जिला अस्पताल में जन्म लेने वाले शिशुओं में बढ़ रहा पीलिया का मर्ज, लागातर बारिश से बच्चों को नहीं मिली प्राकृतिक धूप
सागर•Sep 10, 2018 / 11:18 am•
Sanket Shrivastava
Side Effects of Rain Vitamin D Infants Photo Therapy
सागर. जिला अस्पताल में बीते दो महीने में पैदा हुआ नवजात शिशुओं में से 30 फीसदी शिशुओं को फोटो थैरेपी दी गई है। इस थैरेपी उपयोग शिशुओं को विटामिन डी की कमी को पूरा करने के लिए किया गया। इसका एक कारण धूप न निकलना था। लगातार बारिश के कारण बच्चों को धूप नहीं मिल पा रही थी। एेसे में बच्चों में विटामिन डी की कम न हो इसलिए डॉक्टरों ने इन शिशुओं को फोटो थैरेपी दी।हालांकि डॉक्टरों की मानंे तो मां के दूध में ही विटामिन डी और केल्शियम होता है। जिससे बगैर धूप दिखाए भी इस कमी को पूरा किया जा सकता है, लेकिन कई माताएं एेसी होती हैं, जिनका प्रसव के बाद दूध नहीं निकलता या फिर शिशु के आहार के अनुसार दूध कम पड़ता है। एेसे में शिशुओं को विटामिन डी के लिए सुबह और शाम की गुनगुनी धूप दिखाई जाती है।
कैल्सियम व जरूरी दवाइयों का सेवन करें
सबसे ज्यादा परेशानी पीलिया बीमारी की है। अस्पताल में पैदा होने वाले नवजात शिशुओं में से ३० से ४० फीसदी शिशुओं को पीलिया की शिकायत होती है। इन बच्चों को गहन चिकित्सा इकाई केंद्र (एसएनसीयू) में भर्ती करना पड़ा है। चिकित्सकों के अनुसार प्रसव के दौरान प्रसूताएं कैल्शियम और जरूरी दवाओं का सेवन नहीं करती हैं। वहीं, पोषण आहार भी पर्याप्त मात्रा में नहीं लेती हैं। एेसे में शिशुओं को पीलिया की शिकायत हो
जाती है।
02 महीने में 18 बच्चों को दी थैरेपी
अस्पताल से मिली जानकारी के अनुसार जुलाई से अभी तक जिला अस्पताल में जन्मे १८ शिशुओं को विटामिन डी के लिए फोटो थैरेपी दी गई है। दो महीने में 62 शिशुओं का जन्म हुआ था। बीते 15 दिन में सबसे ज्यादा बच्चों को फोटो थैरपी दी गई थी। बच्चों में विटामिन डी की कमी से पैर ढेड़े होने की शिकायत होती है, एेसे में डॉक्टर भी इसे नजरअंदाज नहीं करते हैं।
नीले रंग की किरणों बनाती हैं बिलिरुबिन
अधिकांश शिशुओं में निम्नतर पीलिया होने की अवस्था में मात्र सुबह की कौली धूप लाभकारी होती है।आंखों की सुरक्षा के लिए उन्हें ढकना पड़ता है। लेकिन ऐसा करने पर उनके स्वास्थ्य को भी खतरा हो सकता है। लिहाजा फोटो थैरेपी की जरूरत पड़ती है। पीलिया की मात्रा 15 मिलीग्राम से अधिक बढऩे पर नीले रंगों (फोटो थैरेपी) की सहायता से इलाज किया जाता है। इससे घुलनसीन बिलिरुबिन का निर्माण होता है, जिससे पीलिया में कमी आती है। कम वजन के शिशुओं को भी इस थैरेपी को दिया जाता है। पीलिया की मात्रा 20 मिलग्राम से अधिक बढऩे पर शिशु को बचाने के लिए रक्त की अदला-बदली भी करना पड़ती है। एक अध्ययन के अनुसार लगभग 60 प्रतिशत शिशु जन्म के प्रथम सप्ताह में पीलिया से ग्रसित होते हैं।