सागरPublished: May 13, 2018 10:24:37 am
govind agnihotri
अगर मां पर बच्चों पर जिम्मेदारी भी आ पड़े तो वह हंसते-हंसते निभाती है
Special on Mother’s Day
सागर. मां शब्द अहसासों और ममता से भरा होता है, जिसकी आंचल में आकर बच्चा अपने सभी दु:ख-दर्द भुला देता है। अगर मां पर बच्चों पर जिम्मेदारी भी आ पड़े तो वह हंसते-हंसते निभाती है। बच्चों को पढ़ाने और उनका पालन-पोषण करने के लिए मां घर के बाहर कदम रखकर दुनिया से लड़ती है। जो खुद तपती है, लेकिन बच्चों को कुंदन बना देती है। आज हम मदर्स-डे मनाने जा रहे हैं तो कुछ ऐसी मां के बारे में जानते हैं, जिन्होंने अपने बच्चों के लिए कुर्बानी देकर उनके जीवन को रोशन कर दिया।
भोजनालय खोलकर पाल रहीं बच्चों का पेट
सुनीता चौरसिया। इन्हें इनकी मां ने नया जीवन दिया और अब ये अपने बच्चों के जीवन में रोशनी भर रही हैं। सुनीता के पति की मृत्यु हो गई थी। जीवन के अंतिम समय में जब वे बीमार चल रहे तो सुनीता ने उनकी देखरेख में रात-दिन एक कर दिए। दवाई कराई लेकिन उन्हें नहीं बचा सकी। परेशानी यहीं नहीं थमी। पति की मृत्यु के बाद ससुराल में रहने जगह नहीं मिली। बुरे वक्त में मां ने साथ दिया और सिविल लाइन में बेटी के लिए भोजनालय खुलवाया। सुनीता बताती हैं कि यह शहर में ऐसा पहला भोजनालय है जो एक महिला चलाती है। उनका एक बेटा और एक बेटी है, इन्हें पढ़ाने-लिखाने के साथ-साथ मकान भी ले लिया है। बेटा आठवीं और बेटी पांचवी कक्षा में पढ़ाई कर रही है। सुनीता ने बताया कि महिला संघर्ष करके हर वो काम कर सकती है जो पुरुष
कर सकते हैं।
अस्पताल में किया आया का काम
६० वर्षीय कुसुम। बढ़ती उम्र की वजह से अब उन्हें सही से सुनाई नहीं देता है, लेकिन जिला अस्पताल में ८ घंटे की नौकरी करती हैं। वह पेशे से आया हैं और यह काम २५ साल से कर रही हैं। सुबह ५ बजे से रोजाना इनकी दिनचर्या शुरू हो जाती है। अस्पताल में सुबह ८ बजे से दोपहर २ बजे तक काम करती हैं। कुसुम ने बताया कि बेटा एक वर्ष का था तभी पति की मृत्यु टीवी की बीमारी की वजह से हो गई। बेटे भरत को पाला और अच्छी शिक्षा भी दी। पति की मृत्यु के बाद अस्पताल में आया का काम मिला और खुशी-खुशी करने लगी। ताकि दो वक्तकी रोटी के लिए किसी के सामने हाथ न फैलाना पड़े।
बस इतनी तमन्ना है कि बेटा पूछे-मां तू कैसी है
वैजंतीबाई की उम्र ८० साल के लगभग है। उनकी आंखें कमजोर हो गईं हैं और शरीर भी। ऐसे में जब उन्हें घर पर देखभाल की जरूरत है, तो जुल्म का शिकार होना पड़ रहा है। वह दूसरी शादी करके ससुराल आईं और बतौर सौतेली मां दो बेटों को अपना समझकर पाला। इनके अपने कोई बच्चे नहीं हैं। बेटे जब बड़े हुए तो पिता की जायजाद से अलग करने के लिए मां को वृद्धाश्रम में छोड ग़ए। वैजंती कहती हैं कि बेटे कभी मेरे दुख-दर्द को नहीं समझ पाए, इससे बुरे दिन और क्या होंगे?
मां के तीन रूप हैं
मां है ममता, मां है क्षमता, मां है निर्मल। बच्चों की रक्षा की छतरी मां है केवल।।
बच्चों के चेहरों पर देखे अगर उदासी। जब तक दूर न हो तब तक मां रहती
है बेकल।।
अपनी जरूरतों में करके सदा कटौती, बच्चों की शिक्षा में, मां बनती
है सम्बल।।
ये माना नदियां शीतल होती हैं लेकिन, नदी नहीं दुनिया की कोई मां-सी शीतल।
एक साथ ही मां के अद्भुत तीन रूप हैं, दया का दरिया, दवा की बूटी,
दुआ का आंचल।