जल संकट को देखते हुए नगर परिषद पहले से ही एक दिन छोड़कर जल प्रदाय कर रही थी उसके बावजूद भी नदी सूख गई। तमाम प्रयासों के बाद जलसंकट दूर करने के लिए नगर परिषद अब सकर गली और मेवाती घाट पर पानी के स्टॉक के भरोसे है, लेकिन यह मात्र दस दिन तक ही नगर वासियों की प्यास बुझा सकता है।
इसके पहले जल समस्या को देखते हुए नगरपरिषद ने लघेरा धाम कुड़ी पर पानी एकत्रित करना शुरू किया, लेकिन वहां से भी पानी खत्म हो गया। इसके बाद वाटर फॉल से इंजनों द्वारा पानी को तीन जगहों पर पलटी कर कर के टंकी तक पहुंचाया। अब वाटरफॉल में पानी खत्म हो चुका है। वाटरफॉल मै अब चार पांच फीट पानी ही शेष बचा है। यह पानी अब बदबूदार होने के कारण पीने लायक नहीं है। नीचे काफी कीचड़ भी है इसलिए नगर परिषद ने इंजन उठवा लिए हैं।
इस वाटरफॉल को देखने प्रदेश के बाहर से भी पर्यटक यहां आते थे। इसका प्राकृतिक सौंदर्य अनूठा है यहां दो धार पहाड़ से गिरतीं हैं एक ८० फीट की ऊंचाई से दूसरी ५६ फीट से। चारों ओर पानी की धुंध छा जाती थी। लोग अक्सर लोग दाल बाटी बनाकर खाने का आनंद लेते थे।
इस स्थान से अनेकों चर्चाएं जुड़ी रही जैसी इस फॉल में जो व्यक्ति गिरा वह कभी बचा नहीं, दूसरा गिरने के बाद व्यक्ति का शव 3 दिन के बाद ही बाहर आता है। यहां पर पानी के अंदर बहुत गहरी गहरी खोए बनी हुई हैं, तो कोई कहता था कि पानी के अंदर भगवान शिव का मंदिर है। तो कोई कहता था कि इसकी गहराई इतनी अधिक है कि 14 खाट का बान यानी रस्सी भी इसके अंदर डाली गई है तो इसकी गहराई का पता नहीं लगाया जा सकता। सबके मत अलग अलग रहे, लेकिन इस भीषण गर्मी ने सभी के मतों को झूठा साबित कर दिया। बस एक कुंड मिला है।
ग्राम लाल बाग के राजाराम यादव (85) का कहना है कि उन्होंने कभी वाटरफॉल को सूखा नहीं देखा। वे अपने बड़ों से यही सुनते आए थे कि इसकी गहराई नाप नहीं सकते लेकिन आज सच सामने आ गया है।
40 हजार जनता
नगर में कुल 42 हैंडपंप हैं जिनमें से 9 बंद हैं। सरकारी कुआं, तालाब एक भी नहीं है और 2011 की जनगणना के अनुसार नगर की जनसंख्या 31537 जनसंख्या है। वर्तमान में 40000 के आसपास जनसंख्या है।
राजेश खटीक, जल विभाग, नगरपरिषद