मोक्ष मार्ग की सफलता का सोपान होता है रत्नत्रय-आचार्यश्री
सागरPublished: Jan 20, 2021 10:12:25 pm
त्रिदिवसीय रत्नत्रय विधान का हुआ समापन
Ratnatray is a sign of success on the path of salvation
बीना. श्रुतधाम में आयोजित आचार्यश्री वर्धमानसागर महाराज के ससंघ सान्निध्य और ब्र. संदीप भैया सरल, पं. श्रेयांश शास्त्री सागर के मार्गदर्शन में त्रिदिवसीय विधान में सम्यगदर्शन, सम्यग्ज्ञान, सम्यक्चारित्र की महिमा को बताया गया। विधान के समापन पर सैकड़ों श्रद्धालुओं ने अघ्र्य समर्पित किए।
आचार्यश्री ने रत्नत्रय की महिमा बताई। उन्होंने कहा कि मोक्ष मार्ग की सफलता का सोपान होता है रत्नत्रय। जैन समाज के समस्त मुनि-आर्यिका, ऐलक-क्षुल्लक रत्नत्रय धारी होते हैं। जैन समाज में रत्नत्रय विधान को समस्त महिला-पुरुष करते हैं, यह व्रत एकासन एवं उपवास आदि कर लगातार 17 वर्षों तक किया जाता है। व्रत करने का फल तभी प्राप्त होता है जब श्रावक-श्राविका इसको करते वक्त अपनी संपूर्ण दिनचर्या, आत्मचिंतन, सामायिक, धर्म-ध्यान, पूजन आदि में व्यतीत करें। इस व्रत को करने वालों को इन तीन दिनों के लिए गृहस्थी के कामों में विराम लगा देना चाहिए। धर्मसभा को संबोधित करते हुए आचार्यश्री ने कहा कि आत्मा से कर्मों को अलग करने का नाम धर्म है। धर्म के नाम पर अलग होना अधर्म है। धर्म अलग-अलग नहीं करता, बल्कि अलग-अलग परिवारों को गले लगाना सिखाता है। जहां व्यक्ति, समाज और द्वेष के अलग-अलग होने की बात आती है वहां धर्म का गला घुट जाता है। संप्रदाय का नाम धर्म नहीं, क्योंकि धर्म जोड़ता है और संसप्रदाय तोड़ता है। आज विश्व में धर्म कम संप्रदाय ज्यादा है। उन्होंने कहा कि अभिव्यक्ति और अनुभूति में जमीन आसमान का अंतर है। अभिव्यक्ति तो कोई भी व्यक्ति ग्रंथ पढ़कर कर सकता है, लेकिन अनुभूति तो अंगीकार कर जीवन में रत्नत्रय को अंगीकार करके की जा सकती है। धर्म आत्मदर्शन की वस्तु है और ऐसा मानने वाले व्यक्ति कर्तव्य समझकर धार्मिक क्रियाएं करते हैं।
आचार्य संघ की नगर में हुई भव्य अगवानी
विधान संपन्न कराने के बाद आचार्यश्री वर्धमानसागर महाराज ने ससंघ नगर में प्रवेश किया। सैकड़ों श्रद्धालुओं ने आचार्य संघ की भव्य अगवानी की। अशोक शाकाहार ने बताया कि नगर के गौरव मुनिश्री श्रुतसागर महाराज का दीक्षा लेने के बाद प्रथम नगर प्रवेश हुआ। आचार्य संघ के नगर आगमन पर नगर को तोरण द्वार, पुष्प मालाओं से सजाया गया था और घर-घर चौक पूरकर आचार्य संघ की आरती उतारी एवं पाद प्रक्षालन किया। इसके उपरांत आचार्य संघ का इटावा जैन मंदिर में प्रवेश हुआ।