर्फ निजी वाहन या मनमानी टैक्सी सेवा का सहारा लेना पड़ता है। अनाधिकृत होने के बावजूद लोग मजबूरी में कबाड़ और खटारा वाहनों से सफर करने मजबूर हैं और मजबूरी के चलते वाहन चालकों से मनमाना किराया वसूलने और परमिट को लेकर भी सवाल-जवाब नहीं कर पाते। यही नहीं हादसे की स्थिति में भी उनके उपचार की जिम्मेदारी वाहन चालक या मालिक की नहीं होती है।
बहादुरपुर से शेरपुर, खेजरा माफी, भभुकाबारी, नदनवारा सहित अनेक गांव सड़क से जुड़े हैं। लेकिन यहां कोई यात्री बस नहीं चलती। इन क्षेत्र के लोगों को सिर्फ निजी वाहन या मनमानी टैक्सी सेवा का सहारा लेना पड़ता है। अनाधिकृत होने के बावजूद लोग मजबूरी में कबाड़ और खटारा वाहनों से सफर करने मजबूर हैं और मजबूरी के चलते वाहन चालकों से मनमाना किराया वसूलने और परमिट को लेकर भी सवाल-जवाब नहीं कर पाते। यही नहीं हादसे की स्थिति में भी उनके उपचार की जिम्मेदारी वाहन चालक या मालिक की नहीं होती है।
यहां नहीं बस की सुविधा
झिला गांव से विनायका के लिए प्रधानमंत्री सड़क 4 साल पहले बनकर तैयार है, लेकिन अभी तक यात्री बस शुरू नहीं हुई है। ग्रामीण अपने निजी वाहनों से ही आवागमन करते जिनके पास वाहन नहीं वे बारह महीने पैदल चलकर आते-जाते हैं।
बावना नदी के पुल से लगे गांव हिरणखेड़ा, कनेरा ओसानखेड़ी, सागर भैसादेही सहित आधा दर्जन से गांव में भी बसों की व्यवस्था नहीं है। राहतगढ़ से हिरणखेड़ा तक चलती है। बस चूके तो रात किसी ढाबे में ही गुजारनी पड़ती है लेकिन इस स्थिति में महिलाएं संकट में पड़ जाती हैं।